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मतगणना से पहले भाजपा को फीलगुड, कांग्रेस की आस बरकरार, क्षेत्रीय दलों के लिए चुनौती

हरियाणा में लोकसभा चुनाव 2019 में मतगणना से पहले राजनीतिक दलों में हलचल बढ़ गई है। राज्‍य में भाजपा को जहां फील गुड है तो कांग्रेस नेताओं में आस बरकरार है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 21 May 2019 12:14 PM (IST)Updated: Tue, 21 May 2019 12:14 PM (IST)
मतगणना से पहले भाजपा को फीलगुड, कांग्रेस की आस बरकरार, क्षेत्रीय दलों के लिए चुनौती
मतगणना से पहले भाजपा को फीलगुड, कांग्रेस की आस बरकरार, क्षेत्रीय दलों के लिए चुनौती

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा में Lok Sabha Election 2019 में मतगणना की तिथि करीब आने के साथ ही राजनीतिक दलों में हलचल बढ़ गई है। माना जा रहा है कि देश के बाकी राज्यों की तरह हरियाणा के चुनाव नतीजे भी बेहद चौंकाने वाले होंगे। मतगणना से पहले भारतीय जनता पार्टी फीलगुड हो रहा है तो कांग्रेस नेताओं की आस बरकरार है। भाजपा को राज्‍य की सभी दस सीटें जीतने की उम्मीद है। दूसरी ओर, कांग्रेस भी कम से कम पांच सीटों पर जीत पक्की मानकर चल रही है।

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भाजपा को दस तो कांग्रेस को पांच सीटों की आस, आप-जजपा दो सीटों पर चुनौती

इस बार का लोकसभा चुनाव क्षेत्रीय दलों के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा। आम आदमी पार्टी और जननायक जनता पार्टी के गठबंधन को इस चुनाव में कांग्रेस का साथ नहीं मिल पाने का नुकसान उठाना पड़ेगा। दूसरी ओर, बहुजन समाज पार्टी और लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के गठबंधन तथा क्षेत्रीय दल इनेलो को बुरी पराजय का सामना करना पड़ सकता है।

इनेलो का निराशाजनक प्रदर्शन, बसपा-लोसुपा के लिए आसान नहीं होगी विधानसभा चुनाव की राह

हरियाणा के लिए हुए एक्जिट पोल के नतीजों से भाजपा सबसे ज्यादा उत्साहित है। अधिकतर सर्वे भाजपा को नौ से दस सीटें तक दे रहे हैं। कुछ चैनलों ने कांग्रेस को तीन सीटें दी तो इनेलो, जजपा-आप और बसपा-लोसुपा गठबंधन का सुपड़ा साफ दिखा दिया है। 2014 के चुनाव में भाजपा ने सात सीटें जीती थी। उसका टारगेट रोहतक, हिसार और सिरसा लोकसभा सीटों समेत राज्य की सभी दस सीटें जीतने का है। इसी टारगेट को सामने रखते हुए भाजपा हरियाणा में मिशन-10 को हासिल करने की तरफ बढ़ी।

हरियाणा में अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। लिहाजा भाजपा ने करो या मरो के जज्बे के साथ रोहतक, सिरसा और हिसार लोकसभा सीटें जीतने पर अपना पूरा फोकस रखा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने खुद हुड्डा और चौटाला के गढ़ फतेह करने के लिए यहां कई जनसभाएं कीं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल की रैलियों और जनसभाओं का फोकस भी इसी क्षेत्र में रहा। भाजपा यदि पिछले चुनाव से अधिक बेहतर प्रदर्शन करती है तो उसके लिए विधानसभा चुनाव की राह आसान हो जाएगी।

कांग्रेस ने अपने तमाम दिग्गजों को चुनाव में उतारा, लेकिन पार्टी गुटबाजी का शिकार है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सोनीपत और उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा की रोहतक लोकसभा सीट पर सबकी निगाह टिकी हुई है। हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष डाॅ. अशोक तंवर सिरसा ने चुनाव लड़े हैं। हुड्डा और तंवर दोनों ही हालांकि अखबार में बयान देने के लिहाज से सभी सीटें जीतने का दावा करते हैं, लेकिन औपचारिक बातचीत में उन्हें पांच सीटों के जीतने की उम्मीद है। इनमें सिरसा, रोहतक और सोनीपत लोकसभा सीटें भी शामिल हैं।

आम आदमी पार्टी और जननायक जनता पार्टी के गठबंधन ने हिसार और फरीदाबाद लोकसभा सीटों पर राष्ट्रीय दलों को कड़ी टक्कर दी है। फरीदाबाद में आप की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष नवीन जयहिंद तथा हिसार में जजपा संयोजक दुष्यंत चौटाला ने चुनाव लड़ा। हिसार लोकसभा सीट के चुनाव नतीजे किसी भी तरफ पलट सकते हैं, जबकि फरीदाबाद में गठबंधन के उम्मीदवार पंडित नवीन जयहिंद भाजपा व कांग्रेस को चुनौती देने की स्थिति में खड़े नजर आएंगे। सबसे अधिक निराशा राज्य के प्रमुख दल का तमगा हासिल करने वाले इनेलो के लिए होगी।

इनेलो ने हालांकि राज्य की सभी दस लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा है, लेकिन उसका फोकस कुरुक्षेत्र और सिरसा लोकसभा सीटों पर ही रहा है। कुरुक्षेत्र में इनेलो विधायक दल के नेता अभय सिंह चौटाला के बेटे अर्जुन चौटाला ने चुनाव लड़ा है। यहां उनके लिए राह कतई आसान नहीं है। अर्जुन को उनकी बिरादरी के ही वोट पूरे नहीं मिल पाए। सिरसा में इनेलो ने अपने निवर्तमान सांसद चरणजीत सिंह रोड़ी को चुनाव लड़वाया। रोड़ी सिरसा में मुकाबले में भी नहीं टिक पाए। इन दोनों सीटों पर जीत हासिल करने के लिए अभय चौटाला ने पूरी ताकत लगा दी थी।

हरियाणा में बसपा और लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के गठबंधन ने भी चुनाव लड़ा, लेकिन इस गठबंधन को लोकसभा चुनाव में करारी पराजय का सामना करना पड़ सकता है। लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के संयोजक के नाते कुरुक्षेत्र से भाजपा के बागी सांसद राजकुमार सैनी के लिए यह चुनाव बेहद निराशा भरा होगा। बसपा अध्यक्ष मायावती ने हालांकि इस चुनाव में एक उम्मीद के साथ राजकुमार सैनी के साथ समझौता किया था, लेकिन मोदी के नाम की आंधी में हाथी और टेंपू कहीं टिक नहीं पा रहे हैं।

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