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राष्ट्रीय दलों के लिए आप व जेजेपी गठबंधन ने खड़ी की मुश्किल, दो सीटों पर रहा इनेलो का फोकस

Lok Sabha Election 2019 में हरियाणा में मतदान हो गया था। राज्‍य में चुनाव के दौरान जेजेपी- आप गठबंधन ने राष्‍ट्रीय दलाें के लिए म‍ुश्किल खड़ी की।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 14 May 2019 12:59 PM (IST)Updated: Tue, 14 May 2019 12:59 PM (IST)
राष्ट्रीय दलों के लिए आप व जेजेपी गठबंधन ने खड़ी की मुश्किल, दो सीटों पर रहा इनेलो का फोकस
राष्ट्रीय दलों के लिए आप व जेजेपी गठबंधन ने खड़ी की मुश्किल, दो सीटों पर रहा इनेलो का फोकस

चंडीगढ़, जेएनएन। हरियाणा में LOk Sabha Election 2019 में मतदान हो चुका है और अब मतगणना का इंतजार है। इस चुनाव में जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और आम आदमी पार्टी (आप) के गठबंधन ने राष्ट्रीय दलों के सामने कड़ी चुनौती पेश की। गठबंधन के नेताओं ने यह चुनाव पूरी शिद्दत के साथ लड़ा। गठबंधन के उम्मीदवारों ने हिसार, फरीदाबाद, सोनीपत और भिवानी-महेंद्रगढ़ का चुनावी किला फतेह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन बरकरार रहा तो राष्ट्रीय दलों की मुश्किलें बढ़ सकती है। दूसरी आेर, इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) का फोकस दो सीटों पर रहा।

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चुनाव को बड़े ही रणनीतिक ढंग से लड़ा दुष्यंत और नवीन जयहिंद ने

लोकसभा चुनाव में जेजेपी ने सात और आम आदमी पार्टी ने तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। इनेलो से निकाले गए निवर्तमान सांसद दुष्यंत चौटाला ने हिसार से दूसरी बार ताल ठोंकी, जबकि जींद उपचुनाव में दूसरे नंबर पर रहे दुष्यंत के भाई दिग्विजय सिंह चौटाला ने सोनीपत में पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा को चुनौती दी। आप की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष नवीन जयहिंद पर फरीदाबाद में दाव खेला गया, जबकि भिवानी-महेंद्रगढ़ में जजपा की स्वाति यादव ने चुनाव को रोचक बना दिया।

हिसार, फरीदाबाद, सोनीपत और भिवानी सीटों पर रहा गठबंधन का फोकस

आप-जेजेपी गठबंधन के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तथा पूर्व सांसद अजय सिंह चौटाला ने अपने-अपने ढंग से चुनाव प्रचार किया। दुष्यंत चौटाला भी बाकी उम्मीदवारों के हक में उनके संसदीय क्षेत्रों में पहुंचे, जबकि पंडित नवीन जयहिंद ने अपने चुनाव के साथ अन्य क्षेत्रों में भी मोर्चा संभाला। जाट और गैर जाट खासकर वैश्य व ब्राह्मण मतों के सहारे इस गठबंधन ने हिसार और फरीदाबाद में भाजपा तथा भिवानी व सोनीपत में कांग्रेस को कड़ी चुनौती दी।

गठबंधन के नेताओं ने प्रचार के लिहाज से सभी दस लोकसभा सीटें कवर की। दुष्यंत चौटाला ने अपने कामों के बूते वोट मांगे। दुष्यंत चौटाला और नवीन जयहिंद की टीम की खास बात यह रही कि इस लोकसभा चुनाव को भविष्य की राजनीति यानी विधानसभा चुनाव की तैयारी के रूप में लड़ा गया। हर विधानसभा क्षेत्र में इसी तरह की तैयारी की गई, ताकि मतदाताओं में संदेश दिया जा सके कि जितना जरूरी यह चुनाव है, उससे कहीं विधानसभा का चुनाव है।

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कुरुक्षेत्र और सिरसा सीटों पर रहा अभय चौटाला का पूरा ध्‍यान

दूसरी ओर, राज्य के प्रमुख विपक्षी दल इनेलो ने यूं तो सभी 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उसका पूरा फोकस कुरुक्षेत्र और सिरसा लोकसभा सीटें जीतने पर रहा। इनेलो विधायक दल के नेता अभय सिंह चौटाला अन्य सीटों पर भी प्रचार करने गए, लेकिन उनका फोकस कुरुक्षेत्र में बेटे अर्जुन सिंह चौटाला और सिरसा में निवर्तमान सांसद चरणजीत सिंह रोड़ी पर रहा।

विधानसभा चुनाव में नए समीकरणों का गणित बनाने की कोशिश

इनेलो में हुए विघटन के बाद अभय ने इस तरह की रणनीति बनाई कि उनके भतीजे दुष्यंत चौटाला को किसी तरह का राजनीतिक माइलेज हासिल न हो सके। उन्हें अपनी इस रणनीति में सफलता मिलती है या नहीं, इसका पता हालांकि 23 मई के बाद ही चलेगा, लेकिन अभय के भतीजे दुष्यंत चौटाला ने भी पूरी जिम्मेदारी और मुस्तैदी के साथ चुनाव लड़ा है। अभय के थिंक टैंक ने इन दोनों सीटों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने तथा हिसार में भतीजे दुष्यंत के लिए मुश्किलें खड़ी करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया।

हिसार और सोनीपत में भतीजों के लिए खड़ी की अभय ने मुश्किल

इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला की गैर मौजूदगी में अभय चौटाला ने पार्टी के लोकसभा चुनाव अभियान की  कमान संभाली। अभय समर्थकों का कहना है कि ताऊ देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला के समय से हालांकि पार्टी में विघटन की स्थिति बनती आई है, लेकिन हर बार पार्टी नए सिरे से खड़ी हो गई।

जननायक जनता पार्टी के अलग से अस्तित्व में आने के बाद अभय चौटाला के सामने भी यही चुनौती रही। इनेलो नेताओं का कहना है कि चौटाला यदि जेल से बाहर होते तो चुनाव का सीन ही कुछ अलग होता। अभय ने अपने बेटे अर्जुन सिंह चौटाला को कुरुक्षेत्र के रण में उतारा है। सिरसा में निवर्तमान सांसद चरणजीत सिंह रोड़ी को दोबारा टिकट दिया गया। हिसार में दुष्यंत चौटाला इनेलो के टिकट पर ही पहले चुनाव जीते थे। ऐसे में अभय के थिंक टैंक की रणनीति रही कि बेटे अर्जुन को राजनीति में स्थापित किया जाए तथा चरणजीत सिंह रोड़ी को जिताने के साथ ही दुष्यंत व सोनीपत में लड़ने वाले दिग्विजय की राजनीतिक राह में रोड़े पैदा किए जाएं।

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