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बिना उम्मीदवार घोषित किए ही राजकोट पर चढ़ने लगा चुनावी रंग

अब तक न तो कांग्रेस और ना ही भाजपा ने अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं, फिर भी राजकोट की सडके चुनावी रंग से सराबोर है।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Thu, 02 Nov 2017 08:57 PM (IST)Updated: Mon, 06 Nov 2017 09:04 PM (IST)
बिना उम्मीदवार घोषित किए ही राजकोट पर चढ़ने लगा चुनावी रंग
बिना उम्मीदवार घोषित किए ही राजकोट पर चढ़ने लगा चुनावी रंग

ऋषि पाण्डे, राजकोट। गुजरात को तीन-तीन मुख्यमंत्री देने वाले राजकोट पर विधानसभा का चुनावी रंग चढ़ने लगा है। यहां चुनाव में मौजूदा मुख्यमंत्री विजय रूपानी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। भाजपा के लिए सर्वाधिक सुरक्षित क्षेत्र होने के बावजूद पार्टी, मतदाताओं को, रूपाणी के पार्षद और नगर निगम मेयर के तौर पर किए गए कामों को याद दिलाने को मजबूर हो रही है। अब तक न तो कांग्रेस और ना ही भाजपा ने अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं, फिर भी राजकोट की सडके चुनावी रंग से सराबोर है।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब पहली बार सूबे के मुख्यमंत्री बने थे तब राजकोट ने ही उपचुनाव के जरिये उन्हें विधायक बनाया था। उससे पहले केशुभाई पटेल यहां से चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बन चुके हैं। भाजपा की राजनीति के एक और दिग्गज वजुभाई वाला भी राजकोट से चुनाव जीतते रहे हैं। रूपानी उन खुशकिस्मत राजनेताओं में से हैं जो पहली बार विधायक बने और किस्मत ने ऐसा साथ दिया कि पहली ही बार में उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी भी मिल गयी।

यूं रूपानी की व्यक्तिगत इमेज सीधे सरल और जमीनी नेता की है। पार्षद से मुख्यमंत्री तक के सफर में पद और रूतबा कभी उनके सर नहीं चढा। रूपानी को उनकी व्यक्तिगत छवि के अलावा मोदी के नाम का भी लाभ मिल रहा है। गुजरात में ऐसे लोगो की भी कमी नहीं है जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुजराती अस्मिता से जोडकर देखते हैं। राजकोट के सराफा कारोबारी संजय भाई शाह की नजरों से देखे तो मोदी अकेले ऐसे खांटी गुजराती नेता है जो खुद के दम पर देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचे हैं। शाह कहते हैं, मेरे कई सारे नाते रिश्तेदार अमेरिका में रहते हैं, जो बताते हैं कि मोदी के पीएम बनने के बाद कैसे भारत और भारतीयों की पूछ परख बढी है। वे सवाल करते हैं। बताईये ऐसे में मैं कैसे दूसरी पार्टी को वोट करूं?

राजकोट बेहद शांत शहर है। अपराध यहां ना के बराबर है। शहरवासी इस बात पर गर्व महसूस करते हैं कि रात को 12 बजे भी लडकियां यहां सडको पर अकेले घूम सकती है। यूं इस शहर में विधानसभा की चार सीटें हैं,लेकिन विजय रूपानी जिस राजकोट पश्चिम सीट से चुनाव लड रहे हैं वहां ज्यादातर संभ्रांत और पढा लिखा तबका रहता है। वोटरों का बढा हिस्सा व्यापारियों का है जो व्यक्ति नहीं विचारधारा को महत्व देता आया हैं। युवा मतदाताओं का एक ऐसा वर्ग भी है जिसने होश संभालने के बाद से भाजपा को ही पावर में देखा। 32 साल के शेयर कारोबारी अर्जुन देसाई का कहना है कांग्रेस को कभी सरकार चलाते देखा नहीं तो कैसे भरोसा कर ले। जीएसटी और नोटबंदी के बाद यह तबका थोडा विचलित जरूर हुआ है,लेकिन भाजपा के रणनीतिकारों को भरोसा है कि सब ठीक हो जाएगा। खुद मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने सोमवार को पार्टी कार्यकर्ताओं को सम्मेलन में जीत का भरोसा दिलाया।

उनका कहना था कि राजकोट लंबे समय से भाजपा के साथ है और इस बार भी साथ नहीं छोडेगा। उनसे मुकाबले के इच्छुक कांग्रेस दावेदार इंद्रनील राजगुरू का तर्क है कि गुजरात का इतिहास रहा है कि ब्राम्हण और बनिया वर्ग का व्यक्ति सीएम बनने के बाद दूसरा चुनाव नहीं जीत पाया। राजगुरू राजकोट पूर्व से कांग्रेस के विधायक हैं और मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लडने के लिए कांग्रेस का राजी कर चुके हैं। साधन सम्पन्न राजगुरू अपना चुनाव प्रचार शुरू भी कर चुके हैं। राजकोट के आम लोग मानते हैं कि मुकाबला कडा है इसीलिए भाजपा को मुख्यमंत्री के तब के काम भी याद दिलाने पड रहे हैं जब वे पार्षद या मेयर थे। राजकोट भाजपा के प्रवक्ता राजू ध्रूव इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है। राजकोट हमेशा से विजय भाई के दिल में रहा है इसलिए हमारा फर्ज बनता है कि हम लोगो को उन कामो के बारे में बताए जो उनके द्वारा राजकोट के लिए किये गये। फिर वह मुख्यमंत्री के नाते किए गए हो या मेयर के नाते। राजकोट चैम्बर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष शिवलाल बारसिया इस बात से नाराज दिखे कि राजकोट के आसपास के उद्योगों को कोई खास सहूलियत नहीं मिल पायी।

राजकोट पश्चिम विकसित शहरी क्षेत्र है। पेशे से प्राइवेट शिक्षक ज्योति बेन की माने तो राजकोट शहर का जितना भी विकास हुआ है वह सब भाजपा की देन हैं। कांग्रेस को यहां लोगो ने मौका कब दिया? वे इस बात से संतुष्ट दिखी कि रूपानी ने शहर को अत्याधुनिक बस अड्डा दिया और इंटरनेशनल एयरपोर्ट की सौगात दी। जातीय समीकरण देखे जाए तो पाटीदार यहां प्रभावी भूमिका में हैं। लगभग 55 हजार पाटीदार वोटर्स राजकोट में हैं। पाटीदारों के अलावा 20 हजार बनिया,30 हजार ब्राम्हण और 25 हजार ठक्कर समुदाय के वोटर है।

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