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गुजरात चुनाव 2017: विकास पागल नहीं, बोलता है

हार्दिक और कांग्रेस का मुलम्मा उतर चुका है। यह हालत तब है जब नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी दौरों का श्रीगणेश नहीं किया है।

By Manish NegiEdited By: Published: Tue, 21 Nov 2017 07:06 PM (IST)Updated: Tue, 21 Nov 2017 07:06 PM (IST)
गुजरात चुनाव 2017: विकास पागल नहीं, बोलता है
गुजरात चुनाव 2017: विकास पागल नहीं, बोलता है

प्रशांत मिश्र, सूरत। गुजरात में विकास को पागल कहने और समझने वालों को गुजराती समाज एक बार फिर ख़ारिज करेगा। पिछले दो दशकों से सत्ता में क़ाबिज़ भाजपा गांधी नगर में एक बार फिर सरकार बनाने जा रही है। तीन दिन गुजरात मे गुज़ारने के बाद मुझे यहां भाजपा के विरोधी भले मिले हों लेकिन नरेंद्र भाई दामोदर दास मोदी विरोधी नहीं मिला। ऐसा नहीं कि कुछ मुद्दों पर प्रदेश सरकार से शिकायत न हो। लेकिन, उससे ज्यादा चिढ़ इस बात की है कि ऐसे लोग गुजरात को पिछड़ा हुआ और विकास को पागल करार दे रहे हैं जिनके प्रदेशों और क्षेत्रों में 'विकास खड़ा भी नहीं हो पाया है।'

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मै सूरत के कामरेज इलाक़े में चायपान की दुकान पर खड़ा हूं। यहां जो भीड़ है उसमें ज्यादातर लोग पाटीदार समाज के हैं। शिकंजी पीते हुए हार्दिक पटेल और उनके पाटीदार आंदोलन पर लंबी बातचीत हुई। जयेश भाई का कहना था आंदोलन का गुब्बारा फूट चुका है। दूसरी तरफ मनसुख भाई बेलौस अंदाज मे कहते दिखे कि जीएसटी से लोगों में थोड़ी परेशानी तो थी, लेकिन दस तारीख़ को गुवाहाटी में हुई बैठक के बाद यह भरोसा हो गया कि सबकुछ दुरुस्त होने वाला है। परेशानियां कम हुई हैं। अब परेशानी उन लोगों को है जो अभी तक एक टका टैक्स सरकार को नहीं देते थे और कच्चे में काम करते थे। हम जैसे लोगों को क्या परेशानी।

दिलचस्प बात यह है कि सूरत और मेहसाणा जिला पाटीदार आंदोलन का एपिसेंटर था। लेकिन अब उस आंदोलन की हवा निकल चुकी है। हार्दिक पटेल के नये-नये कि़स्से जनता के बीच चटकारे वाली गप्प का हिस्सा बन चुके हैं। जयेश भाई जो खुद पाटीदार है, कहते है कि पाटीदार समाज में अब मोदी के प्रति कोई नाराजगी नहीं है। रही आरक्षण की बात तो वह जानती है कि कांग्रेस आरक्षण का झुनझुना बजा रही है।

सूरत की 16 सीटो में से 13 भाजपा के खाते में गई थी। कामरेज वह इलाका है जहां से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित भाई शाह को तीखे विरोध के बाद अपनी सभा बीच में ही छोड़कर जाना पड़ा था। यही हाल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का भी हुआ था। लेकिन उस घटना को लेकर अब तक एक महीने का लंबा अरसा बीत चुका है पाटीदार समाज में जो आक्रोश भाजपा के प्रति था, उसका पारा धीरे-धीरे नीचे आ चुका है। हार्दिक और कांग्रेस का मुलम्मा उतर चुका है। यह हालत तब है जब नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी दौरों का श्रीगणेश नहीं किया है।

दरअसल, गुजरात में कांग्रेस की सबसे बड़ी दिक़्क़त उसकी संगठन शून्यता है। केंद्र के कांग्रेसी नेता भले ही चुनावी गुब्बारे में हवा भरने की कोशिश करें लेकिन स्थानीय नेतृत्व का अभाव बहुत फलीभूत होता नहीं दिखता है। विकास की बात पर एक युवा कहता है- मैं तो अंकलेश्वर व भरूच को छोड़कर वापी, वलसाड, नवसारी, सूरत, बड़ौदा होते हुए अहमदाबाद के पूरे रास्ते में जहां भी बात हुई वहां कांग्रेस के कुछ समर्थक तो थे लेकिन कुरेदने पर दिल से वोटर नहीं दिखे।

कांग्रेस को थोड़ी बहुत उम्मीद सूरत के एक इलाक़े, अंकलेश्वर और भरूच में ही संजोनी चाहिए। बाक़ी इस पूरे क्षेत्र में इसको बहुत कुछ हासिल होने वाला नहीं है। वापी से लेकर अहमदाबाद तक 350 किमी के रास्ते में जगह जगह बातचीत में एक बात निर्विवाद थी कि सरकार तो भाजपा ही बनाने जा रही है। अटकल का सवाल एक ही है - भाजपा की सीटें पिछली बार से कम होंगी या ज्यादा।

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