गुजरात चुनाव के कई रंग, कड़वी यादों की कोठरी से बाहर निकले लोग
गुजरात विधानसभा के दूसरे चरण की 93 सीटों पर 14 दिसंबर को मतदान होगा।
गोधरा [संजय मिश्र] । गुजरात की सियासत में गोधरा बीते डेढ दशक से चाहे-अनचाहे बेहद गरम रहा है मगर यहां के आमलोग अब पुरानी कड़वी यादों की कोठरी से बाहर निकल चुके हैं। शहर में न तो कोई डर है न सहम कर जीने जैसी कोई बात। जिंदगी यहां अपनी पूरी रफ़्तार में है। सियासत का खेल इस रफ़्तार में किसी तरह का खलल डाले किसी समुदाय को यह बिल्कुल मंजूर नहीं। चुनावी प्रचार आखिरी मुकाम पर है और पंचमहल जिले की सबसे चर्चित सीट गोधरा के चुनावी मुददे सूबे से कोई अलग नहीं। राजनीतिक पार्टियां प्रचार में भले दुनिया भर के मुददों की पतंग उडा रही हों मगर लोगों के लिए इनके कोई मायने नहीं। नौकरी-रोजगार, किसानों की मुसीबतों से लेकर महंगी बिजली और रसोई गैस सिलेंडर से लेकर पढाई की उंची फीस की चुभन जैसे मसले चुनाव में उनके लिए मायने रखते हैं।
2002 की यादों से बाहर निकले मतदाता
गोधरा में हिन्दू हों या मुसलमान दोनों समुदाय 2002 की घटनाओं के साये से पूरी तरह बाहर आ चुके हैं। कुरेदे जाने पर भी इसकी चर्चा में उनकी दिलचस्पी नहीं दिखती। गोधरा बस स्टैंड के निकट मिठाई-नमकीन की दुकान चलाने वाले इशु भाई हों या यहां चाय की चुस्कियों ले रहे जीतू पटेल,अश्विन परमार सभी इस बात को लेकर एकमत थे कि फसाद अब बीती बात हो चुकी है। दोनों समुदायों को बखूबी मालूम है कि हुल्लड से किसी का भला नहीं होता और जिंदगी में बेहतरी लानी है तो शांति जरूरी है ताकि काम धंधा अच्छे से चलता रहे। आटो चलाने वाले सबीर भाई, इंजिनियरिंग कर दवा सप्लाई का काम करने वाले नसीम भाई साफ कहते हैं कि यहां कोई किसी से नहीं डरता और पुरानी बातों को ढोकर जिंदगी आगे नहीं बढ सकती। इसीलिए सब अमन चैन से न केवल रहते हैं बल्कि कारोबार भी करते हैं।
गोधरा सीट के लिए दिलचस्प चुनाव
पुराने साये से दूर गोधरा का चुनाव इस काफी दिलचस्प है क्योंकि पिछले लगातार तीन बार से यहां से कांग्रेस के विधायक रहे सीके राउलजी इस बार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं। अहमद पटेल के राज्यसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कांग्रेस छोडी और भाजपा के साथ हो लिए। मगर उनके मैदान में उतरने से भाजपा कैडर का एक वर्ग नाखुश बताया जा रहा है। हालांकि पंचमहल जिला भाजपा के अध्यक्ष अश्विन पटेल पार्टी कैडर में नाराजगी जैसी किसी बात से इनकार करते हैं। उनका यह भी कहना था कि राउलजी तो पुराने भाजपायी हैं और शंकर सिंह वाघेला की निकटता के चलते उनके साथ वे कांग्रेस में चले गए थे। कांग्रेस ने नए चेहरे के रुप में राजेंद्र सिंह परमार को उतारा है जो यहां स्थानीय लोगों में काफी पकड रखते हैं। सामाजिक समीकरण के हिसाब से भी क्षत्रिय बारिया समुदाय से ताल्लुक रखने वाले राजेंद्र सिंह की जाति का इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोट भी है। मुस्लिम वोट भी कांग्रेस उम्मीदवार के खाते में जाना तय माना जा रहा। ऐसे में पाला बदलकर आए राउलजी को अपनी सीट बचाने के लिए कडे संघर्ष का सामना तो करना ही पड रहा है।
पंचमहल की सभी सीटों पर दिलचस्प मुकाबला
गोधरा ही नहीं पंचमहल जिले की सभी छह विधानसभा सीटों जिसमें कालोल और हालोल जैसी बडी आदिवासी आबादी वाली सीट पर कांटे का मुकाबला है। मोडवा हडप और संतारामपुर सीटें एसटी के लिए रिजर्व हैं। जबकि सेहरा सीट पर भाजपा के मौजूद विधायक अहीर भरवाड जेठाभाई को अपनी सीट बचाने के लिए कांग्रेस के नरवत्न सिंह दुष्यंत चौहान की तगडी चुनौती का सामना करना पड रहा है। आदिवासी बहुल इलाका होने की वजह से पंचमहल जिले में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय के उठाए जा रहे चुनावी मुददे का यहां कोई सरोकार नहीं दिखता और न ही हार्दिक पटेल का कोई असर।
सास के तेवर पड़े ढीले, बहू के लिए प्रचार
चुनावी दिलचस्पी के लिहाज से कालोल सीट पर खास निगाहें लगी है क्योंकि टिकट बंटवारे में सामने आयी सास-बहू की लड़ाई का रोचक मामला यहीं का है। भाजपा के मौजूदा सांसद विजय सिंह प्रभात सिंह चौहान की बहू सुमनबेन चौहान को पार्टी ने यहां से उतारा है जबकि वे अपनी चौथी पत्नी को चुनाव लड़ाना चाहते थे। इस वजह से ससुर और सास दोनों शुरु में नाराज हुए मगर अब परिवार में सब कुछ ठीक है। सास अपने से उम्र में कई साल बड़ी बहू को जीताने के लिए प्रचार में घूम रही हैं। कांग्रेस ने भी अपने सीटिंग विधायक का टिकट काटकर यहां से अच्छी छवि वाले विजय सिंह परमार पर दांव लगाया है।
संसाधन में परमार भाजपा उम्मीदवार से मुकाबला नहीं कर सकते। जैसाकि उनके चुनाव का संचालन कर रहे अनुभाई चौहान और विजय वणका कहते हैं आदिवासी इलाका होने की वजह से यहां शराब का चुनाव में अहम रोल है। एक तो कांग्रेस प्रत्याशी के पास पर्याप्त पैसे नहीं दूजे शराब की सप्लाई का ठेका भाजपा सांसद के पास है। पैसे देने के बावजूद कांग्रेस के लोगों को शराब की सप्लाई नहीं की जा रही जबकि दूसरे खेमे के लिए तो सब कुछ अपने हाथ में है। इसीलिए कांग्रेस के लोगों को यह डर सता रहा कि आखिरी दिनों में शराब की सप्लाई उन्हें कुछ भी न मिली तो यह सीट कहीं उनके हाथ से निकल न जाए।
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