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गुजरात की बाजी: युवा नेताओं के जातिवादी बोल से युवाओं का मोहभंग, विकास को मिली तरजीह

गुजरात विधानसभा के लिए पहले चरण का चुनाव 9 दिसंबर को होना है। लेकिन गुजरात की फिजां में चुनावी नारे गूंज रहे हैं।

By Lalit RaiEdited By: Published: Thu, 09 Nov 2017 11:01 AM (IST)Updated: Thu, 09 Nov 2017 11:35 AM (IST)
गुजरात की बाजी: युवा नेताओं के जातिवादी बोल से युवाओं का मोहभंग, विकास को मिली तरजीह
गुजरात की बाजी: युवा नेताओं के जातिवादी बोल से युवाओं का मोहभंग, विकास को मिली तरजीह

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए बिसात बिछ चुकी है। इस चुनाव के जरिए कांग्रेस पीएम नरेंद्र मोदी को घेरने की कोशिश कर रही है, तो वहीं भाजपा पिछले 15 साल में अपने शानदार प्रदर्शन और पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को भुना रही है। अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी के चेहरों को आम लोगों के सामने रखकर कांग्रेस ये बताने में जुटी है कि भाजपा ने राज्य के किसी भी वर्ग का ख्याल नहीं रखा। लेकिन भाजपा भी अपने तरकश से एक एक तीर निकाल कर कांग्रेस के सवालों पर निशाना साध रही है। इन सबके बीच दैनिक जागरण गुजरात की जमीनी तस्वीर को आप के सामने पेश कर रही है।  

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 चुनावी मूड में आया बदलाव
गुजरात का चुनावी मूड धीरे-धीरे बदल रहा है। आंदोलन, आरक्षण पर संघर्ष व जातिवाद से गुजरकर एक बार फिर महिलाएं व युवा राज्य की बदलती तस्वीर व अपने अधिकारों पर चर्चा करने लगे हैं। अल्पेश, हार्दिक व जिग्नेश भले ही अपने समुदायों के हक के लिए लड़ रहे हों लेकिन वे युवाओं के प्रेरणास्नोत नहीं बन पाए हैं।गुजरात के विश्व प्रसिद्व महाराजा सयाजी राव विश्वविद्यालय व विसनगर के साकलचंद पटेल विश्वविद्यालय में मतदाता जागरूकता अभियान के दौरान आयोजित संवाद में छात्रों ने आरक्षण आंदोलन को लेकर समर्थन किया लेकिन युवा अब मानने लगे हैं कि आंदोलन का राजनीतिकरण हो गया तथा चुनावों में इसके अगुवा राजनीतिक दलों का मोहरा बन गए हैं।

साकलचंद विवि की छात्र किंजल की उम्र 19 साल है वह इंजीनियरिंग की छात्र है। उसका मानना है कि आरक्षण आंदोलन पहले सही दिशा में था लेकिन अब इस पर राजनीति हो रही है। इससे जुड़े नेता अब चुनाव में अपना घर भरने में लग गए हैं। किसी को पाटीदार समाज के हित की चिंता नहीं रह गई है। परेश पटेल का मानना है कि कम उम्र में हार्दिक ने आरक्षण आंदोलन शुरू कर युवाओं की आवाज बुलंद की लेकिन अब राजनीतिक दलों को समर्थन करने से आंदोलन खत्म हो जाएगा। उनका साफ कहना है कि जातिगत आंदोलन के कारण गुजरात के विकास पर जो चर्चा होनी चाहिए थी वो नहीं हो रही है। टीवी व अखबारों में भी जातिवादी नेता व राजनीति हावी हो गई है, गुजरात में कई क्षेत्र में उल्लेखनीय काम हुआ उस पर चर्चा होती तो राज्य को और आगे ले जाने में मदद मिलती लेकिन इस चर्चा में सब विवादों में फंसकर रह गए, जो गुजरात की अस्मिता पर गलत असर करता है।

'हार्दिक, जिग्नेश और अल्पेश के आंदोलन में खामी'

भरत पटेल बताते हैं कि वे हार्दिक, अल्पेश व जिग्नेश के आंदोलन का समर्थन करते हैं लेकिन आंदोलन के नाम पर राजनीति गलत है। जिस मुद्दे को लेकर आंदोलन शुरू किया गया था, बिना राजनीति के उसे जारी रखना था। उधर, एमएस विवि की छात्र रूवि शाह का कहना है कि आरक्षण व्यवस्था एक नियत समय के लिए थी अब उसे समाप्त कर देना चाहिए ताकि राजनीति नहीं हो। महिलाओं के आरक्षण को पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए। आंदोलन के नाम पर हर कोई अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहा है। उनका कहना है कि कांग्रेस जातिवादी नेताओं को अधिक महत्व दे रही है जिससे राज्य की राजनीति को जातिगत रंग चढ़ गया है। पिछले चुनावों में ऐसा नहीं होता था।

रिद्दी शाह बताती हैं कि मीडिया में छा जाने के बावजूद युवा आंदोलनकारी उनके प्रेरणास्नोत नहीं बन पाए हैं, चूंकि वे गुजरात के हित के बजाए जाति के हित की लड़ाई लड़ रहे हैं। चुनाव आयोग के नोडल अधिकारी जगदीश सोलंकी बताते हैं कि इस बार एथिकल वोटिंग पर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है ताकि मतदान के वक्त लोग जाति, पद, वंश, पैसा व प्रतिष्ठा आदि के प्रभाव में आए बिना प्रमाणिक मतदान कर सकें।
 

'विकास' को कैसे कह दें पागल

अंकलेश्वर से अहमदाबाद की ओर जाने वाला पुराना हाईवे नर्मदा नदी पर अंग्रेजों द्वारा बनाए गए एक बड़े लोहिया पुल से गुजरता है। सुनहरी पॉलिश होने के कारण इसे गोल्डन पुल कहा जाता है। मुश्किल से दो कारों की चौड़ाई वाले इसी पुल से गुजरते हुए टैक्सी ड्राइवर जगदीश पटेल बाईं ओर इशारा करके बताते हैं कि साहब वो मेरा गांव है- कुक्कर पाड़ा। 1500 की आबादी वाला यह गांव नर्मदा नदी के बिल्कुल किनारे बसा है। गांव के अधिकतर निवासी माछी पटेल, यानी मछुआरा समुदाय से हैं। गांव के 80 फीसद लोग खेती करते हैं। खेती का ज्यादातर काम महिलाएं संभालती हैं। पुरुष सब्जियों को निकट के सूरत सूरत, वडोदरा व अहमदाबाद आदि बड़े शहरों में ले जाकर बेचने का काम करते हैं। कई घरों में पशुपालन का काम भी होता है। जो ग्रामीणों के लिए पर्यायी आमदनी का जरिया है। गांव के कई पुरुष छोटे-मोटे व्यवसायों में भी लगे हैं।

'बरगला रहे हैं हार्दिक'

पटेल जाति नाम सुनते ही युवा पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के बारे में कुरेदा। हार्दिक के आंदोलन की तारीफ करते हुए बात शुरू की तो जगदीश बिफर पड़े। साफ कहा कि न सिर्फ उनका बल्कि गुजरात में पटेलों के और भी कई समुदायों का इस आंदोलन से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहा है। दुनिया की खबरों से सजग जगदीश मानते हैं कि हार्दिक का आंदोलन तगड़ा हुआ। पाटीदार आंदोलन के दौरान पुलिस की ओर से हुई गोलीबारी की घटना को भी वह सरकार की चूक मानते हैं। लेकिन इससे पूरा पाटीदार समाज हार्दिक के पीछे खड़ा हो जाएगा, इससे वह कतई सहमत नहीं है।

'विकास को कैसे नकारें'

जगदीश कहते हैं कि पिछले 15 साल में गुजरात ने जो विकास देखा है, उसे नकारा तो नहीं जा सकता। वह खुद अपने गांव का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि पूरे गांव में न सिर्फ आरसीसी की सड़कें हैं, बल्कि उनके दोनों ओर पेवर ब्लॉक भी लगे हैं। क्या मजाल जो बरसात में कहीं जरा भी कीचड़ दिख जाए। घर-घर में नल लगा है, लेकिन उसमें खारा पानी आने के कारण उसका उपयोग अन्य घरेलू कामों में होता है। पेयजल के लिए गांव में फिल्टर प्लांट लगे हैं। जहां से लोग पीने का पानी लाते हैं। एक दशक पहले तक बिजली मुश्किल से आती थी। अब 24 घंटे रहती है।

जगदीश बताते हैं कि उनके घर के आसपास चार हाईवे निकलने जा रहे हैं। उनमें एक तो कोस्टल हाईवे है। इसके अलावा हाल ही में भरूच के दहेज कस्बे से भावनगर को जोड़ने वाली रो-रो फेरी सेवा भी शुरू हो चुकी है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा गुजरात में ‘विकास पागल हो गया है’ का नारा दिए जाने पर हंसते हुए कहते हैं, साहब यह तो राजनीति है। वरना मेरे गांव जैसा ही काम गुजरात के लगभग सभी गांवों में हुआ है। जब विकास साफ-साफ सामने दिख रहा है तो इतनी आसानी से उसे ‘पागल’ कैसे कहा जा सकता है? जनता को पिछले 15 वर्षो के विकास पर अंगुली उठाना रास नहीं आ रहा है।

साथ में अहमदाबाद से शत्रुघ्न शर्मा और भरूच से ओमप्रकाश तिवारी

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