गुजरात की बाजी: माइक्रो मैनेजमेंट,ओबीसी और यूपी फार्मूला के जरिए फतह की तैयारी
यह देखने की बात होगी कि पटेल समुदाय का कितना बड़ा हिस्सा उस कांग्रेस के साथ जाएगा जिसने खाम समीकरण को संस्थागत किया था।
जामनगर [आशुतोष झा]। पटेल आंदोलन के बाद फिलहाल कुछ क्षेत्रों में भाजपा के खिलाफ दिख रहे असंतोष और उसी आधार पर सीटें कम होने की राजनीतिक अटकलों के बावजूद अगर अमित शाह अभूतपूर्व जीत का दावा कर रहे हैं तो उसे निराधार नहीं कहा जा सकता है। दरअसल माइक्रो मैनेजमेंट के कुशल खिलाड़ी शाह इसी का आधार तैयार करने में जुटे हैं। तुलनात्मक रूप से कम संख्या के बावजूद सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाले पटेलों की कमी का रास्ता ओबीसी में ढूंढा जा रहा है। और यह मानकर चला जा सकता है कि गोटी सही बैठी तो भाजपा कुछ वैसा कमाल भी दिखा सकती है जो उत्तर प्रदेश में हुआ था।
जामनगर से द्वारका तक बदला नजारा
अहमदाबाद से सौराष्ट्र में प्रवेश करते ही पटेलों के गढ़ में जाएंगे तो हार्दिक का जलवा महसूस हो सकता है। किसान भी अपना दर्द दिखाएंगे और एक झटके में लग सकता है कि भाजपा के लिए लड़ाई मुश्किल हो गई है। हो भी क्यों न अगर उस पटेल समुदाय में टूट दिखे जो झूमकर भाजपा के लिए वोट करता रहा है। लगभग अस्सी फीसद पटेल साल दर साल भाजपा को जिताते रहे हैं। केशुभाई जैसे प्रभावशाली पटेल भी जिसे भाजपा से दूर न कर पाएं हों। लेकिन आप ज्यों ही राजकोट से जामनगर और द्वारका की ओर बढ़ेंगे तो नजारा बहुत तेजी से बदलता हुआ दिखेगा। दरअसल इन क्षेत्रों में पटेलों के साथ-साथ ओबीसी की बड़ी आबादी भी दिखेगी। ऐसी आबादी जो किसी भी चुनाव की दशा दिशा बदल सके। जामनगर की कालावाड़ सुरक्षित सीट है। ओबीसी समुदाय के मुरीभाई कहते हैं- पटेलों को आरक्षण क्यों चाहिए, उनके पास तो पहले ही सबकुछ है फिर वह हमारे हक में सेंध कैसे लगा सकते हैं। हम तो यह नहीं होने दे सकते हैं। मुरीभाई ने पिछले विधानसभा चुनाव मे कांग्रेस को वोट किया था, लेकिन इस बार हार्दिक के आंदोलन ने उनका मन बदल दिया है। उनके साथ ही उनके बड़े भाई, पुत्र व कुछ दोस्त भी बैठे हैं जो हामी में सिर हिलाते हैं।
भाजपा की रणनीति और 150 सीट
अमित शाह के 150 के दावे के पीछे शायद मुरीभाई जैसे लोगों का हृदय परिवर्तन है। हालांकि यह चुनाव के बाद ही पता चलेगा कि मुरीभाई की तादाद कितनी है। गौरतलब है कि गुजरात में ओबीसी लगभग 40 फीसद हैं, जबकि पटेलों की तादाद 12 फीसद। गुजरात की राजनीति में पटेल डंका बजाते रहे हैं। जबकि अलग-अलग जाति शामिल होने के कारण ओबीसी को एकमुश्त तौर पर वैसे नहीं देखा गया जैसे पटेलों को। ध्यान रहे कि गुजरात चुनाव में भाजपा ने साठ से ज्यादा टिकटें ओबीसी वर्ग को दी हैं।
खाम और पटेल पर कांग्रेस की नजर
आदिवासी को भी उनके लिए आरक्षित सीटों से एक सीट ज्यादा दी गई है। पिछले चुनाव में भाजपा को लगभग 48 फीसद वोट मिला था और कांग्रेस नौ से दस फीसद वोट पीछे रही थी। माना जाता है कि कांग्रेस और भाजपा के बीच ओबीसी में बंटवारा था। कांग्रेस ने हार्दिक के जरिए पटेल में सेंध लगाने की कोशिश की है। हालांकि यह देखने की बात होगी कि पटेल समुदाय का कितना बड़ा हिस्सा उस कांग्रेस के साथ जाएगा, जिसने खाम (क्षत्रिय, दलित, आदिवासी और मुस्लिम) समीकरण को संस्थागत किया था। दूसरी ओर भाजपा कांग्रेस के ओबीसी वोट से एक बड़ा हिस्सा खिसकाने में सफल रहती है तो नतीजा आश्चर्यजनक हो सकता है।