गांधी और पटेल के गुजरात में चुनाव, दुनिया के अलग अलग देशों में चर्चा
गुजरात में पहले चरण के लिए चुनाव प्रचार का शोर थम चुका है। 9 दिसंबर को सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला होगा।
मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। कभी कांग्रेस अध्यक्ष रहे पंडित कमलापति त्रिपाठी मुंबई आकर यहां रहने वाले हिंदी भाषियों से उत्तर प्रदेश में अपने गांव-घर को चिट्ठी लिखकर कांग्रेस को वोट देने की अपील करवाते थे। अब अमेरिका के अटलांटा में रह रहे विजय कोटक गुजरात के सुरेंद्र नगर में रह रहे अपने संबंधियों को फोन करके भाजपा को वोट देने की अपील कर रहे हैं।
गुजरात में चुनाव, विदेश में चर्चा
कभी मुंबई में रहे विजय कोटक ने अमेरिका में वह समय भी देखा है, जब भारत का कोई प्रधानमंत्री अमेरिका कब आकर लौट गया, इसका पता ही नहीं चलता था। लेकिन करीब साढ़े तीन साल पहले प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार नरेंद्र मोदी आए तो पूरे अमेरिका को पता चल गया। मैडिसन स्क्वायर सहित अमेरिका के दूसरे हिस्सों, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के खचाखच भरे स्टेडियमों में उनकी सभाएं हुईं। इस बदलाव ने अमेरिका ही नहीं अन्य देशों में रह रहे भारतीय मूल के लोगों को एक अलग गर्व का अहसास कराया है। वहां रह रहा गुजराती समाज भी इससे अछूता नहीं है। अटलांटा में तीन पेट्रोल पंपों के मालिक विजय कोटक कहते हैं कि इस अहसास ने विदेश में रह रहे उन गुजरातियों के मन में भी भाजपा के प्रति प्रेम जगा दिया है, जो 2014 से पहले तक कट्टर कांग्रेसी हुआ करते थे। यही कारण है कि 2012 तक गुजरात चुनाव में रुचि न लेनेवाले प्रवासी गुजराती भी इस बार गुजरात चुनाव में न सिर्फ रुचि ले रहे हैं, बल्कि गुजरात स्थित अपने गांव-घरों को फोन करके भाजपा को वोट देने की अपील भी कर रहे हैं।
कोटक दैनिक जागरण से फोन पर बतियाते हुए कहते हैं कि उत्तर गुजरात के आणंद से नाडियाड के बीच स्थित छह बड़े गांव के लोग ही वास्तविक पाटीदार समाज से आते हैं। यहीं के लोग अमेरिका और कनाडा में बड़ा व्यापार भी संभाल रहे हैं। ये लोग पटेल होते हुए भी गुजरात में नए उभरे ‘पाटीदार नेता’ हार्दिक पटेल की अनामत की मांग से सहमत नहीं है। उन्हें लगता है कि इस प्रकार के आंदोलनों से उनका समाज आगे जाने के बजाय पिछड़ जाएगा। कुछ समय पहले ही अमेरिका से लौटे भरत पारिख बताते हैं कि न्यूयार्क का जैक्शन हाइट क्षेत्र एक बड़ा बाजार है। यहां भी कारोबार की बागडोर ज्यादातर गुजरातियों ने ही संभाल रखी है। लेकिन जैक्शन हाइट पर बोलचाल की भाषा हिंदी है। क्योंकि यहां भारत के सभी प्रांतों के लोग खरीदारी करने आते हैं। जैक्शन हाइट भी इन दिनों गुजरात चुनाव की चर्चा का केंद्र बना हुआ है। यहां का गुजराती समाज भी फिलहाल गुजरात में कोई बदलाव नहीं चाहता। क्योंकि पिछले 10 वर्षों में अपने गांव-घर आने पर उसने वह विकास बखूबी देखा है, जिसे इन दिनों पागल करार दिया जा रहा है।
विदेशों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का काम देखते रहे रामचंद्र पांडेय बताते हैं कि जब 1970 में युगांडा के शासक ईदी अमीन ने हमारे लोगों को भगाना शुरू किया तो तत्कालीन सरकार ने भारतीयों की कोई चिंता नहीं की। यही हाल उन्हीं दिनों तंजानिया में भी हुआ था। वहां से रिफ्यूजी होकर भागनेवालों में बहुत बड़ी संख्या गुजरातियों व पंजाबियों की थी। जो बाद में कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन में जाकर बस गए। दूसरी ओर जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, कितने ही लोगों को संकटकाल में अन्य देशों से सुरक्षित निकालकर भारत लाया जा चुका है। यह फर्क विदेश में रह रहे लोगों की समझ में आने लगा हैं। नहीं तो विदेशों में स्थित भारतीय राजदूतावास ऐसे मौकों पर सिर्फ मूकदर्शक ही बने रहते थे। इसलिए विदेशों में रह रहे भारतियों को अब लगने लगा है कि हम बेसहारा नहीं है। इस अहसास से विदेशों में बड़ी संख्या में रह रहा गुजराती समाज भी अछूता नहीं है।