उत्तर गुजरात में कद और पद दोनों पर भारी कांग्रेस का हार्दिक दांव
14 दिसंबर को होने वाले मेहसाणा के चुनाव में पांच मुस्लिम उम्मीदवार भी मैदान में हैं।
संजय मिश्र, मेहसाणा। पाटीदारों के अनामत आंदोलन का गढ़ रहे उत्तर गुजरात में चुनाव का सियासी पारा संभवत: सूबे में सबसे ज्यादा उबाल पर दिखाई दे रहा है। पाटीदारों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में आरक्षण आंदोलन के दौरान गुजरात शासन की सख्ती और बल प्रयोग के खिलाफ पाटीदारों का गुस्सा अभी तक उनके जेहन में गहरे बैठा है।
पाटीदारों के इस अंदरूनी उबाल का ही नतीजा है कि हार्दिक पटेल की चुनावी सभाओं में खूब भीड़ उमड़ रही है और उत्तर गुजरात की कई सीटों पर भाजपा को कांग्रेस के हार्दिक दांव से बाहर आने के लिए भारी संघर्ष करना पड़ रहा है। इसकी वजह से यहां का चुनावी मुकाबला इस कदर दिलचस्प हो गया है कि प्रदेश भाजपा के दिग्गज और उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल को भी मेहसाणा में तगड़ी चुनौती से जूझना पड़ रहा है।
चुनावी पैरामीटर में नितिन पटेल को चुनौती मिलना बड़ी बात मानी जा रही है क्योंकि वह इस इलाके में भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा ही नहीं बल्कि खुद पाटीदार समुदाय के प्रमुख नेता माने जाते हैं। सियासी कद और पद दोनों लिहाज से नितिन पटेल के लिए यह चुनाव इतना चुनौतीपूर्ण नहीं होना चाहिए था जैसा अभी दिख रहा है। कांग्रेस ने यहां से पाटीदार समाज के ही अपने पूर्व लोकसभा सांसद जीवाभाई पटेल को मैदान में उतारकर उपमुख्यमंत्री की चुनावी चिंता बढ़ा दी है।
दिलचस्प बात यह है कि पाटीदारों में नितिन पटेल के खिलाफ कोई निजी गुस्सा नहीं है मगर गुजरात पुलिस की अनामत आंदोलन के दौरान सख्ती और गोलीबारी में एक दर्जन से ज्यादा पाटीदार युवकों की मौत का मसला चुनाव अभियान में गरम है। 14 दिसंबर को होने वाले मेहसाणा के चुनाव में पांच मुस्लिम उम्मीदवार भी मैदान में हैं। इसको लेकर यहां तक दावे किए जा रहे हैं कि निर्दलीय मुस्लिम उम्मीदवारों को भाजपा का परोक्ष समर्थन मिल रहा है ताकि कांग्रेस के पाले में तय माने जाने वाले मुस्लिम वर्ग का हर संभव वोट बंट जाए।
पाटीदार युवा बोले, अपमान का जवाब देंगे
मेहसाणा शहर के युवा विकास पटेल और अमित पटेल साफ कहते हैं कि अभी बात आरक्षण देने की नहीं बल्कि उस अपमान का जवाब देने की है जिसमें हमारे लोगों को आंदोलन के दौरान ही नहीं बल्कि घरों से निकाल-निकालकर मारा गया। इनका साफ कहना था कि भले ही हमारे समाज के बडे़ बुजुर्ग कुछ नरम पड़ जाएं मगर युवा पटेल वर्ग के लिए हार्दिक की बात ही आखिरी है।
बनासकांठा जिले के विषनगर बस डिपो के निकट चाय दुकान पर खड़ी करीब दर्जनभर युवाओं की एक टोली से चुनावी चर्चा की बात छेड़ते ही अनामत आंदोलन में गुजरात पुलिस की कार्रवाई को लेकर कई लोग एक साथ बोल पड़ते हैं। इसमें एक युवा निशांत पटेल उस कार्रवाई को शासन का घमंड करार देते हैं। इस टोली में कुल आठ पटेल युवा थे जो इंजीनियरिंग, एमबीए, डिप्लोमा आदि की डिग्री के बाद नौकरी की बाट जोह रहे हैं और सभी हार्दिक को अपना हीरो बताने से हिचकते नहीं दिखे।
गैर-पाटीदारों में महंगी शिक्षा और बेरोजगारी पर बेचैनी
उत्तर प्रदेश के जौनपुर के यादवजी की चाय की दुकान के करीब खड़ी इस युवा मंडली में शामिल गैर-पाटीदार युवकों में भी नौकरी और महंगी शिक्षा को लेकर बेचैनी साफ दिखी। मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल करने के बाद भी बेकारी के दिन काट रहे रवि त्रिपाठी का कहना था कि सत्ता का गुरूर इतना है कि जब पटेलों की एकता की ताकत की कोई सुनवाई नहीं हुई तो बाकियों की बात सुनने की गुंजाइश ही कहां है और इसीलिए चुनाव एकतरफा नहीं है। मेहसाणा और विषनगर पटेल आरक्षण आंदोलन की शुरुआत के केंद्र रहे थे।
भाजपाई वोट बैंक में कांग्रेस लगा रही सेंध
चुनाव में पाटीदारों के उबाल को ठंडा करने की भाजपा के समक्ष चुनौती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीते तीन बार से उंझा विधानसभा की उसकी पक्की सीट भी हार्दिक भंवर में फंसी दिख रही है। पटेल ही नहीं ओबीसी समुदाय के भाजपाई वोट बैंक में कांग्रेस यहां सेंध लगाती दिख रही है। जैसा कि उंझा के चैनाजी राणाजी ठाकोर और चतुरजी जवान जी ठाकोर जैसे ओबीसी के बुजुर्गो ने विधायक को लेकर अपनी टिप्पणी के सहारे संकेत दिया।
उनका कहना था कि मोदीजी को तो हम पसंद करते हैं और वो हमारा जीव है। मगर यह विधायक हमें घृणा की नजर से देखता है तो फिर हम इसकी ओर क्यों देखें। उंझा के ही सुंढिया गांव के चौराहे पर हरगोविंद भाई रावत और प्रहलाद भाई पटेल सरीखे लोगों की राय भी इनसे जुदा नहीं थी। पाटीदारों और ओबीसी की भाजपा की अब तक वोट बैंक की थाती में साफ दिख रहा बंटवारा जाहिर तौर पर नितिन पटेल जैसे चर्चित चेहरे को भी यहां सियासी पसीना बहाने के लिए बाध्य कर रहा है।
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