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जानें, ममता 'दीदी' के राजनीतिक सफर की 10 बड़ी बातें

पश्चिम बंगाल में एक बार फिर ममता बनर्जी राज्य की सत्ता पर काबिज होती दिख रही है। जानिए ममता के बारे में ऐसी खास बातें जिनके बारे में आप नहीं जानते होंगे।

By Manish NegiEdited By: Published: Thu, 19 May 2016 12:18 PM (IST)Updated: Thu, 19 May 2016 04:34 PM (IST)
जानें, ममता 'दीदी' के राजनीतिक सफर की 10 बड़ी बातें

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में एक बार फिर टीएमसी प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य की सत्ता संभालने जा रही है। ममता बनर्जी ने अपना को बंगाल के लोग दीदी के नाम से भी जानते हैं। जानिए उनके बारे में 10 खास बातें।

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1. ममता का जन्म 05 जनवरी, 1955 को कोलकाता के प्रोमिलेश्वर बनर्जी और गायत्री देवी के घर हुआ था। निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाली ममता अपनी सादगी के लिए जानी जाती हैं। सफेद सूती साड़ी और हवाई चप्पल उनकी पहचान बन चुकी है।

2. कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने वाली ममता ने जोगेश चंद्र चौधरी कानून महाविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की।

3. ममता बनर्जी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस पार्टी के सदस्य के रूप में की थी। साल 1976 में वह महिला कांग्रेस की महासचिव चुनी गयी। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 1984 में जादवपुर संसदीय क्षेत्र से दिग्गज माकपा नेता सोमनाथ चटर्जी को हराकर सबसे कम आयु की सांसद चुनी गयी।

उन्हें युवा कांग्रेस का महासचिव भी बनाया गया। हालांकि साल 1989 के संसदीय चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा लेकिन केवल दो साल बाद एक बार फिर वह संसद पहुंचने में कामयाब रहीं। केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार में ममता को मानव संसाधन, युवा कल्याण, खेलकूद और महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री बनाया गया।

4. बतौर मंत्री उन्होंने कई बार अपनी ही सरकार के फैसलों का विरोध किया और आखिरकर साल 1997 में वह कांग्रेस पार्टी से अलग हो गयीं। इसके बाद उन्होंने एक जनवरी, 1998 को तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की। यह पार्टी मौजूदा लोकसभा में 34 सांसदों के साथ चौथी सबसे बड़ी पार्टी है।

5. साल 1999 में ममता भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हो गयीं और उन्हें केंद्रीय रेल मंत्री बनाया गया।

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6. 2001 में एक विवाद के बाद उन्होंने राजग सरकार से नाता तोड़ लिया लेकिन 2004 में एक बार फिर वह गठबंधन में शामिल हुईं और कोयला और खनन मंत्रालय का पद संभाला और उस वर्ष हुए आम चुनाव तक वह पद पर बनी रहीं।

7. साल 2005 में सिंगूर और नंदीग्राम में किसानों की जमीन के अधिग्रहण का ममता ने पुरजोर विरोध किया और आम लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से बढ़ा।

8. साल 2006 के पश्चिम बंगाल में हुए चुनाव में उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2009 में उनकी पार्टी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में शामिल हो गयीं और मनमोहन सिंह की सरकार में उन्होंने रेल मंत्री का पदभार संभाला।

9. 2011 के पश्चिम बंगाल चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने भारी अंतर से जीत दर्ज की और ममता राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। उनकी पार्टी ने 184 सीटें जीतीं, जबकि उनके सहयोगी दल कांग्रेस ने 42 सीटों पर जीत दर्ज की।

10. साल 2012 आते-आते उनकी पार्टी ने केंद्र की संप्रग सरकार से समर्थन वापस ले लिया। हालांकि मुख्यमंत्री बनने के बाद ही विरोधी नेता उन पर तानाशाही का आरोप लगाते रहे हैं। इसके अलावा उनके कार्यकाल में सारदा चिटफंड घोटाले की गूंज देशभर में सुनी गयी और ममता सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। दूसरी ओर चुनाव से ठीक पहले नारद स्टिंग के सामने आने से उनकी सरकार के लिए नयी मुसीबत खड़ी हो गयी।

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