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Delhi Election 2020: दिल्ली में दो दशक बाद सत्ता में कैसे वापसी करेगी भाजपा, प्रकाश जावडेकर ने बताया प्लान

दिल्ली में भाजपा के चुनाव प्रभारी एवं केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर से आशुतोष झा व संतोष कुमार सिंह ने विस्तृत बात की।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sun, 12 Jan 2020 08:47 AM (IST)Updated: Sun, 12 Jan 2020 12:15 PM (IST)
Delhi Election 2020: दिल्ली में दो दशक बाद सत्ता में कैसे वापसी करेगी भाजपा, प्रकाश जावडेकर ने बताया प्लान
Delhi Election 2020: दिल्ली में दो दशक बाद सत्ता में कैसे वापसी करेगी भाजपा, प्रकाश जावडेकर ने बताया प्लान

नई दिल्ली। दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है, भाजपा पिछले 21 वर्षों से सत्ता से दूर रही है। मौजूदा चुनाव में भाजपा किन मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी, उम्मीदवारों का चयन कैसे होगा व विरोधी दलों पर हमले की रणनीति क्या होगी, इन बिंदुओं पर आशुतोष झासंतोष कुमार सिंह ने दिल्ली में पार्टी के चुनाव प्रभारी एवं केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर से विस्तृत बात की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश :

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भाजपा दिल्ली की सत्ता से 21 वर्षों से बेदखल है। क्या इस बार वनवास खत्म होगा?

कांग्रेस से दिल्ली सहित देशभर में लोग बेहद नाराज हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी (आप) पिछली बार दुर्घटनावश सत्ता में आई थी। अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद लोगों को लगा कि कोई नया हीरो आया है और वह सच बोलेगा और सभी का काम करेगा। भ्रष्टाचार नहीं करेगा और जनलोकपाल लाएगा। वादे के अनुसार गाड़ी-बंगला नहीं लेगा। दिल्लीवासियों को निराशा हाथ लगी है। जनलोकपाल का नाम भी नहीं लिया गया।

प्रधानमंत्री लोकपाल लाए। केजरीवाल व उनके नेताओं ने गाड़ी भी ली और बंगले भी। आप के कई नेताओं पर गंभीर आरोप लगे हैं और जमानत पर हैं। झूठ की सरकार इनकी पहचान है। साढ़े चार साल सोते रहे। बहाना बनाते रहे कि मोदी काम नहीं करने देते हैं, गाली देते रहे। अब चुनाव के समय कैसे काम कर रहे हैं। दरअसल, काम करने की इनकी नीयत नहीं थी। आज दिल्ली का पानी सबसे गंदा है, जिसकी जिम्मेदारी इनकी है। सिर्फ दूसरों को दोष देते हैं और अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते हैं। लोग अब इनके जाल में नहीं फंसेंगे। एक ओर झूठ की सरकार है और दूसरी ओर मोदी सरकार के साढ़े पांच साल का कामकाज है।

मोदी और भाजपा का नारा सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास है? जिस तरह से लोग नाराज होकर सड़कों पर निकल रहे हैं, उससे नहीं लगता है कि विश्वास कहीं टूट रहा है?

ऐसा नहीं है, देशभर में लोगों का विश्वास बढ़ा है। दूसरी बार जब मोदी जीतकर आए तो कुछ लोग बहुत निराश हुए हैं। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कुछ लोग पहले दिन से ही हिंसा होने की उम्मीद में बैठे थे। कोई हिंसा नहीं हुई। राम मंदिर निर्माण पर भी फैसला आया और शांति कायम रही। इससे हताश लोग नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर भ्रम फैला रहे हैं। एनआरसी की अभी बात भी नहीं है। सिर्फ असम में यह है और वह कांग्रेस ने लागू किया था। दिल्ली में हिंसा कराने व करने वालों को लोग देख रहे हैं।

जामा मस्जिद, जामिया, सीलमपुर में आप व कांग्रेस के नेताओं ने हिंसा कराई। वे झूठ फैला रहे हैं कि यहां के नागरिकों को बाहर जाना पड़ेगा। हकीकत यह है कि सीएए पड़ोसी देशों से आए हुए शरणार्थियों को नागरिकता देने का कानून है, न कि किसी को बाहर करने का। लोग सच समझ रहे हैं। यही कारण है कि सीएए के समर्थन में मिस्ड कॉल अभियान को अबतक एक करोड़ से ज्यादा लोगों का समर्थन मिल चुका है। देशभर में लोग इसके समर्थन में सड़क पर आ रहे हैं। पड़ोसी देशों में हिंदू, अनुसूचित जाति और अन्य अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जा रहा है। उनके सामने भारत आने का ही विकल्प बचता है। गांधी जी ने भी इन लोगों को भारत में नागरिकता देने का वादा किया था।

लेकिन आरोप तो यह लग रहा है कि भाजपा सीएए और एनआरसी के जरिये मतदाताओं का ध्रुवीकरण करना चाहती है और इसीलिए आज भी कुछ नेता एनआरसी की बात करते हैं?

यह छोटी सोच है। भाजपा देश के लिए सोचती है। सभी से मिलकर देश को आगे बढ़ाने में भाजपा विश्वास करती है। पूरा विश्वास है कि सीएए को लेकर भ्रम फैलाने की कोशिश विफल होगी।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया व जेएनयू में हिंसा किसकी विफलता है?

यह जानबूझकर फैलाई गई हिंसा है। जब सारे नकाबपोश बेनकाब हो जाएंगे तो सभी को पता चल जाएगा कि किसने हिंसा की। जेएनयू में इससे पहले भी देश के टुकड़े-टुकड़े करने के नारे लगे थे। दिल्ली सरकार देशविरोधी नारे लगाने वाले के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की अनुमति नहीं दे रही है। देश में नौ सौ के करीब विश्वविद्यालय हैं, जिनमें से सात-आठ विश्वविद्यालय में विरोध-प्रदर्शन हुए हैं। शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन करने वालों का हम सम्मान करते हैं। उन्हें समझाया जाएगा, लेकिन हिंसा करने वालों का कभी समर्थन नहीं होगा। चर्चा सिर्फ 5 जनवरी की घटना पर हो रही है, लेकिन जेएनयू में हिंसा पहले से हो रही थी। एक जनवरी को 11 सौ छात्रों के रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरने से आंदोलन करने वाले बौखला गए और नकाब पहनकर सर्वर रूम में तोड़फोड़ और छात्रों की पिटाई की। एक महिला प्राध्यापक के साथ भी मारपीट की गई, जिससे मामला भड़क गया। फीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन शांतिपूर्ण होना चाहिए था।

चुनाव से पहले अनधिकृत कॉलोनियों में लोगों को मालिकाना हक देने का फैसला सत्ता से दूर रहने की हताशा तो नहीं है?

चुनाव से इसका कोई संबंध नहीं है। पिछले कई वर्षों से केंद्र सरकार के बार-बार कहने के बावजूद दिल्ली सरकार ने नक्शा तैयार नहीं किया। जब इन्होंने वर्ष 2021 तक का समय मांगा तो केंद्र सरकार ने सैटेलाइट के माध्यम से 50 दिनों में नक्शा तैयार कर लिया। एक लाख से ज्यादा लोग आवेदन कर चुके हैं। लोगों को रजिस्ट्री मिलने लगी है। चुनाव से पहले लगभग 50 हजार लोगों की रजिस्ट्री हो जाएगी। इसके साथ ही व्यापारियों की संपत्ति को फ्री होल्ड करने, कन्वर्जन शुल्क माफ करने, घरों में चलने वाले उद्योगों को राहत देने और

‘जहां झुग्गी वहां मकान’ देने का फैसला किया गया है। दस लाख लोगों को दो कमरे का फ्लैट मिलेगा।

मुख्यमंत्री रजिस्ट्री पर सवाल उठा रहे हैं?

लोगों को मालिकाना हक चाहिए था, जिससे उन्हें बैंक से ऋण मिल सके और विकास व संपत्ति की खरीद-बिक्री में दिक्कत नहीं हो। केजरीवाल सरकार यह काम नहीं कर सकी, हमने कर दिया। अब वह भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।

चुनावी मुद्दा क्या होगा?

 झूठ बोलने वाली सरकार हटाओ और काम करने वाली सरकार लाओ। मोदी सरकार देशभर में काम कर रही है। वर्ष 2015 में मोदी सरकार का एक साल हुआ था। उस समय केजरीवाल एक रोमांटिक हीरो की तरह राजनीति में आए थे और लोगों ने उनके झूठे वादों पर विश्वास कर लिया था। अब उनकी सच्चाई सामने आ गई है। लोगों ने मोदी सरकार का काम और उनकी प्रतिबद्धता देखी है। उनके काम के आधार पर हम वोट मांगेंगे।

आपका कहना है कि मुफ्त बिजली-पानी और ¨पक बस टिकट का चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा?

साढ़े चार वर्षों तक क्यों नहीं दिया गया। अब छह माह रह गया तो एक के बाद एक निर्णय लेने लगे। लोग अंतिम मिनट में दिए गए तोहफे को स्वीकार नहीं करते हैं।

हाल में कुछ राज्यों के चुनाव में आर्थिक मंदी व बेरोजगारी का असर भी दिखा था। दिल्ली को इससे कैसे बचाएंगे?

इसे मंदी नहीं, इसे स्लो डाउन कहेंगे। यह विश्वभर में है, जिसका असर भारत पर भी पड़ा है। हमारा फंडामेंटल मजबूत हैं और विश्व के अन्य देशों से पहले हम इस समस्या से बाहर निकलेंगे।

वर्ष 2015 में भाजपा को दिल्ली में अपने सदस्यों की संख्या के बराबर भी वोट नहीं मिले थे?

उस समय कुछ और माहौल था। हमारे लोगों को भी लगा था कि किसी नई राजनीतिक संस्कृति की शुरुआत होने वाली है। लोग भ्रमित थे, लेकिन अब भ्रम टूट गया है, क्योंकि धरातल पर काम नहीं हुआ है। इस बार भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगी।

कहा जा रहा है कि दिल्ली में भाजपा पांच वर्षों में अपना कोई नेता तैयार नहीं कर सकी?

हमारे पास नेता का अभाव नहीं है। दिल्ली में हमारे पास कई नेता हैं, केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी शामिल हैं। कई नेता सांसद चुने गए हैं। चेहरा घोषित करना या नहीं करना, यह चुनावी रणनीति का हिस्सा होता है। वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को चेहरा घोषित किया गया था, लेकिन उसके तुरंत बाद हरियाणा व झारखंड में हुए विधानसभा चुनाव में कोई चेहरा घोषित नहीं था और हम चुनाव जीते थे। प्रत्येक जगह अलग-अलग रणनीति होती है। एक राय से हमारा नेता आपके सामने आएगा और बहुत शानदार तरीके से काम करके दिखाएंगे।

कोई परिपक्व चेहरा आएगा या नया?

इंतजार कीजिए सबकुछ सामने आ जाएगा।

मान लिया जाए कि भाजपा चेहरे के साथ चुनाव मैदान में जा रही है?

नहीं, नहीं। अभी कोई चेहरा घोषित नहीं किया है। मोदी सरकार के काम के आधार पर हम लोगों के बीच जा रहे हैं। लोगों को बता रहे हैं कि दिल्ली में भी काम करने वाली सरकार देंगे। केंद्र के साथ नगर निगमों में भी हमारी सरकार है। चुनाव जीतने के बाद ट्रिपल इंजन की सरकार चलेगी।

नगर निगमों पर आप भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही है?

केजरीवाल सरकार ने नगर निगमों का गला घोंटा है। निगमों के हक के दस हजार करोड़ रुपये नहीं दिए गए। बावजूद इसके नगर निगमों ने अच्छा काम किया है। डेंगू से बचाव के लिए निगमों ने काम किया, लेकिन श्रेय केजरीवाल खुद ले रहे हैं।

हाल में हुए कई राज्यों के चुनाव में भाजपा को झटका लगा है?

-महाराष्ट्र में हम 160 सीटें जीतकर बहुमत में आए थे। हमारा एक घटक दल मतदाताओं से विश्वासघात करके उनकी गोद में बैठ गया, जिसके खिलाफ हम मिलकर चुनाव लड़े थे। यह राजनीतिक भ्रष्टाचार है। झारखंड में जरूर हमें अपेक्षित परिणाम नहीं मिले हैं।

पिछली बार चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार इस बार भी मैदान में उतरेंगे या बदले जाएंगे?

-किए गए काम और जीत की संभावना को आधार बनाकर प्रत्याशियों का निर्णय होता है। वैज्ञानिक पद्धति से इसकी समीक्षा की जाती है। भाजपा की विशेषता है कि एक बार उम्मीदवार घोषित होने के बाद पार्टी मजबूती के साथ उसके साथ खड़ी रहती है। 14 से नामांकन शुरू हो रहा है, उससे पहले भी कई उम्मीदवार घोषित हो सकते हैं।

अकेले चुनाव लड़ेंगे या फिर कुछ दलों के साथ समझौता होगा?

अकाली दल के साथ पहले भी दिल्ली में समझौता रहा है। इस बार अभी इस बारे में बात नहीं हुई है, जल्द निर्णय लेंगे।

जननायक जनता पार्टी के साथ भी दिल्ली में समझौता करेंगे?

जजपा के साथ भी अभी कोई चर्चा नहीं हुई है। आने वाले तीन-चार दिनों में महत्वपूर्ण निर्णय लेंगे।

मुख्य लड़ाई आप से होनी चाहिए, लेकिन भाजपा कांग्रेस पर भी हमला कर रही है। क्या ऐसा विरोधी मतों के विभाजन के लिए किया जा रहा है?

कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 26 आप को 16 फीसद वोट मिले थे। आप ने लोगों का विश्वास खो दिया है। भाजपा को 56 फीसद वोट मिले थे।  साढ़े चार साल सोते रहे और बहाना बनाते रहे कि मोदी काम नहीं करने देते हैं। अब चुनाव के समय काम कर रहे हैं। दरअसल इनकी नीयत ही काम काम करने की नहीं थी। अन्ना आंदोलन के बाद लोगों को लगा कि कोई नया हीरो आया है, जो न गाड़ी लेगा और न बंगला और जन लोकपाल भी लेकर आएगा।

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