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आखिर कैसे मोहरे से मात खा गए सियासत के वजीर? पढ़िए- 2015 के चुनाव की दिलचस्प स्टोरी

दिल्ली विधानसभा चुनाव-2015 में कांग्रेस शून्य पर आ गई जबकि इससे पहले कांग्रेस ने दिल्ली की सत्ता पर शीला दीक्षित के नेतृत्व में 15 साल तक राज किया था।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 17 Jan 2020 11:52 AM (IST)Updated: Wed, 22 Jan 2020 05:23 PM (IST)
आखिर कैसे मोहरे से मात खा गए सियासत के वजीर? पढ़िए- 2015 के चुनाव की दिलचस्प स्टोरी
आखिर कैसे मोहरे से मात खा गए सियासत के वजीर? पढ़िए- 2015 के चुनाव की दिलचस्प स्टोरी

नई दिल्ली [निहाल सिंह]। दिल्ली विधानसभा चुनाव-2015 का चुनाव परिणाम लोग दशकों तक नहीं भुला पाएंगे, क्योंकि यह चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए तबाही लेकर आया था। अरविंद केजरीवाल की लहर पर सवार होकर आम आदमी पार्टी ने ऐसा एतिहासिक प्रदर्शन किया कि कांग्रेस की पूरी राजनीति ही ताश के पत्तों की तरह ढह गई। हालत यह हो गई कि दिल्ली विधानसभा चुनाव-2015 में कांग्रेस शून्य पर आ गई, जबकि इससे पहले कांग्रेस ने दिल्ली की सत्ता पर शीला दीक्षित के नेतृत्व में 15 साल तक राज किया था।

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हार गए हारून

सियासी चौपड़ पर कब कौन सा मोहरा वजीर को मात दे देगा। इसका अंदाजा बड़े-बड़े खिलाड़ी भी नहीं लगा पाते हैं। ऐसा ही 2015 के चुनाव में भी हुआ, जब बल्लीमारान के वजीर कहे जाने वाले हारून यूसुफ को राजनीति के अखाड़े में पहली बार उतरे आम आदमी पार्टी के मोहरे (इमरान हुसैन)ने मात दे दी।

2013 में भी टूटा था तिलिस्म

इस विधानसभा सीट पर हारून की बादशाहत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1993 से शुरू हुआ उनकी जीत सिलसिला 2013 में उस समय भी नहीं टूटा, जब नवोदित आम आदमी पार्टी ने सत्ताधारी कांग्रेस के कई किलों को ध्वस्त कर दिया था।

भाजपा से भी पिछड़ गए कांग्रेस प्रत्याशी

2015 के चुनाव में इमरान हुसैन इस सीट पर 57118 वोट लेकर विजयी हुए थे, जबकि भाजपा के उम्मीदवार श्याम लाल मोरवाल 23241 मत लेकर दूसरे स्थान पर रहे थे। वहीं इस सीट से 20-22 हजार के अंतर से जीत दर्ज करते रहे कांग्रेस प्रत्याशी हारून युसूफ को केवल 13176 वोट ही मिले थे। लगातार बड़ी जीतें हासिल करने से यूसुफ को राजधानी का कद्दावर मुस्लिम चेहरा माना जाने लगा था। वह 1993 में चुनाव जीतने के बाद विधानसभा की कई समितियों के सदस्य बनाए गए थे।

वहीं 1998 में वह विधानसभा की पब्लिक अकाउंट्स कमेटी के चेयरमैन बने। 2003 में फिर कांग्रेस को जीत मिली और हारून बल्लीमारान से विधानसभा पहुंचे। तीसरी बार विधायक बनने पर उन्हें शीला दीक्षित की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया। 2008 में भी उनका रुतबा बरकरार रहा। हालांकि, 2013 में यूसुफ तो विधानसभा पहुंच गए, लेकिन कांग्रेस को केवल आठ सीटों पर ही जीत मिली। इस बार कांग्रेस के समर्थन से आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई, जो 49 दिन ही चल सकी और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 2015 में इमरान यहां से जीते और दिल्ली सरकार में मंत्री बने। इससे पहले वह बल्लीमारान से निर्दलीय पार्षद भी बने थे।

आसिम बाहर हुए तो इमरान बने मंत्री

2015 में हारून यूसुफ को हराकर इमरान हुसैन अचानक सियासी फलक पर चमक उठे। लेकिन, मंत्री पद शोएब इकबाल को हराने वाले आसिम अहमद झटक ले गए। हालांकि, कुछ माह बाद ही भ्रष्टाचार के आरोप में उन्हें केजरीवाल ने कैबिनेट से बाहर कर दिया। इसके बाद उनकी जगह इमरान को मंत्री बना दिया गया। उन्हें उस दौरान खाद्य एवं आपूर्ति जैसे अहम विभाग की जिम्मेदारी दी गई। 

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