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Delhi Election 2020: गठबंधन से बदली सियासत, दिल्ली में कांग्रेस ने पहली बार किया प्रयोग

Delhi Election 2020 AAP सत्ता को बचाने के लिए पूरी ताकत लगाए हुए है वहीं कांग्रेस अपना वजूद बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है। भाजपा 21 साल बाद सत्ता में वापसी चाहती है।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 09:04 AM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 12:47 PM (IST)
Delhi Election 2020: गठबंधन से बदली सियासत, दिल्ली में कांग्रेस ने पहली बार किया प्रयोग
Delhi Election 2020: गठबंधन से बदली सियासत, दिल्ली में कांग्रेस ने पहली बार किया प्रयोग

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। Delhi Election 2020 : गठबंधन की सियासत से दिल्ली की राजनीतिक पहचान भी बदल रही है, जहां हमेशा से सत्ता पर एक ही सियासी दल काबिज रहता आया है वहां अब सत्ता साझा करने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। यही वजह है कि इस दफा पहली बार कांग्रेस ने भी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को साथ मिला लिया है। दूसरी तरफ, भाजपा ने परंपरागत सहयोगी शिरोमणि अकाली दल बादल को छोड़कर लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के रूप में नए साथी बना लिए हैं। इसमें दो राय नहीं कि इस बार के चुनाव परिणाम दिल्ली का सियासी चेहरा भी बदल सकते हैं।

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तीनों दलों BJP-AAP और कांग्रेस के लिए अहम है यह चुनाव
मुगलकाल से सत्ता का केंद्र रही दिल्ली का चुनाव सिर्फ दिल्ली के लिए नहीं होता। यहां से पूरे देश को एक संदेश जाता है। इसलिए यहां के चुनाव पर पूरे देश की निगाहें होती हैं। इस बार यह चुनाव भी कुछ अलग ही रंग लिए हुए है। 2015 के विधानसभा चुनाव में आप ने अप्रत्याशित जीत दर्ज करते हुए 70 में से 67 सीटें हासिल कर ली। भाजपा ने तो तीन सीटें किसी तरह हासिल भी कर ली, लेकिन कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल सका। इस बार भी तीनों दलों के लिए यह चुनाव खास अहमियत रखता है।

AAP के लिए सत्ता बचाने की चुनौती

एक तरह मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में AAP सत्ता को बचाने के लिए पूरी ताकत लगाए हुए है, वहीं कांग्रेस अपना वजूद बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है। वह किसी भी तरह से दिल्ली की राजनीति में वापसी करना चाहती है। भाजपा के लिए दिल्ली की सत्ता हासिल करना बड़ी चुनौती है, क्योंकि देशभर में हुए कई राज्यों के विधासनभा चुनाव में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है, हरियाणा में भी जैसे-तैसे ही सत्ता बचाने में कामयाब रह पाई।

पीएम मोदी के सहारे भाजपा

अब भाजपा किसी भी हालत में दिल्ली की सत्ता चाहती है, इसके लिए भाजपा ने पूरी फौज दिल्ली में उतारने का निर्णय लिया है। भाजपा ने दिल्ली में देशभर के 100 से अधिक सांसदों को मैदान में उतारने का निर्णय लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 40 स्टार प्रचारकों को भी उतारा है।

कांग्रेस भी उतरी स्टार प्रचारकों के साथ मैदान

कांग्रेस भी पूरी ताकत लगाए हुए है। कांग्रेस ने टिकट भी काफी सोच-विचारकर दिया है। सोनिया, प्रियंका, राहुल सहित कांग्रेस ने भी 40 स्टार प्रचाकरों को मैदान में उतार दिया है। क्षेत्रवार रणनीति तैयार की गई है। जाटों वाले इलाके में जाट प्रचार करेंगे तो पूर्वांचलियों के लिए अलग रणनीति बनाई गई है। वैसे आप ने सत्ता हासिल करने के लिए जिस तरह से घोषणाओं की घेराबंदी की है, भाजपा और कांग्रेस उसकी काट के तरीके तलाश रही है। इनकी कोशिश का असर कितना होता है यह तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे। फिलहाल तीनों पार्टियां हर दांव-पेच आजमाने में लगी हैं।

कांग्रेस और भाजपा ने चला बड़ा दांव

सभी पार्टियां चाहती हैं कि दिल्ली की सत्ता में उनका प्रतिनिधित्व भी हो। इसके लिए कांग्रेस ने पहली बार लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद को चार सीटें दी है। दिल्ली में बिहार की पार्टी पहली बार मैदान में कांग्रेस के साथ गठबंधन में उतरी है। बिहार की अन्य क्षेत्रीय पार्टी जदयू भी भाजपा के साथ गठबंधन में दिल्ली के चुनावी मैदान में है। भले ही जदयू को भाजपा ने दो ही सीट दी हों लेकिन साफ संकेत हैं कि पूर्वांचलियों को साधने के लिए वह हर कदम उठाने के लिए तैयार हैं। भाजपा ने एक सीट लोजपा को भी दी है। वैसे यहां यह बता दें कि बिहार की दोनों ही पार्टियों ने बिहार के गठबंधन को आगे बढ़ाते हुए दिल्ली में गठबंधन की मांग रखी थी, जिसे भाजपा और कांग्रेस को मानना पड़ा। दूसरी तरफ, सालों से चली आ रही भाजपा-अकाली गठबंधन में छेद हो गया है। अकाली दल का चुनाव मैदान में नहीं उतरना भाजपा के साथ सीएए के विरोध का प्रतिकार है।

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