क्या हारने के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ेगी कांग्रेस, पढ़ें- पार्टी की दुर्गति पर यह स्टोरी
आलम यह हो गया है कि आम आदमी पार्टी (aam aadmi party) और भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janta Party) जहां पूरे चुनावी मोड में आ चुकी है लेकिन कांग्रेस का कोई अता-पता ही नहीं है।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। Delhi assembly Election: कुछ ही समय बाद बजने वाली दिल्ली विधानसभा चुनाव की रणभेरी को ध्यान में रख भाजपा और आम आदमी पार्टी जहां अपने अस्त्र शस्त्रों को धार दे रही हैं वहीं प्रदेश कांग्रेस बिना सेनापति के हर दिन हार रही है। आलम यह है कि पार्टी के नेता, कार्यकर्ता और पदाधिकारी घर बैठे हैं तो कार्यालय में सन्नाटा पसरा रहता है। टिकटार्थी भी यहां तक कहने लगे हैं कि चुनाव लड़ेंगे जरूर, लेकिन हारने के लिए। सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष रहने के दौरान कांग्रेस दिल्ली में विधानसभा चुनाव हारी तो यह खुद सोनिया के लिए बड़ा झटका होगा। वहीं, लगता नहीं कि दिल्ली कांग्रेस में जल्द हालात सुधरने वाले हैं, जबकि अगले पांच महीने के भीतर दिल्ली विधानसभा चुनाव होना तय है।
सेनापति के बिना हर दिन हार रही कांग्रेस
पिछले करीब डेढ़ माह से प्रदेश कांग्रेस बिना किसी अध्यक्ष के ही चल रही है। गत 20 जुलाई को शीला दीक्षित का निधन क्या हुआ, मानो पार्टी भी कोमा में चली गई। चूंकि नया अध्यक्ष बनते ही प्रदेश के तीनों कार्यकारी अध्यक्षों का हटना भी तय है एवं प्रदेश कार्यकारिणी का नए सिरे से गठन भी, तो ऐसे में ज्यादातर का जोश भी ठंडा पड़ गया है। बीच-बीच में कोई छोटा मोटा बयान भले जारी कर दिया जाए, लेकिन इसके इतर विधानसभा चुनावों को लेकर पार्टी की कोई तैयारी नहीं है।
विधानसभा चुनाव के लिए दोनों ही विरोधी दल हो चुके हैं सक्रिय
आलम यह हो गया है कि आम आदमी पार्टी (aam aadmi party) और भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janta Party) जहां पूरे चुनावी मोड में आ चुकी है और आए दिन एक दूसरे पर हमलावर भी हो रही हैं, वहीं कांग्रेस दूर खड़ी भी दिखाई नहीं पड़ती। विरोधी पार्टियां मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर बहस कर रही हैं, जबकि कांग्रेस को एक अदद सेनापति तक नहीं मिल पा रहा है। विडंबना यह कि अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल नेता भी अब तो थक-हारकर बैठ गए हैं कि जो होगा देखा जाएगा, इसीलिए बीच बीच में दिल्ली अध्यक्ष के तौर पर बाहर के नेताओं का नाम भी उछलने लगा है।
अध्यक्ष ना होने से कांग्रेस पड़ी है सुस्त, प्रदेश कार्यालय भी वीरान
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक पहले इसलिए निर्णय लटकता रहा कि पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष ही कोई नहीं था। बाद में सोनिया गांधी को पार्टी की कमान सौंप दी गई तो वह भी अभी तक प्रदेश की कमान किसे सौंपे, यह निर्णय नहीं ले पा रही हैं। अब तो विरोधियों की ओर से यहां तक कहा जाने लगा है कि जिस पार्टी को एक योग्य अध्यक्ष तक नहीं मिल पा रहा है, वह मुख्यमंत्री का चेहरा तो ढूंढ़ ही नहीं पाएगी।
गुटबाजी भी है कांग्रेस
यह भी अत्यंत निराशाजनक है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस के पास प्रदेश में कोई ऐसा सर्वमान्य नेता नहीं है जिसे बिना किसी किंतु-परंतु के दिल्ली की कमान सौंपी जा सके। हैरत की बात यह कि इन हालातों में भी गुटबाजी कम नहीं है। एक दो नहीं बल्कि गुट भी कई- कई गुट बने हुए हैं। कोई किसी को नहीं चाहता तो कोई किसी को पसंद नहीं करता। बहरहाल, इन हालातों में पार्टी के लिए विधानसभा चुनाव में जीत तो दूर की बात, अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज करा पाने में भी संदेह ही लग रहा है। लोकसभा चुनाव में पार्टी का जो मत फीसद 22.4 तक पहुंचा था, कहीं विधानसभा चुनाव में वापस 15 के आसपास ही न आ जाए।
आलाकमान अन्य राज्यों में बिजी
पीसी चाको (प्रदेश प्रभारी, दिल्ली कांग्रेस) के मुताबिक, कांग्रेस आलाकमान कई अन्य राज्यों को लेकर व्यस्त हैं, इसीलिए दिल्ली के अध्यक्ष का निर्णय होने में समय लग रहा है। हालांकि उनके साथ हर पहलू पर बैठक और चर्चा हो चुकी है। मेरा मानना है कि इस सप्ताह दिल्ली कांग्रेस काे नया अध्यक्ष मिल जाना चाहिए।