Delhi Election 2020: चुनावों में दुर्गति से दिल्ली कांग्रेस में बढ़ेगी कलह
Delhi Election 2020अभी भले ही एक्जिट पोल की सत्यता पर सवाल उठ रहे हों लेकिन यदि यह सही निकले तो दिल्ली कांग्रेस की दुर्गति तय है।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। Delhi Election 2020: अभी भले ही एक्जिट पोल की सत्यता पर सवाल उठ रहे हों, लेकिन यदि यह सही निकले तो दिल्ली कांग्रेस की दुर्गति तय है। इससे पार्टी में कलह भी बढ़ेगी। जो अनेक बड़े नेता अभी चुनाव के कारण खामोश चल रहे हैं, उनका आक्रोश फूटने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
चुनाव बाद आक्रोश फूटने की संभावना
2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। इस बार भी ज्यादातर एक्जिट पोल कांग्रेस को 0 से 3 सीटें ही दर्शा रहे हैं। हालांकि पार्टी आठ से 10 सीटों पर कड़ी टक्कर बता रही है, लेकिन दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। अगर पार्टी कुछ सीटें निकाल ले गई तो प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा का कद बढ़ना तय है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो पार्टी में बगावत बढ़ने की आशंका से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।
पार्टी के कई वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ता टिकट कटने से नाराज
सूत्रों के मुताबिक प्रचार समिति के अध्यक्ष कीर्ति आजाद के साथ चोपड़ा की नहीं पट रही है, यह बात सर्वविदित है। बेटे मुदित अग्रवाल की टिकट कटने से पूर्व सांसद जयप्रकाश अग्रवाल भी नाराज हैं, लेकिन फिलहाल खामोश हैं। अपनी पसंद के एक भी उम्मीदवार को टिकट नहीं दिए जाने से पूर्व सांसद अजय माकन भी खुश नहीं हैं। प्रदेश प्रभारी पीसी चाको के साथ भी प्रदेश कांग्रेस नेताओं के संबंध बहुत मधुर नहीं हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष योगानंद शास्त्री टिकट वितरण में असंतोष जताते हुए पहले ही पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं। पार्टी के बहुत से वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ता अपनी टिकट कटने से भी आक्रोश में हैं।
मतदान केंद्रों पर गैर मौजूदगी रखने का आरोप
राजनीतिक जानकार कांग्रेस पर प्रचार में पिछड़ने के साथ-साथ मतदान केंद्रों पर गैर मौजूदगी रखने का आरोप भी लगा रहे हैं। यह बात बार-बार उठती भी रही है कि आप और भाजपा के प्रचार की तुलना में कांग्रेस कहीं नहीं टिकी। ज्यादातर प्रत्याशी एकला चलो की नीति पर ही लड़ते हुए दिखाई दिए। पहली बार दिल्ली में कांग्रेस ने क्षेत्रीय दल राजद (राष्ट्रीय जनता दल) के साथ चार सीटों पर गठबंधन किया। विडंबना यह है कि 66 सीटों में से अनेक विधानसभा क्षेत्रों से पार्टी के ऐसे भी अनेक उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे, जिन्होंने मतदान केंद्रों के बाहर पार्टी एजेंटों की टेबल लगाना भी जरूरी नहीं समझा।
बढ़ सकती है दिल्ली कांग्रेस में गुटबाजी
सूत्र बताते हैं कि पिछले पांच साल से दिल्ली की सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस में पहले भी कलह होती रही है। माकन के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए भी दिल्ली कांग्रेस गुटबाजी से अछूती नहीं थी और शीला दीक्षित के अध्यक्ष बनने के बाद तो शीला और चाको के मतभेद जगजाहिर हो गए थे। हालांकि सुभाष चोपड़ा चूंकि सबको साथ लेकर चलने वाले हैं, इसलिए फिलहाल कई माह से कोई गुटबाजी भले सामने नहीं आ रही है, लेकिन यह भी तय है कि अगर विधानसभा चुनाव के नतीजों में मंगलवार को इस बार भी 2015 के परिणाम की पुनरावृत्ति हुई तो दबी कलह फिर फूटेगी और इससे दिल्ली कांग्रेस की दुर्गति ही होगी, प्रगति नहीं।