पढ़िए चुनाव की दिलचस्प स्टोरी, नारा लगाने वाले नेताजी को ही नहीं जानते...
टिकट चाहने वाले नेता आजकल अपने आका खोजने में लगे हैं जिसकी जहां तक पहुंच। कोई प्रदेश अध्यक्ष के चरण पकड़ रहा है तो कोई प्रदेश प्रभारी के। कोई किसी नेता को पकड़ रहा है और किसी को।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। सत्ता के संग्राम का बिगुल क्या बजा, देश के सबसे पुराने सियासी दल की प्रदेश इकाई में एकाएक भीड़-भाड़ बढ़ गई है। टिकटार्थी के तौर पर अनेकानेक नेता अपना शक्ति प्रदर्शन करने पार्टी कार्यालय पहुंच रहे हैं। साथ में ला रहे हैं पैरोकारों की कतार। पार्टी कार्यालय पहुंचते ही पैरोकार नेता जी के नाम पर जिंदाबाद के नारे लगाने लगते हैं। इन नारों से वे न केवल नेताजी का हौसला बुलंद करते हैं बल्कि पार्टी नेतृत्व पर उनको ही टिकट देने का दबाव भी बनाते हैं। दिलचस्प ये कि पैरोकार जिसके नाम पर नारे लगाते हैं, उसके बारे में अच्छे से जानते तक नहीं होते। जब किसी से पूछा जाता है कि किसके लिए टिकट मांगने आए हो और कहां से आए हो तो उनके जवाब में ही विरोधाभास आ जाता है। ऐसे में कहीं से आवाज आती है- भाड़े के टट्टू। किराये पर आए पैरोकार पकड़े ही जाते हैं।
राजनीति जो न कराए
राजनीति भी क्या क्या न कराए। जब शीला दीक्षित जीवित थीं तो उनके समर्थकों को प्रदेश प्रभारी पीसी चाको फूटी आंख न सुहाते थे। कभी उन पर कुछ आरोप लगाते, कभी लड़ने ही बैठ जाते एवं कभी अवज्ञा कर जाते। मैडम नहीं रहीं तो प्रभारी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। सार्वजनिक रूप से उन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया। जल में रहकर मगर से बैर किया तो अनुशासन समिति का नोटिस भी ङोलना पड़ा। जवाब देते नहीं बना। आखिरकार पहले लिखित में माफी मांगी और फिर क्लीन चिट मिल जाने पर उन्हीं प्रभारी महोदय का आभार जताया। पूरे प्रकरण में कसूरवार मंडली बाद में सफाई भले कुछ देती रही हो, लेकिन कहने वाले तो कह ही गए कि थूक कर चाट गए। समझदार लोग सही कहते हैं कि सत्ता का नशा है ही ऐसा जो कुछ भी करवा जाए। क्या भला, क्या बुरा। मतलब सधा तो गलती मान ली।
पकड़ो सही चैनल, निर्णय लेगा पैनल
टिकट चाहने वाले नेता आजकल अपने आका खोजने में लगे हैं, जिसकी जहां तक पहुंच। कोई प्रदेश अध्यक्ष के चरण पकड़ रहा है तो कोई प्रदेश प्रभारी के। कोई किसी नेता को पकड़ रहा है और किसी नेता को। बहुत कम लोग हैं जो सही चैनल पकड़ रहे हैं। ऐसे में प्रभारी महोदय किसी को गलतफहमी में न रखकर हिदायत भी कुछ इसी तरह की दे रहे हैं। उनके पास जो कोई जा रहा है, एक ही सलाह पा रहा है- प्रदेश अध्यक्ष महोदय के पास जाइए। वहां से नाम आएगा तो ही पैनल में विचार किया जाएगा। प्रभारी की इस दो टूक सलाह को बहुत से नेता सराह रहे हैं तो बहुत से ऐसे भी हैं जो टिकटार्थियों से बयाना पकड़ने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। हर किसी को आश्वासन दे देते हैं, अरे हम बैठे हैं न, हो जाएगा टिकट, चिंता बिल्कुल मत कर।
टीवी मिला, अब कनेक्शन का इंतजार
हाथ छाप पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को 55 इंच का बड़ा टीवी मिला तो उनका छोटा टीवी बड़बोले नेता यानि मुख्य प्रवक्ता मुकेश शर्मा ले गए। टीवी तो ले गए, लेकिन कनेक्शन का अभी तक इंतजार ही कर रहे हैं। पहले तो कोशिश चल रही थी कि बड़बोले नेता को यह टीवी मिल ही न पाए, मिल गया तो एक सप्ताह तक उसको लगने नहीं दिया गया। अब दीवार पर टंग गया है तो उसके लिए कनेक्शन का इंतजार हो रहा है। बड़बोले नेता भी शांत बैठे हैं। शायद सही सोचकर कि देखें कब तक कनेक्शन नहीं आता। उधर, कनेक्शन को लगातार ढील दी जा रही है। दिलचस्प यह कि पार्टी की ऐसी छोटी छोटी रस्साकशी पर भीतरी ही नहीं, पार्टी कार्यालय में आने वाले बाहरी लोग भी मजे ले रहे हैं। कोई कुछ टिप्पणी करता है और कोई कुछ कर जाता है।