छत्तीसगढ़ में मुद्दों पर भारी व्यक्तित्व, रमन सिंह अपने नाम पर मांग रहे विधायकों के लिए वोट
डॉ. रमन सिंह इस सच्चाई से अवगत हैं और यही कारण है कि वह अपने उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने उतरते हैं तो वोट खुद अपने नाम पर मांगते हैं।
आशुतोष झा, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव आपको थोड़ा अचरज में डालेगा। दक्षिण से लेकर उत्तर तक आप घूम लें, जनता से पूछें कि आखिर मुद्दे क्या हैं, जिसपर सत्तापक्ष और विपक्ष चुनावी मैदान में आमने-सामने हैं और जो लड़ाई की दिशा तय कर सकता है तो कोई एक समान उत्तर नहीं मिलेगा। क्या विकास हुआ.? यह पूछने पर भी एक जैसा ही उत्तर मिलेगा- हां, सड़कें बनीं, सस्ता राशन मिलता है, नए अस्पताल बने, स्कूल बने। विरोधी खेमे में खड़े लोगों से पूछें तो वह कहेंगे, किसान का मुद्दा उठाएंगे जरूर। लेकिन, ऐसा कोई किसान नेता नहीं जो इसे बड़ा चुनावी विषय बनवा सके। शायद यही कारण है कि सड़कों पर चुनावी उत्सव का कोई रंग नहीं दिखेगा। माहौल सिर्फ चुनावी सभा या फिर हेलीपैड पर ही दिखेगा जहां आधा दर्जन हेलीकाप्टर खड़े नजर आएंगे।
सच्चाई यह है कि यह चुनाव मुद्दों से ज्यादा व्यक्तित्व का चुनाव दिखने लगा है। यही कारण है कि सरकार के खिलाफ तीव्र सत्ताविरोधी लहर न होने के बावजूद कई बड़े और धुरंधर मंत्री घिरते नजर आ रहे हैं। वहीं, विपक्ष में कांग्रेस के अंदर भी एकबारगी कई चेहरे खड़े हो गए हैं और एक-दूसरे से आगे दिखने की गलाकाट होड़ मची है। कई मायनों में यह मुखर होकर दिखता है कि सत्ता में वापसी की आस पाले बैठी कांग्रेस के नेता मुख्यमंत्री रमन सिंह से मुकाबले से ज्यादा अहम आपसी लड़ाई को मान रहे हैं। अलग-अलग नेताओं के लिए अलग-अलग पीआर एजेंसी काम कर रही है और वह यह बताने से गुरेज नहीं करते हैं कि उनसे संबंधित नेता ही डॉ. रमन को टक्कर दे सकता है। ऐसी ही एक एजेंसी ने दैनिक जागरण से कहा- हमारे नेता ने जिस तरह घोषणापत्र में भूमिका निभाई, उम्मीदवारों के चयन में जिस तरह उनकी बातें मानी गई और जिस तरह वह विवादों से दूर रहे हैं, उसके कारण वह केंद्रीय कांग्रेस नेतृत्व की पहली पसंद हैं। रमन सिंह की तरह वही छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के लिए मजबूत स्थान बना सकते हैं।
मुद्दों के अभाव और आपसी लड़ाई के बावजूद यह माना जा रहा है कि कांग्रेस इस बार टक्कर में है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल इसका सबसे बड़ा कारण अजीत जोगी की कांग्रेस से विदाई को मानते हैं। बघेल की बातों से छत्तीसगढ़ के कई राजनीतिज्ञ और चिंतक सहमत हैं। वह कहते हैं कि डॉ. रमन सिंह को इसीलिए जनता ने स्वीकारा, क्योंकि वह जोगी के व्यक्तित्व से पूरी तरह विपरीत हैं। अब एक बड़ा वर्ग है, जो सरकार के काम से संतुष्ट होने के बावजूद पंद्रह साल के बाद सिर्फ परिवर्तन चाहता है। क्यो.? इसका जवाब है- बहुत हुआ अब बदलाव चाहिए।
सरकार के लिए यही चुनौती है, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से छत्तीसगढ़ कांग्रेस की जमीन रही है। संयुक्त मध्य प्रदेश में भी छत्तीसगढ़ के कारण ही कांग्रेस की सरकारें बनती रही थीं। जड़े अभी सूखी नहीं हैं, बल्कि पंद्रह साल के एकछत्र राज में परिवर्तन की चाह ने इसे थोड़ा सींच ही दिया है। हाल कुछ ऐसा है कि रमन सरकार के ताकतवर मंत्री अमर अग्रवाल, प्रेम प्रकाश पांडे समेत कईयों को भी खतरे से बाहर नहीं माना जा रहा है।
डॉ. रमन सिंह इस सच्चाई से अवगत हैं और यही कारण है कि वह अपने उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने उतरते हैं तो वोट खुद अपने नाम पर मांगते हैं। विकास की गारंटी भी खुद अपने कंधे पर लेते हैं। वह कहते हैं- हमारे प्रतिनिधि यहां खड़े हैं, लेकिन मैं खुद के लिए वोट मांगने आया हूं। चुनावी मैदान में तीसरी ताकत के रूप में खड़े अजीत जोगी-बसपा गठबंधन को एक ऐसे तलवार के रूप में माना जा रहा है, जो कांग्रेस को नुकसान पहुचाएंगी। ऐसे में भाजपा का एक बड़ा दाव इसी पर है कि कांग्रेस में डॉ. रमन के मुकाबले कोई खड़ा नहीं है।