Move to Jagran APP

Chhattisgarh : नक्सलवाद पर नीति बदलने के संकेत से मानवाधिकार संगठन खुश

naxalite in chhattisgarh छत्तीसगढ़ लोक स्वातंत्र्य संगठन (पीयूसीएल) ने नई सरकार से मांग की है कि नक्सलवाद पर विवादित जनसुरक्षा कानून भंग किया जाए।

By Sandeep ChoureyEdited By: Published: Wed, 19 Dec 2018 11:34 AM (IST)Updated: Wed, 19 Dec 2018 11:34 AM (IST)
Chhattisgarh : नक्सलवाद पर नीति बदलने के संकेत से मानवाधिकार संगठन खुश
Chhattisgarh : नक्सलवाद पर नीति बदलने के संकेत से मानवाधिकार संगठन खुश

रायपुर। छत्तीसगढ़ में नई सरकार ने नक्सलवाद का हल निकालने की नीति बदलने के संकेत दिए हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी पहली ही प्रेस कांफ्रेंस में साफ कर दिया कि गोली का जवाब गोली से देने की नीति बदली जाएगी। उन्होंने कहा गोली नक्सली भी चला रहे हैं और पुलिस भी। दोनों ओर से चल रही गोली से पीड़ित कौन हैं। हम पीड़ित आदिवासियों से बात करके नक्सलवाद पर नीति बनाएंगे।

loksabha election banner

उन्होंने यह भी कहा कि नक्सलवाद कानून व्यवस्था की समस्या नहीं है, यह सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक समस्या है और सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर इसका निदान किया जाएगा। मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद बस्तर में नक्सलवाद से पीड़ितों के मानवाधिकार की रक्षा में लगे सामाजिक कार्यकर्ता खुश हैं।

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इससे पहले आदिवासियों का पक्ष लेने की बात कहने पर भी शहरी नक्सली करार दिया जाता रहा है। दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर और अर्चना प्रसाद पर तो बस्तर में हत्या के मामले में एफआईआर तक दर्ज कर ली गई।

डॉ. विनायक सेन राजद्रोह के मामले में जेल में रहे, सुधा भारद्वाज जेल में हैं, हिमांशु कुमार को छत्तीसगढ़ छोड़ना पड़ा, सोनी सोरी पर कई मामले दर्ज कर जेल भेजा गया, बस्तर में लीगल एड का काम कर रही शालिनी गेरा और ईशा खंडेलवाल को वहां से निकाल दिया गया।

अंतरराष्ट्रीय रेडक्रॉस संगठन और डॉक्टर्स विदाउट बाॅर्डर तक को नक्सली संगठन कहा गया। अब जबकि सरकार ने सकारात्मक दृष्टि दिखाई है मानवाधिकारवादी नक्सल समस्या के हल को लेकर उत्साहित हैं।

बस्तर में काम कर चुके सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने बताया कि मानवाधिकारवादी जल्द ही एक बैठक कर सकते हैं जिसमें बस्तर में शांति बहाली का ठोस प्रस्ताव तैयार जाएगा। सरकार से पहल हुई तो सामाजिक कार्यकर्ता मुख्यमंत्री के साथ बैठक करने को तैयार हैं।

हिमांशु ने कहा हम सरकार को मदद देने, सेवा करने, समय देने को तैयार हैं। निर्णय सरकार को लेना है। सामाजिक कार्यकर्ताओं नंदिनी सुंदर, राजेंद्र सायल, बेला भाटिया, शुभ्रांशु चौधरी, शालिनी गेरा, ईशा खंडेलवाल, सोनी सोरी आदि ने आपस में चर्चा की है। सब मानकर चल रहे हैं कि बस्तर में पिछले 15 साल से आदिवासियों की जो दुर्दशा हो रही है अब उसमें सुधार होगा। शांति लौटेगी और विकास होगा।

लगते रहे हैं आरोप

बस्तर में अब तक नक्सलवाद खत्म करने के नाम पर आदिवासियों की हत्या, बलात्कार के आरोप लगते रहे हैं। कई मामले एनएचआरसी और सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहे हैं। कलेक्टर के अपहरण के बाद निर्मला बुच कमेटी बनी थी, ताकि निर्दोष आदिवासियों के मामलों की समीक्षा की जा सके,  लेकिन कलेक्टर के छूटते ही कमेटी निष्क्रिय कर दी गई। पत्रकारों, वकीलों तक पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए गए हैं। मानवाधिकारवादी इन मामलों को खत्म करने की मांग कर रहे हैं।

पीयूसीएल ने जनसुरक्षा कानून हटाने की मांग की

छत्तीसगढ़ लोक स्वातंत्र्य संगठन (पीयूसीएल) ने नई सरकार से मांग की है कि नक्सलवाद पर विवादित जनसुरक्षा कानून भंग किया जाए। पीयूसीएल के अध्यक्ष डॉ. लाखन सिंह ने कहा कि प्रदेश में मानवाधिकारी की बहाली की जाए, राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाए, पत्रकार, वकील सुरक्षा कानून लाया जाए, अर्धसैन्य बलों की वापसी हो, नक्सलियों से बातचीत की जाए, फर्जी मुठभेड़ और आत्मसमर्पण की जांच हो, जल जंगल, जमीन पर आदिवासियों का अधिकार हो, सामाजिक न्याय के साथ विकास शांति और न्याय का रास्ता निकाला जाए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.