नक्सलगढ़ दंतेवाड़ा में मुकाबला त्रिकोणीय बनाती है सीपीआइ
राजनीतिक दृष्टि के यहां के लोगों का मिजाज भांपना आसान नहीं। जिले में विधानसभा की एकमात्र सीट है।
रायपुर [नईदुनिया]। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग का दंतेवाड़ा जिला भारत की सबसे पुरानी बसाहटों में से एक है। समृद्ध इतिहास वाला यह जिला लंबे अर्से तक नक्सलवाद का दंश झेल चुका है। इसका संबंध आदिशक्ति से लेकर भगवान राम तक से है। रामायण में वर्णित दंडकारण्य का यह हिस्सा है। इस शहर का नाम इस क्षेत्र की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के नाम से पड़ा है।
राजनीतिक दृष्टि के यहां के लोगों का मिजाज भांपना आसान नहीं। जिले में विधानसभा की एकमात्र सीट है। भाजपा,कांग्रेस और सीपीआइ के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होता रहा है, लेकिन दो बार कांग्रेस और एक बार इस सीट पर भगवा लहराया। 2013 के झीरम नरसंहार में मारे गए कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा इसी सीट से चुनाव लड़ते थे, हालांकि वे 2008 का चुनाव हार गए थे।
उतार-चढ़ाव भरा रहा भगवा का सफर
जिले में भाजपा का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा। पहले चुनाव में पार्टी कुल मतदान का महज 19 फीसद वोट शेयर हासिल कर पाई थी। पार्टी तीसरे नंबर पर रही। 2008 के चुनाव में भाजपा के खाते में 38 फीसद वोट शेयर के साथ सीट भी आ गई थी। पिछले चुनाव में पार्टी का वोट शेयर पांच फीसद गिरा और सीट भी हाथ से निकल गई।
सीट व वोट का खेल
कांग्रेस का वोट भी अस्थिर
भाजपा ही नहीं कांग्रेस के लिए भी यह सीट उतनी आसान नहीं रही है। पहले चुनाव में 36 फीसद वोट शेयर हासिल करते हुए कांग्रेस ने सीट पर कब्जा कर लिया था। 2008 के चुनाव में पार्टी न केवल सीट खोई बल्कि सीधे तीसरे नंबर पर चली गई। पार्टी के खाते में केवल 25 फीसद वोट आए। 2013 के चुनाव में झीरम की सहानुभूति ने फिर इस सीट को कांग्रेस की झोली में डाल दिया, पार्टी ने 38 फीसद वोट के साथ जीत दर्ज की।
पहले दो चुनावों में दूसरे नंबर पर रही सीपीआइ
चुनाव में सीपीआइ भी अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराती रही है। पहले दोनों चुनाव में सीपीआइ दूसरे नंबर पर रही। यानी पहले चुनाव में उसका कांग्रेस व दूसरे चुनाव में भाजपा से सीधा मुकाबला हुआ। पिछले चुनाव में पार्टी का वोट शेयर बहुत घट गया। पार्टी के खाते में अब तक के तीनों चुनाव में क्रमश: 29, 26 और 12 फीसद वोट आए हैं।