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Chhattisgarh Elections 2018 : बना रहेगा टोटका या टूटेगा ट्रेंड

Chhattisgarh Elections 2018 : इस बार के चुनाव परिणाम में भी क्या यह मिथक बने रहते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।

By Hemant UpadhyayEdited By: Published: Sun, 09 Dec 2018 08:53 PM (IST)Updated: Mon, 10 Dec 2018 01:00 AM (IST)
Chhattisgarh Elections 2018 : बना रहेगा टोटका या टूटेगा ट्रेंड
Chhattisgarh Elections 2018 : बना रहेगा टोटका या टूटेगा ट्रेंड

रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से अब तक तीन विधानसभा चुनाव हुए हैं और चार सरकार काम कर चुकी हैं। इन 18 वर्ष और चार विधानसभाओं में यहां की सदन और राजनीति में कई ट्रेंड बने हैं कुछ मिथक भी जुड़े हैं।

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मसलन राज्य बनने के बाद से अब तक कोई भी नेता प्रतिपक्ष और पंचायत मंत्री लगातार दूसरी बार सदन नहीं पहुंच पाए हैं। भाजपा से विधानसभा अध्यक्ष बनने वाले विधायक भी दूसरी बार चुनाव नहीं जीतते। इस बार के चुनाव परिणाम में भी क्या यह मिथक बने रहते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।

नेता प्रतिपक्ष

नंदकुमार साय (2000) : पहली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे भाजपा के नंद कुमार साय 2003 का चुनाव हार गए। पार्टी ने 2003 में उन्हें मरवाही से तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खिलाफ मैदान में उतारा था। उसके बाद से अब तक साय सदन में नहीं पहुंचे हैं। साय इस वक्त राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष हैं।

महेन्द्र कर्मा (2003) : राज्य निर्माण के बाद पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता में आई तो कांग्रेस ने दंतेवाड़ा से अपने विधायक महेंद्र कर्मा को नेता प्रतिपक्ष बनाया। कर्मा 2008 का चुनाव हार गए। 2013 के चुनाव के पहले झीरमघाटी हमले में नक्सलियों ने उनकी हत्या कर दी।

रविन्द्र चौबे (2008) : कांग्रेस जब दूसरी बार भी विपक्ष में गई तो पार्टी ने साजा से विधायक रविन्द्र चौबे को नेता प्रतिपक्ष बनाया। साजा विधानसभा सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, क्योंकि पार्टी वहां से कभी नहीं हारी थी, लेकिन 2013 के चुनाव में चौबे हार गए। इस चुनाव में फिर से वे साजा से ही भाग्य आजमा रहे हैं।

टीएस सिंहदेव (2013) : भाजपा लगातार तीसरी बार सत्ता में आई और कांग्रेस तीसरी बार विपक्ष में बैठी तो पार्टी ने अपने दूसरी बार के विधायक टीएस सिंहदेव को नेता प्रतिपक्ष बनाया। सिंहदेव इस चुनाव में अपनी परंपरागत अंबिकापुर सीट से पार्टी के उम्मीदवार हैं।

पंचायत मंत्री

अमितेष शुक्ल (2000) : राज्य की पहली कांग्रेसी सरकार में राजिम विधायक अतिमतेष शुक्ल को पंचायत मंत्री बनाया गया। शुक्ल 2003 का विधानसभा चुनाव हार गए।

अजय चंद्राकर (2003) : भाजपा की पहली बार सरकार बनी तो कुस्र्द से लगातार दूसरी बार जीते अजय चंद्राकर को पंचायत मंत्री बनाया गया। चंद्राकर 2008 का चुनाव हार गए।

हेमचंद यादव (2008) : दूसरी बार सत्ता में भाजपा लौटी तो पहले रामविचार नेताम को पंचायत मंत्री बनाया गया। 2012 में नेताम को हटा कर दुर्ग से लगातार चुनाव जीत रहे हेमचंद यादव को पंचायत विभाग सौंप दिया गया। यादव 2013 का चुनाव हार गए।

अजय चंद्राकर (2013) : भाजपा तीसरी बार सत्ता में आई तो 2003 में पंचायत मंत्री रहे अजय चंद्राकर को फिर से पंचायत विभाग की कमान सौंपी गई। चंद्राकर इस बार भी कुस्र्द से पार्टी के प्रत्याशी हैं।

महिला बाल विकास मंत्री

गीता देवी सिंह (2000) : राज्य की पहली कांग्रेस सरकार में महिला बाल विकास मंत्री रही गीता देवी सिंह 2003 का चुनाव हार गईं। 2008 में भी पार्टी ने उन्हें टिकट दिया, लेकिन वे जीत नहीं पाईं।

रेणुका सिंह (2003) : भाजपा की पहली सरकार में रेणुका सिंह को यह विभाग सौंपा गया। 2008 का चुनाव वे जीतीं, लेकिन उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया।

लता उसेंडी (2008) : भाजपा की दूसरी सरकार में महिला बाल विकास विभाग की कमान संभालन वाली तला उसेंडी 2013 का चुनाव हार गईं।

रमशीला साहू (2013) : तीसरी बार सत्ता में आई भाजपा तो दुर्ग ग्रामीण से विधायक चुनी गई रमशीला साहू को इस विभाग की जिम्मेदारी दी गई। पार्टी ने इस बार उनको टिकट ही नहीं दिया है।

भाजपा के विधानसभा अध्यक्ष

प्रेम प्रकाश पाण्डेय (2003) : पहली बार जब भाजपा छत्तीसगढ़ की सत्ता में पहुंची तो पार्टी ने अपने अनुभवी विधायक प्रेम प्रकाश पाण्डेय को विधानसभा अध्यक्ष बनाया। पाण्डेय भिलाई विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं। 2008 का चुनाव वे हार गए।

धरमलाल कौशिक (2008) : 2008 में भाजपा सत्ता में लौटी, लेकिन पिछले विधानसभा अध्यक्ष चुनाव हार चुके थे। ऐसे में पार्टी ने बिल्हा से विधायक चुनकर आए धरमलाल कौशिक को विधानसभा अध्यक्ष बनाया। कौशिक भी 2013 का चुनाव हार गए।

गौरीशंकर अग्रवाल (2013) : भाजपा की तीसरी सरकार में कसडोल से विधायक चुने गए गौरीशंकर अग्रवाल को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया है। अग्रवाल इस बार भी कसडोल सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।

यह भी मिथक

रामदयाल उइके: एन चुनाव के वक्त पाला बदलने वाले कांग्रेस के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष रामदयाल उइके के साथ भी एक मिथक जुड़ा है। उनके पार्टी छोड़ने के कांग्रेसियों ने कहा कि उइके जिस पार्टी से विधायक चुने जाते हैं, उसकी सरकार नहीं बनती। उइके 2003 से 2013 तक पाली-तानाखार से लगातार कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए। तीनों बार कांग्रेस की सरकार नहीं बनी। इससे पहले 1998 में वे भाजपा के टिकट पर मरवाही से विधायक चुने गए थे तब कांग्रेस की सरकार बनी थी।

इन सीटों पर दिलचस्प लड़ाई

जांजगीर-चांपा: इस सीट से कांग्रेस मोतीलाल देवांगन और भाजपा नारायण प्रसाद चंदेल को उतारती है। बीते तीन-चार चुनावों में एक बार देवांगन तो दूसरी बार चंदेल जीतते हैं।

बिल्हा: इस सीट पर भाजपा के धरमलाल कौशिक और कांग्रेस के सियाराम कौशिक के बीच भी ऐसा ही मुकाबला होता रहा है। एक बार धरमलाल तो दूसरी बार सियाराम जीतते हैं। इस बार सियाराम जकांछ के उम्मीदवार हैं।

अभनपुर: यहां कांग्रेस के धनेंद्र साहू और भाजपा के चंद्रशेखर साहू के बीच मुकाबला चलता है। अब तक के मुकाबलों में एक बार धनेंद्र तो दूसरी बार चंद्रशेखर जीतते रहे हैं। इस चुनाव में भी दोनों आमने-सामने हैं।

भिलाई: यहां भाजपा के प्रेम प्रकाश पाण्डेय और कांग्रेस के बीडी कुरैशी के बीच ऐसा ही मुकाबला चलता था, लेकिन इस बार कुरैशी ने सीट बदल ली है।


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