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Chhattisgarh Election Result 2018 : राहुल की टीम ने संभाली कमान, कांग्रेस की नैय्या लगाई पार

Chhattisgarh Election Result 2018 : प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया, चंदन यादव और अरुण उरांव ने संगठनात्मक रूप से मजबूत किया।

By Hemant UpadhyayEdited By: Published: Tue, 11 Dec 2018 08:23 PM (IST)Updated: Tue, 11 Dec 2018 08:23 PM (IST)
Chhattisgarh Election Result 2018 : राहुल की टीम ने संभाली कमान, कांग्रेस की नैय्या लगाई पार
Chhattisgarh Election Result 2018 : राहुल की टीम ने संभाली कमान, कांग्रेस की नैय्या लगाई पार

रायपुर। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी तिकड़ियों को दी और उसने कांग्रेस की नैय्या पार लगा दी। उत्तरप्रदेश के पूर्व सांसद व एससी आयोग के पूर्व अध्यक्ष पीएल पुनिया, झारखंड के रिटायर्ड आइपीएस अस्र्ण उरांव और उत्तरप्रदेश के युवा नेता डॉ. चंदन यादव ने छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस को सबसे पहले संगठनात्मक रूप से मजबूत करने का काम किया।

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उसी का नतीजा रहा कि पहली बार हर बूथ में कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता चट्टान की तरह विपरीत परिस्थितियों में भी डटे रहे। हर कदम फूंक-फूंककर रखा और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के 15 साल के वनवास को खत्म कर दिया।

2013 के विधानसभा चुनाव के छह माह पहले झीरम कांड हुआ था, जिसमें कांग्रेस की पहली पंक्ति के कई नेता मारे गए। कांग्रेस को दूसरा करारा झटका तब लगा, जब उसी साल विधानसभा चुनाव में हार का भी सामना करना पड़ा। अक्टूबर 2014 में पार्टी हाईकमान ने प्रदेश का मुखिया बदल दिया। भूपेश बघेल को पार्टी की कमान सौंपी गई। उस वक्त बीके हरिप्रसाद प्रदेश प्रभारी थे, तब कांग्रेस में गुटबाजी हावी थी।

वरिष्ठ नेताओं के बीच बिल्कुल भी नहीं बनती थी। पार्टी हाईकमान ने इसे समझा और हरिप्रसाद को हटाकर जुलाई 2017 में पुनिया को प्रदेश प्रभारी बना दिया। उनके साथ राष्ट्रीय प्रभारी सचिव उरांव और मध्यप्रदेश के विधायक कमलेश्वर पटेल की भी नियुक्ति हुई।

पुनिया ने जिम्मेदारी संभालते ही नेताओं के बीच गुटबाजी को भांपा और उन्हें एकजुट करने का काम किया। एक तरफ कड़क और आक्रामक पीसीसी अध्यक्ष भूपेश बघेल थे और दूसरी तरफ नरम स्वभाव वाले नेता-प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव। पुनिया ने इन दोनों के बीच तालमेल बढ़ाने का काम किया। पार्टी से दूरी बनाए वरिष्ठ नेताओं से मेल-मुलाकात कर, उन्हें फिर से सक्रिय भूमिका में लाया।

इसके बाद पुनिया ने खुद मैदानी इलाकों का दौरा किया। जातिगत समीकरणों को साधने में जुट गए। उन्होंने बस्तर की जिम्मेदारी पूरी तरह से उरांव को सौंप दी। पटेल का कामकाज सही नहीं लगा तो उत्तरप्रदेश के युवा नेता डॉ. चंदन यादव को उनकी जगह भेजा गया। पर्दे के पीछे रहकर यादव ने संगठन को मजबूत करने का काम किया।

राहुल की तिकड़ी ने जमीनी कार्यकर्ताओं की पूछपरख बढ़ाकर, दूसरा महत्वपूर्ण काम किया। पहली बार पार्टी बूथ मैनेजमेंट पर जुटी। बूथ कमेटियों के गठन के बाद हर विधानसभा क्षेत्र में प्रशिक्षण और संकल्प शिविर लगाए गए। शिविरों में खुद पुनिया और यादव भी पहुंचे।

हर कार्यकर्ता को दिया दावेदारी का मौका

छत्तीसगढ़ में पहली बार बंद कमरे में प्रत्याशियों के नाम तय नहीं हुए। हर कार्यकर्ता को दावेदारी करने का मौका दिया गया। इसके बाद डॉ. यादव और डॉ. उरांव ने खुद हर संभाग में जाकर दावेदारों पर पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया ली। तब, कहीं जाकर कांग्रेस ने प्रत्याशियों का नाम फाइनल किया।

हालांकि, असंतोष उसके बाद भी फूटा, लेकिन पुनिया ने उन्हें मनाने की व्यवस्था भी पहले ही कर ली थी। कुछ वरिष्ठ नेताओं को असंतुष्टों के पीछे लगा दिया। इसी का नतीजा रहा कि पिछले तीन चुनावों की तुलना में इस बार सबसे कम भितरघात की शिकायत हुई।


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