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आखिर किसके वोट काटेंगे वोटकटवा उम्मीदवार और छोटे दल

इस बार जकांछ-बसपा गठबंधन के अलावा आम आदमी पार्टी भी 90 सीटों पर मैदान में उतरने का दावा कर रही है।

By Sandeep ChoureyEdited By: Published: Wed, 31 Oct 2018 12:19 PM (IST)Updated: Wed, 31 Oct 2018 12:19 PM (IST)
आखिर किसके वोट काटेंगे वोटकटवा उम्मीदवार और छोटे दल
आखिर किसके वोट काटेंगे वोटकटवा उम्मीदवार और छोटे दल

रायपुर। छत्तीसगढ़ में छोटे दल और वोटकटवा उम्मीदवार किसके वोट काटेंगे यह लाख टके का सवाल है। दरअसल इस बार पूर्व जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के सुप्रीमो अजीत जोगी बसपा और सीपीआइ के साथ मिलकर मजबूत तीसरे मोर्चे का दम भर रहे हैं। प्रदेश में अब तक के चुनाव दो प्रमुख दलों के बीच ही होता आया है। 2003 में विद्याचरण की अगुवाई में राकांपा ने अपने उम्मीदवार उतारे मगर एक सीट पर जीत सके थे। हालांकि उनकी पार्टी का प्रदर्शन खास नहीं माना गया लेकिन उन्होंने करीब सात फीसद वोट काटे और कांग्रेस हार गई।

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भाजपा से अलग होकर ताराचंद साहू ने स्वाभिमान मंच का गठन किया तो उसे कोई सफलता नहीं मिल पाई। प्रदेश में बसपा तीन-चार सीटों पर ठीक-ठाक वोट हासिल करती आई है लेकिन राज्य बनने के बाद से वह कभी भी दो से ज्यादा सीट नहीं जीत पाई है। ऐसे दल कांग्रेस या भाजपा को नुकसान जरूर पहुंचाते हैं।

इस बार जकांछ-बसपा गठबंधन के अलावा आम आदमी पार्टी भी 90 सीटों पर मैदान में उतरने का दावा कर रही है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया है और सभी सीटों पर चुनाव में उतरने का एलान कर रखा है। वैसे गोंगपा अब तक 28 उम्मीदवार ही उतार पाई है। ट्रायबल पार्टी ने भी पांच उम्मीदवारों की घोषणा की है। शिवसेना, जदयू जैसे छोटे दल भी कुछ सीटों पर मैदान में हैं। इनकी हैसियत वोटकटवा की ही मानी जा रही है।

जोगी के गठबंधन में शामिल सीपीआइ दो सीटों दंतेवाड़ा और कोंटा में मुकाबला रोचक बनाने की स्थिति में है। बिलासपुर संभाग की कुछ सीटों पर जकांछ-बसपा गठजोड़ का असर दिखेगा यह सभी मान रहे हैं। भाजपा के नेता कहते हैं कि जोगी दलित सीटों पर कांग्रेस के वोट काटेंगे जबकि कांग्रेसी कहते हैं कि सरकार के खिलाफ गुस्सा है तो वोट उसे ही जाएगा जो जीतने लायक होगा।

वोटर के लिए विकल्प खुले
अब वोटर के पास विकल्प है। दलित-आदिवासी बाहुल्य सीटों पर खासकर ग्रामीण इलाकों में तीसरे मोर्चे का असर दिख सकता है। पिछले चुनाव में भाजपा को करीब 42 फीसद और कांग्रेस को करीब 41 फीसद मत मिले थे। यहां मुकाबला इतना करीबी होता रहा है कि मत प्रतिशत के थोड़े बहुत हेरफेर से ही दलों की जीत-हार में बड़ा अंतर पैदा हो सकता है। भाजपा ने पिछली बार दलित सीटों पर बढ़त बनाई थी।


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