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Shahpur Election 2020 : शाहपुर में इंदिरा गांधी आई थीं वोट मांगने लेकिन हार गए प्रत्याशी, इस बार देवरानी-जेठानी का है रोचक मुकाबला

Shahpur Election News 2020 महागठबंधन से निवर्तमान विधायक राहुल कुमार मैदान में हैं। इस बार सत्ता बचाने की चुनौती है। एनडीए के बीजेपी प्रत्‍याशी हैं मुन्नी देवी । उनकी जेठानी शोभा देवी भी निर्दलीय उतर चुकी हैं। यह क्षेत्र शुरू से ही समाजवादियों का गढ़ रहा है।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Tue, 13 Oct 2020 11:18 AM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 09:06 PM (IST)
Shahpur Election 2020 : शाहपुर में इंदिरा गांधी आई थीं वोट मांगने लेकिन हार गए प्रत्याशी, इस बार देवरानी-जेठानी का है रोचक मुकाबला
सत्‍ता की कुर्सी के लिए देवरानी जेठानी के मुकाबले को दर्शाती सांकेतिक तस्‍वीर।

पटना/ आरा, कौशल मिश्रा। Shahpur, Bihar Election 2020:  Shahpur Election News 2020:  शाहपुर विधानसभा का चुनाव इस बार रोचक होने वाला है। एक ओर सीट बचाने की चुनौती है, तो दूसरी ओर परिवार के बीच भिड़ंत। महागठबंधन से निवर्तमान विधायक राहुल कुमार मैदान में हैं। वहीं राजग की ओर से भाजपा प्रत्याशी के रूप में पूर्व विधायक मुन्नी देवी मुकाबले में हैं। मुन्नी देवी की जेठानी शोभा देवी भी निर्दलीय उतर चुकी हैं। कुल 23 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें नौ निर्दलीय हैं। मतदाताओं ने आज मतदान कर अपना फैसला सुना दिया है। अब परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा कि ज्‍यादातर मतदाताओं की पसंद इस बार कौन बने हैं।

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केंद्रीय मंत्री से लेकर राज्‍यपाल तक यहां के रहे

शाहपुर विधानसभा की धरती राजनीतिक रूप से उर्वर रही है। मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री से लेकर राज्यपाल तक यहां की धरती की उपज रहे हैं। यह क्षेत्र शुरू से ही समाजवादियों का गढ़ रहा है। 1951 में पहले विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक ज्यादातर बार समाजवादी विचारधारा के लोग जीतते रहे हैं। मजदूर नेता बिंदेश्वरी दुबे यहां से विधायक चुने गए और मुख्यमंत्री बने।

इंदिरा गांधी आई थीं वोट मांगने लेकिन हार गए प्रत्याशी

1951 में सोशलिस्ट पार्टी से पहली बार रामानंद तिवारी विधायक निर्वाचित हुए। इसके बाद उन्होंने 1957 और 62 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी जबकि 1967 और 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से लगातार पांच बार जीत दर्ज की। बताते चलें कि 1969 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी सरयू उपाध्याय के प्रचार में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बिहिया आई थीं। बावजूद लोगों ने कांग्रेस उम्मीदवार को नकार दिया था।

इस चुनाव में रामानंद तिवारी को केवल जीत ही नहीं मिली बल्कि पिछले चुनावों के मुकाबले उन्हें सर्वाधिक मत भी मिला लेकिन 1972 के चुनाव में उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा। इस बार उन्हें कांग्रेसी उम्मीदवार सूर्यनाथ चौबे से शिकस्त खानी पड़ी।

जेपी की प्रो. जय नारायण मिश्र जीते थे

जेपी आंदोलन के बाद हुए 1977 के विधानसभा चुनाव में नवगठित जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में पटना विश्वविद्यालय के प्रो जय नारायण मिश्र को यहां से विधायक चुने गए। बताया जाता है कि उन्हें टिकट तब मिला जब प.रामानंद तिवारी के पुत्र शिवानंद तिवारी ने उस समय चुनाव लडऩे की पेशकश ठुकरा दी थी। इसके बाद जेपी की पहली पसंद प्रो. जय नारायण मिश्र को चुनाव मैदान में उतारे गए थे। 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां से वरिष्ठ कांग्रेस नेता एपी शर्मा के छोटे भाई आनंद शर्मा को उम्मीदवार बनाया। वोट मांगने दूसरी बार इंदिरा गांधी को आना पड़ा। इस बार उनका आना सफल रहा। इस तरह कांग्रेस ने दूसरी बार इस क्षेत्र में वापसी की।

500 वोट से हार गए थे शिवानंद तिवारी

1985 के चुनाव में कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बिंदेश्वरी दुबे यहां से जीते और मुख्यमंत्री भी बने। उन्होंने शिवानंद तिवारी को शिकस्त दी। 1990 में बीपी सिंह की लहर में जनता दल से नरेंद्र तिवारी उम्मीदवार बनाए गए। शिवानंद तिवारी समता पार्टी और जेपी जनता पार्टी से धर्मपाल सिंह चुनाव में उतरे। धर्मपाल सिंह  ने शिवानंद तिवारी को लगभग 500 वोट से हरा दिया। 1995 के चुनाव में राजद के टिकट पर धर्मपाल सिंह ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। उन्होंने समता पार्टी के शिवानंद तिवारी को शिकस्त दी।

2000 के चुनाव में राजद ने विधायक धर्मपाल सिंह को टिकट नही देकर अपनी पार्टी से शिवानंद तिवारी को चुनाव मैदान में उतारा तो धर्मपाल सिंह समता पार्टी से चुनाव लड़े। इस बार शिवानंद तिवारी बाजी अपने नाम करने में सफल रहे।

इस बार टिकट पाने में सफल रहीं मुन्नी देवी

साल 2005 में दो बार विधानसभा चुनाव हुए। पहले चुनाव में विशेश्वर ओझा की पत्नी जदयू से चुनाव में उतरी लेकिन शिवानंद तिवारी से हार का सामना करना पड़ा। फिर अक्टूबर में दोबारा विधानसभा चुनाव हुआ। इस बार शाहपुर से भाजपा से उम्मीदवार बनाई गईं विशेश्वर ओझा के छोटे भाई की पत्नी मुन्नी देवी चुनाव जीत गईं। उन्होंने क्षेत्र में पहली बार कमल खिलाया।  वे 2010 में भी जीतने में सफल रहीं। 2015 के चुनाव में मुन्नी देवी का टिकट काट कर उनके भैंसुर विशेश्वर ओझा को उम्मीदवार बनाया लेकिन वे शिवानंद तिवारी के पुत्र राजद उम्मीदवार राहुल तिवारी से चुनाव हार गए।


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