Sikta Election 2020: सिकटा में जातीय लामबंदी में दिख रहा वोटों का बिखराव, होगी त्रिकोणीय लड़ाई
Sikta Election News 2020 मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चहेते और सूबे के निवर्तमान अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री खुर्शीद फिरोज अहमद यहां से एनडीए के उम्मीदवार हैं। वहींं महागठबंधन की ओर से भाकपा के नेता वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता एम-वाइ समीकरण के साथ माले के आधार वोट को गोलबंद करने जोर लगाए हैं।
पश्चिम चंपारण, जेएनएन। सियासी तौर पर प्राय: हलचल में रहने वाले सिकटा विधानसभा क्षेत्र पर इसबार पूरे प्रदेश की नजर गड़ी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चहेते और सूबे के निवर्तमान अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री खुर्शीद फिरोज अहमद यहां से एनडीए के उम्मीदवार हैं। पिछले पांच वर्षों में किए गए कार्यों एवं सरकार की उपलब्धि के आधार पर जनता के बीच हैं तो भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से सरोकार रखने वाले और लालू - राबड़ी के शासन में बिहार में अर्पित घोटाले को लेकर विधानसभा में प्रदर्शन करने वाले पूर्व विधायक दिलीप वर्मा भाजपा के बागी के रूप में निर्दलीय मैदान में उतरे हैं।
वहींं महागठबंधन की ओर से भाकपा (माले) के कद्दावर नेता वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता एम-वाइ समीकरण के साथ माले के आधार वोट को गोलबंद करने जोर लगाए हैं। इस तरह यह सीट त्रिकोणात्मक लड़ाई में फंसी हुई है। हालांकि मैदान में कुल 16 उम्मीदवार हैं। सभी जातीय आधार पर मतदाताओं को रिझाने में लगे हुए हैं। जातीय लामबंदी में वोटों का बिखराव स्पष्ट दिख रहा है। मंत्री समेत कुल सात अल्पसंख्यक उम्मीदवार हैं, जो मुस्लिम वोट को तितर- वितर करने में जुटे हैं। वहीं राजद के बागी विनय कुमार यादव निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। अस्ट्रेलिया में नौकरी छोड़ कर वतन लौटे विनय यादव राजद के आधार वोट में सेंध लगा रहे हैं। वोटिंग की प्रक्रिया यहां पूरी हो गई है। यहां 60 फीसद मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है ।
दो प्रखंडों सिकटा और मैनाटांड़ को मिलाकर बने इस विधानसभा क्षेत्र का भूगोल जितना अनोखा है, इतिहास भी उतना हीं रोचक है। देश की आजादी के बाद से जिले के अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों पर लंबे समय तक कांग्रेस का सामाज्य रहा। उस दौर में भी यहां 1962 में स्वतंत्र पार्टी के रैफुल आजम चुनाव जीते थे। वहीं 1967 में भाकपा माले के यूएस शुक्ला विधायक बने थे। 10 वर्षों तक जनता पार्टी के धर्मेश प्रसाद वर्मा भी यहां के विधायक रहे। वर्ष 1991 के उपचुनाव में निर्दलीय विधायक दिलीप वर्मा बने थे। तब से इस क्षेत्र का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया। नवंबर 2005 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े खुर्शीद फिरोज अहमद ने उन्हेंं पराजित कर दिया। फिर 2010 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में दिलीप वर्मा चुनाव जीत गए थे। पिछले चुनाव में भाजपा के टिकट से श्री वर्मा चुनाव लड़े थे। दोनों में कांटे की टक्कर हुई थी। 2,835 मतों से जदयू के खुर्शीद फिरोज अहमद चुनाव जीत गए थे और प्रदेश में जिले के एकमात्र मंत्री के रूप में शपथ भी ली थी।
हरबार विधायक बदलने की आदत यहां के लोगों में नहीं है। 1951 से लेकर 2015 तक 64 वर्ष में मात्र नौव लोगों के हाथों में जनता ने बागडोर सौंपा है। काम के आधार पर मतदान की परंपरा रही है। तभी तो 1972 से 1980 तक इस क्षेत्र के विधायक रहे फैयाजुल आजम को दस वर्ष के बाद एकबार फिर जनता ने कसौटी पर कसा और 1990 में निर्दलीय चुनाव जीत गए। ये यहां की जनता का विकास के आधार पर मतदान करने का परंपरा है। 1991 में उप चुनाव में दिलीप वर्मा विधायक बने थे। नवंबर 2005 तक जनता ने उन्हेंं काम करने का अवसर दिया। इस दौरान वे कई पार्टी बदले निर्दलीय भी लड़े। लेकिन जनता ने भरोसा किया। नवबंर 2005 में जनता का भरोसा डिगा और कांग्रेस के फिरोज खुर्शींद आलम विधायक बने। लेकिन इनके पांच वर्ष के कार्यकाल का तुलना करने के बाद एकबार फिर लोगों ने 2010 में निर्दलीय दिलीप वर्मा को बागडोर सौंप दी।
2020 के प्रमुख प्रत्याशी
फिरोज खुर्शीद अहमद (कांग्रेस)
वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता (भाकपा माले)
दिलीप वर्मा (निर्दलीय)
2015 के विजेता, उप विजेता :
खुर्शीद फिरोज अहमद (जदयू)
दिलीप वर्मा (भाजपा)
2010 के विजेता, उप विजेता :
दिलीप वर्मा (निर्दलीय)
खुर्शीद फिरोज अहमद (जदयू)
2005 के विजेता, उप विजेता :
फिरोज खुर्शीद अहमद (कांग्रेस)
दिलीप वर्मा(सपा)
कुल वोटर : 2.61 लाख
पुरुष वोटर : 1.40 लाख
महिला वोटर : 1.21 लाख
ट्रांसजेंडर वोटर : 10
अबतक चुने गए विधायक
1951: फैजुल रहमान (कांग्रेस)
1957: फैजुल रहमान (कांग्रेस)
1962 : रैफुल आजम (स्वतंत्र पार्टी)
1967: यूएस शुक्ला (भाकपा माले)
1969 : रैफुल आजम (कांग्रेस)
1972: फैयाजुल आजम (कांग्रेस)
1977: फैयाजुल आजम (कांग्रेस)
1980: धर्मेश प्रसाद वर्मा (जनता पार्टी)
1985 : धर्मेश प्रसाद वर्मा (जनता पार्टी)
1990: फैयाजुल आजम (निर्दलीय)
1991 उपचुनाव: दिलीप वर्मा (निर्दलीय)
1995: दिलीप वर्मा(चंपारण विकास पार्टी)
2000: दिलीप वर्मा(भाजपा)
2005 फिरोज खुर्शीद अहमद (कांग्रेस)
2010: दिलीप वर्मा (निर्दलीय)
2015: खुर्शीद फिरोज अहमद (जदयू)
जीत का गणित
इस सीट पर यादव और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। इसके अलावा रविदास, कोइरी और ब्राह्मण जातियां भी यहां बड़ी भूमिका में हैं। पिछड़ी जाति के मतदाताओं की भी अच्छी - खासी भागीदारी है। इनकी लामबंदी जिधर होगी, जीत का सेहरा उसी के सिर बंधेगा।
प्रमुख मुद्दे
-- बाढ़ और कटाव की समस्या विकराल है। नेपाल से निकली पहाड़ी नदियां तबाही मचाती हैं।
-- हाल के दिनों में सड़कों की हालत अच्छी हो गई हैं। लेकिन अभी भी दर्जन भर से अधिक ऐसे गांव हैं , जहां बरसात के दिनों में आवागमन की सुविधा नहीं रहती।