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Bihar Election 2020: आखिरी जंग... दिल मिले किंतु वोट ट्रांसफर बड़ी चुनौती, दलों के साथ चुनाव आयोग की भी परीक्षा

Bihar Election 2020 मिथिलांचल कोसी और सीमांचल के इलाके में राजनीतिक और सामाजिक समीकरण ज्यादा जटिल है। मिथिलांचल के वोटर अपने मताधिकार को लेकर बेहद जागरूक हैं तो वहीं कोसी और सीमांचल में अल्पसंख्यक वर्ग राजद के परंपरागत वोट बैंक रहे हैं।

By MritunjayEdited By: Published: Fri, 06 Nov 2020 02:40 PM (IST)Updated: Sat, 07 Nov 2020 01:22 PM (IST)
Bihar Election 2020: आखिरी जंग... दिल मिले किंतु वोट ट्रांसफर बड़ी चुनौती, दलों के साथ चुनाव आयोग की भी परीक्षा
बिहार विधानसभा चुनाव में सभी प्रमुख दल गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं।

पटना [ दीनानाथ साहनी ]। Bihar Election 2020  बिहार चुनाव का आखिरी जंग अब मुकाम पर पहुंच गया है। अंतिम चरण के मतदान में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और महागठबंधन में अब बूथ तक मतदाता ले जाने की चुनौती है। प्रत्याशियों को सहयोगी दलों के समर्थकों से उम्मीद है तो गठबंधनों के सामने उनके अपने सहयोगी दलों के वोट ट्रांसफर बड़ी चुनौती है। चुनाव विश्लेषक मान रहे हैं कि गठबंधन के घटक दलों के दिल तो मिल गए, लेकिन अब वोट ट्रांसफर की चिंता और चुनौती है। चुनाव आयोग के लिए आखिरी परीक्षा की घड़ी है।

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वोटर तैयार, बूथ प्रबंधन जरूरी

राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि बिहार के तीन चरणों के मतदान का यह आखिरी मोर्चा न सबसे बड़ा है, बल्कि अहम भी। आखिरी चरण की 78 सीटों पर मतदान से पहले वोटरों का मूड तो अब बन ही चुका है। बस अब शनिवार को राजनीतिक दलों के सामने चुनौती बूथ प्रबंधन की है। बूथ प्रबंधन से ही पाटलिपुत्र की सत्ता का रास्ता राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन या महागठबंधन के लिए कठिन या आसान होगा, क्योंकि चुनाव का यह आखिरी जंग फतह करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। इसलिए, अपने वोटरों को निकालने के लिए राजनीतिक दलों ने जहां अपने सारे घोड़े छोड़ दिए हैं, वहीं शांतिपूर्ण और भरपूर मतदान की अंतिम परीक्षा चुनाव आयोग की भी है।

सामाजिक समीकरण को साधना भी चुनौती

चुनाव विश्लेषक प्रो.पीएन मिश्र मिथिलांचल के निवासी हैं। उनके मुताबिक मिथिलांचल, कोसी और सीमांचल के इलाके में राजनीतिक और सामाजिक समीकरण ज्यादा जटिल है। मिथिलांचल के वोटर अपने मताधिकार को लेकर बेहद जागरूक हैं तो वहीं कोसी और सीमांचल में अल्पसंख्यक वर्ग राजद के परंपरागत वोट बैंक रहे हैं, लेकिन इस बार असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम 24 सीटों पर उम्मीदवार उताकर चुनावी परिणाम को उलट-फेर की कोशिश की है। अब देखना होगा कि ओवैसी अल्पसंख्यक वोटरों के दिल को कितना छू पाए हैं? वहीं सामाजिक समीकरण को साधते हुए भाजपा और जदयू एक-दूसरे के वोटरों को कितना एकजुट रख पाते हैं? रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में बना गठबंधन भी मैदान में है जो आखिरी चरण में जोर लगाए है।

2015 के जैसे नतीजे की उम्मीद नहीं

राजनीतिक प्रेक्षक प्रो.एनके चौधरी के अनुसार राजद-कांग्रेस-वाम दल  गठबंधन को विधानसभा चुनाव-2015 में महागठबंधन के नजरिए से नहीं देखा जा सकता है। इसलिए वैसे नतीजे की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। तब जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार और राजद प्रमुख लालू प्रसाद का मिलन सुशासन और जनाधार वाले दो दलों का मिलन था। दोनों दलों का सामाजिक आधार शीर्ष नेतृत्व के संकेत पर ट्रांसफर होने वाला था, जिसका फायदा कांग्रेस को भी मिला था। इस बार की कहानी कुछ और है। कांग्रेस के पास कोई सर्वमान्य चेहरा नहीं है, जिसके संकेत पर समर्थक सहयोगी दल के प्रत्याशी के पक्ष में घर से निकलकर मतदान कर सकें।


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