Bihar Election 2020: इसबार तेजी से टूट रही दलीय प्रतिबद्धता, पाला बदलने वालों ने बनाया रिकॉर्ड
बिहार में इस बार के विधानसभा चुनाव में यह कुछ अधिक तेजी से हो रहा है। कुल कितने नेताओं ने दल बदल कर टिकट हासिल किया इसकी गणना अंतिम चरण के लिए टिकट वितरण के बाद ही होगी। चुनाव से पहले हरेक पार्टी ने दल बदल को प्रोत्साहित किया।
पटना, जेएनएन। टिकट परम लक्ष्य वाली राजनीति में दलीय प्रतिबद्धता की उम्मीद नहीं की जाती है। दल बदल चलता रहता है, लेकिन बिहार में इस बार के विधानसभा चुनाव में यह कुछ अधिक तेजी से हो रहा है। कुल कितने नेताओं ने दल बदल कर टिकट हासिल किया, इसकी गणना अंतिम चरण के लिए टिकट वितरण के बाद ही होगी। फिलहाल यही कहा जा सकता है कि हरेक पार्टी ने दल बदल को प्रोत्साहित किया।
सालभर में बदल दिया पाला
साल भर पहले कांग्रेस में शामिल हुई पूर्व सांसद लवली आनंद राजद में शामिल हो गईं। उनके पुत्र चेतन आनंद भी साथ आए। पूर्व कांग्रेसी गजानन शाही 2015 के जदयू से बेटिकट होने के बाद सुस्त पड़े हुए थे। टिकट की गुंजाइश बनी तो फिर पुराने घर में लौट आए हैं। उम्मीदवार भी बन गए। पुराने कांग्रेसी नेता प्रो. रामजतन सिन्हा जदयू में चले गए थे। टिकट का भरोसा था। भरोसा टूटा तो जदयू से नाता भी तोड़ लिया।
बुरे फंस गए श्याम रजक
2015 का विधानसभा चुनाव जीते एक दर्जन से अधिक विधायकों ने अपने पुराने दल का परित्याग किया। एकाध को छोड़ सबको उम्मीदवारी मिल गई है। पूर्व मंत्री श्याम रजक बुरे फंस गए। वे राजद से जदयू में गए थे। जदयू से राजद में आ गए। राजद में भी उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई। अब कहा जा रहा है कि राजद की सरकार बनी तो विधान परिषद के सदस्य बनेंगे।
व्यक्ति ही नहीं, परिवार को बीमारी
टिकट परम लक्ष्य के साथ चलने वाले केवल व्यक्ति ही नहीं, परिवार भी हैं। लोजपा सांसद वीणा देवी के पति दिनेश सिंह जदयू में हैं। उनकी पुत्री लोजपा टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ रही हैं। लोजपा के ही दूसरे सांसद चौधरी महबूब अली के पुत्र राजद में शामिल हो गए हैं। वह विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। सबसे अधिक अनुशासित कही जाने वाली पार्टी भाजपा के दिग्गज भी टिकट के चलते दल से मोह नहीं रख पाए। उनके लिए अच्छी बात यह है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सहयोगी लोजपा खुले हाथ से टिकट दे रही है।
लोजपा से इतर भी गुंजाइश है
चंपारण के एक पूर्व विधायक सभी दलों का भ्रमण कर चुके हैं। जदयू टिकट पर दो बार विधायक बने। जदयू ने टिकट नहीं दिया। राजद में कोशिश की। वहां भी कामयाबी नहीं मिली। अगले दिन लोजपा कार्यालय में गए। जवाब मिला कि आपकी सीट पर भाजपा के उम्मीदवार हैं। हम वहां उम्मीदवार नहीं दे सकते हैं। पूर्व विधायक निराश नहीं हुए। उन्होंने एक छोटे दल का दरवाजा खटखटाया। उस दल ने उनका सम्मान किया। यह दृश्य रोज का है। मान लिया गया कि दल में कोई जान नहीं है। असल चीज टिकट है।