Bihar Election 2020: विपक्ष का बिखराव बना सत्ता के लिए 'संजीवनी', कई CM दावेदारों से भी प्रभावित होता है परिणाम
Bihar Assembly Election 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्ष का बिखराव सत्ता पक्ष के लिए लाभकारी बना हुआ है। सबकी अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। मुख्यमंत्री पद के भी कई दावेदार समाने आ चुके हैं। इससे भी चुनाव परिणाम प्रभावित होना तय है।
पटना, अरुण अशेष। सत्तारूढ़ दल या गठबंधन की जीत के लिए सबसे अच्छी स्थिति यह होती है कि उससे असहमत मतदाता कई हिस्सों में बंट जाएं। अगर मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की संख्या अधिक हो तो यह और भी फायदेमंद होता है। बिहार में 1995 के विधानसभा चुनाव का परिणाम इसका उदाहरण है। संयोग से इस समय भी मुख्यमंत्री पद के कई उम्मीदवार मैदान में हैं। इसका प्रभाव इस बार भी पड़ना तय है।
झारंखड बंटवारे से पहले संयुक्त बिहार में विधानसभा की 324 सीटें थीं। 1995 में 310 सीटों पर चुनाव लडऩे वाली समता पार्टी ने मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार का नाम प्रस्तावित किया था। दूसरी तरफ, 315 उम्मीदवारों को मैदान में उतार कर भाजपा भी सरकार बनाने का मंसूबा बांध रही थी। कांगे्रस पांच साल पहले सत्ता से अलग हुई थी। मुख्य विपक्षी पार्टी थी। वह सत्ता हासिल करने के लिए कुछ अधिक उत्साहित थी। आनंद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी भी 259 सीटों पर लड़ रही थी और आनंद मोहन मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। मुख्यमंत्री पद के ढेर सारे दावेदारों के बीच हुए वोटों के बिखराव ने लालू प्रसाद को सत्ता में लौटने का अवसर दे दिया।
फिलहाल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और महागठबंधन की किलेबंदी पुराने दिनों की तरह है। भाजपा-जदयू की जोड़ी को विधानसभा के तीन चुनावों में फतह का मौका मिला है। दो संयोग एक साथ मिल रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 15 साल पूरा करने जा रहे हैं। चुनाव मैदान में उनके सामने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों की कतार है। तेजस्वी यादव, उपेंद्र कुशवाहा और पप्पू यादव खुद मुख्यमंत्री बनने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। लोजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिए किसी का नाम प्रस्तावित नहीं किया है। वह भाजपा का मुख्यमंत्री चाह रही है।
2005 में सिर्फ एक उम्मीदवार
लालू प्रसाद जिस चुनाव में सत्ता से विदा हुए, उसमें विपक्ष की ओर से एकमात्र उम्मीदवार नीतीश कुमार थे। अक्टूबर के चुनाव में राजग को 36 प्रतिशत से अधिक मत मिले, जबकि राजद 23.45 प्रतिशत वोट लेकर सत्ता से बाहर चला गया। कांग्रेस और वाम दलों का सहयोग भी राजद की सत्ता को बचा नहीं सका।
दावेदार कम होते गए
पांच साल सत्ता में रहने के बावजूद 2010 के विधानसभा चुनाव में राजग के दोनों घटक दलों (जदयू और भाजपा) के वोट बैंक में महज तीन प्रतिशत का इजाफा हुआ। हालांकि पिछले चुनाव की तुलना में दोनों के विधायकों की संख्या क्रमश: 27 और 36 बढ़ गई। 2010 में भी राजद के अलावा कांग्रेस भी सरकार बनाने के इरादे से लड़ रही थी। उसके उम्मीदवार सभी सीटों पर खड़े थे। सीटें महज चार आईं।
घोषित दावेदार महज एक
2015 में राजद ने मुख्यमंत्री बनने का दावा छोड़ दिया। उसने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के इरादे से चुनाव लड़ा। कांग्रेस भी मुख्यमंत्री बनने के दौर से हट गई। एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थे। दूसरी तरफ राजग। भाजपा ने खुले तौर पर किसी को मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तावित नहीं किया था। इस चुनाव में भी नीतीश के नेतृत्व वाले गठबंधन को समर्थन मिला।