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Bihar Election 2020: सियासत में फल-फूल रही बाहुबलियों की वंशबेल, नाते-रिश्तेदारों को भी खूब दिलाए टिकट

Bihar Assembly Election 2020 बिहार के बाहुबली पहले खुद सियायत में कूदे। उन्‍होंने चुनाव भी खूब जीता। अब चुनाव के मैदान में बाहुबलियों के अनेक नाते-रिश्तेदार भी जोर आजमा रहे हैं। पढ़ें बिहार में राजनीति के अपराधीकरण का खुलासा करती खबर।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 16 Oct 2020 08:06 AM (IST)Updated: Fri, 16 Oct 2020 08:17 AM (IST)
Bihar Election 2020: सियासत में फल-फूल रही बाहुबलियों की वंशबेल, नाते-रिश्तेदारों को भी खूब दिलाए टिकट
बिहार के दो बाहुबली राजनेता-अनंत सिंह एवं प्रभुनाथ सिंह। फाइल तस्‍वीरें।

पटना, राज्य ब्यूरो। Bihar Assembly Election 2020: बिहार में हर पार्टी और हर जाति के 'अपने' अपराधी रहे हैं। पार्टी और समुदाय ने भी उन्हें जब-तब नायक का दर्जा दिया। खूब महिमामंडन भी किया। मगर इसका खामियाजा राजनीति और राज्य को भुगतान पड़ा। दामन पर स्याह धब्बे की तरह वे राजनीति के अपराधीकरण (Criminalization of Politics) के प्रमाण बन गए। अपने रसूख यानी धमक को बरकरार रखने के लिए राजनीति का चोला पहन लिया। एक दौर में तो वे राजनीति के पर्याय जैसे हो गए थे, लेकिन वक्त हर दिन बराबर नहीं होता। कुछ बाहुबलियों (Strongmen) और उनके परिजनों को जनता ने खुद मैदान में धूल चटा दी तो कुछ सलाखों के पीछे अपने किए-कराए की सजा काट रहे हैं। इस बार के चुनाव में कई बाहुबलियों के स्वजन दांव आजमा रहे हैं। चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाली संस्था एडीआर (ADR) के अनुसार 16वीं विधानसभा में 136 विधायकों यानि 57 फीसद के ऊपर आपराधिक मामले (Criminal Cases) हैं। इसमें 39 फीसद के खिलाफ गंभीर मामले हैं, जबकि 11 विधायकों पर हत्या (Murder) के मामले हैं।

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80 के दशक में परवान चढ़ी राजनीति में बाहुबलियों की पैठ

बिहार की राजनीति में बाहुबली नेताओं की पैठ शुरुआती दौर में ही हो गई, लेकिन 80 के दशक से वह परवान चढ़ने लगी। कई दबंग तो दहशत के दम पर सदन तक पहुंच गए। अदालत ने इंसाफ किया तो पत्नी और बच्चों को विरासत सौंप दी। राहत मिली तो अखाड़े में फिर आ धमके। ऐसे कई चेहरे हैं, जो प्रदेश में सियासत की अगली पटकथा के पात्र हो सकते हैं।

कांग्रेस ने कुचायकोट से काली पांडेय को बनाया प्रत्‍याशी

1984 में काली पांडेय गोपालगंज के मैदान में उतरे तो बड़े-बड़ों की सांस फूलने लगी थी। ऐसा तब जबकि काली पांडेय के साथ कोई पार्टी नहीं थी। वे निर्दलीय चुनाव लड़े और संसद पहुंच गए। अबकी बार कांग्रेस ने काली पांडेय को गोपालगंज जिले के कुचायकोट से प्रत्याशी बनाया है।

मैदान-ए-जंग में डटे ये हैं महारथी, डालते हैं एक नजर

राजद ने 2019 में सांसद जाने से चूकने वाले डॉ. सुरेंद्र यादव को बेलागंज से प्रत्याशी बनाया है। सुरेंद्र निवर्तमान विधायक हैं। महाराजगंज के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह अभी हजारीबाग की काल कोठरी में कैद हैं। अपनी विरासत का बोझ वे पुत्र रणधीर के कंधे पर डाल गए हैं। मोकामा से अनंत सिंह, दानापुर से रीतलाल यादव, महनार से रामा सिंह की पत्नी वीणा देवी, नवादा से राजबल्लभ की पत्नी विभा देवी, संदेश से अरुण यादव की पत्नी किरण देवी और सहरसा से आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद 17वीं विधानसभा की लड़ाई में लड़ रही हैं।

जदयू ने कुचायकोट से अमरेंद्र पांडेय, गया जिले के अतरी से मनोरमा देवी, तारापुर से मेवालाल चौधरी, चेरिया बरियारपुर से मंजू वर्मा को नुमाइंदगी सौंपी है। कांग्रेस में कुचायकोट से काली पांडेय हैं तो भाजपा ने सिवान से शहाबुद्दीन से लोहा लेने वाले ओम प्रकाश यादव को मैदान में उतारा है।

इस बार 30 फीसद प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले

बिहार के अपर मुख्य निर्वाचन अधिकारी संजय सिंह बताते हैं कि विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 71 सीटों के लिए नामांकन पत्र भरने वाले 30 फीसद प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। सबसे ज्यादा 10 आपराधिक मामले वाले प्रत्याशी गया जिले के गुरुआ विधानसभा सीट से हैं। पटना जिले की मोकामा सीट पर 50 फीसद प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। हाईप्रोफाइल सीट दिनारा में 19 में से नौ प्रत्याशियों पर मुकदमा है।

रिश्तेदारों को टिकट देकर दबंग पर्दे के पीछे सक्रिय

एडीआर के राज्य समन्वयक राजीव कुमार कहते हैं कि राजनीति के अपराधीकरण पर सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद उम्मीद जगी थी, फिर भी दागी-दबंग जनप्रतिनिधि रास्ता निकालने में सफल हो गए। स्पीडी ट्रायल के खौफ से वे पत्नी, बच्चे और रिश्तेदारों को विरासत सौंप कर पर्दे के पीछे से सक्रिय हो गए हैं। राजनीतिक दल भी चरित्रवान, गुणवान और जनता के प्रति समर्पित प्रत्याशी के बजाय, जिताऊ उम्मीदवार ढूंढते हैं।


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