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Bihar Election 2020: चुनाव आते ही सभी पार्टियों में लौंगी और दशरथ मांझी की होने लगी जय-जय

गया के दशरथ मांझी और लौंगी भुईंया जैसे शख्‍त विरले होते हैं। एक ने पहाड़ तोड़कर राह बना दी तो दूसरे ने 20 सालों में अकेले की कैनाल खोदकर खेतों तक पानी पहुंचा दिया। कमजोर तबके के लोगों के वोट भुनाने को ये राजनीतिक पार्टियाें का एजेंडा बनने को हैं।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2020 11:07 AM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2020 11:07 AM (IST)
Bihar Election 2020: चुनाव आते ही सभी पार्टियों में लौंगी और दशरथ मांझी की होने लगी जय-जय
बिहार विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल के बीच वोट भुनाने की सांकेतिक तस्‍वीर।

पटना, कमल नयन। Bihar Assembly Election 2020: दो अलग-अलग नाम पर कार्य में तकरीबन समानता। पूरे देश के लिए उदाहरण हैं गया के दशरथ मांझी और लौंगी भुईयां। बिरले इस तरह के शख्स होते हैं। इसका सौभाग्य गया को जरूर मिला जिसका नतीजा यह है कि दोनों  विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियों  का भी एजेंडा बनने को हैं।

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20 साल में अकेले खोद डाली पईन

बिहार-झारखंड की सीमा से सटे इमामगंज-बांकेबाजार के बीच का छोटा सा कस्बा कोठिलवा है। जहां के लौंगी भुईयां पर पईन (Canal) खोदने की धुन सवार थी। 20 बरस लग गए। लेकिन पांच किमी तक पईन खोद ही डाली। बरसात का पानी अब बर्बाद नहीं होता है, बल्कि लौंगी पईन में आकर जमा होता है और वहां से पटवन के काम आ रहा है।

इनसे मिलने राजनीतिक पार्टियों मे होड़ लग गई

लौंगी भुइंया के इस कार्य को सामाजिक संगठनों ने तो सराहा, राजनीतिक दल के नेताओं की लौंगी भुइयां से मिलने की होड़ लग गयी। एक पार्टी के जिला स्तरीय नेता लौंगी भुईयां से मिलकर उन्हें जल संरक्षण योजना का आइकॉन तक बताया। नेताओं ने लौंगी को चुनाव में खुलकर प्रचार करने का ऑफर तो नहीं दिया। लेकिन साथ ली गईं तस्वीरें इस कदर प्रदर्शित हो रही थीं कि आने वाले चुनाव में पार्टी उनकी अपनी तरह से जयकारा जरूर लगाएगी।

दशरथ मांझी के नाम से की गई कई मंचीय घोषणाएं

जिला मुख्यालय गया से उत्तर-पूरब कोण पर गहलौर पहाड़ी को चीरकर सड़क बनाने वाले दशरथ मांझी को कैसे भुलाया जा सकता है। 22 वर्षों तक पहाड़ से टकराकर दशरथ मांझी ने सड़क निकाल दी। दशरथ मांझी अपने कार्य को लेकर चर्चित हुए। तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें कुछ देर के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी। यह बड़ी बात हो गई। जिसके बाद उन्हें राजनीति से जुड़े दलों ने हाथों हाथ लिया। 17 अगस्त 2007 को दशरथ मांझी का निधन हो गया। गहलौर घाटी में एक प्रतिमा लगाई गई। सरकार से जुड़े कई नेता उन्हें नमन करने आए। राज्य सरकार ने उनके नाम से कई योजनाओं की शुरुआत कर दी। फिर दशरथ मांझी का नाम और भी तेजी से क्षितिज पर फैल गया। पिछले लोकसभा चुनाव में सतारूढ़ दल के नेताओं ने मंचीय घोषणा में उनके नाम और योजना को लेकर विकास की बात कही।

चुनाव आते ही दशरथ मांझी के बेहाली में जी रहे परिवार को मदद का दिया भरोसा

हाल में फिलहाल दशरथ मांझी के पुत्र भागीरथ मांझी व उनके परिवार के एक सदस्य बीमार पड़ गए। उन्हें देखने के लिए कई नेता घर तक गए। जहां जाकर उनके इलाज कराने का पूरा आश्वासन दिया। इतना ही नहीं गया के एक निजी नर्सिंग होम में उनका इलाज हुआ। एक दल के नेता ने परिवार के खर्च वहन करने तक की बात कह डाली। तब यह लगने लगा के सेवा भाव के पीछे राजनीतिक दलों की मंशा इस परिवार से अपनी पार्टी  की जय कराने की है।


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