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Bihar Assembly Elections 2020:पूर्णिया को रास नहीं आती विरासत की सियासत, नेताओं की अगली पीढ़ी ने सियासत से अपने को रखा दूर

पूर्णिया के अलग-अलग विधान सभा में पूर्व से ही विधायकों के लगातार निर्वाचित होने का रिकॉर्ड रहा है जो वर्तमान में भी कई विधान सभा में कायम है लेकिन विरासत को संभालने की ललक अगली पीढ़ी में नहीं रही।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Sat, 17 Oct 2020 10:37 PM (IST)Updated: Sat, 17 Oct 2020 10:37 PM (IST)
Bihar Assembly Elections 2020:पूर्णिया को रास नहीं आती विरासत की सियासत, नेताओं की अगली पीढ़ी ने सियासत से अपने को रखा दूर
पूर्णिया में विरासत की सियासत का दौर नहीं के बराबर रहा है।

पूर्णिया [प्रशांत पराशर]। पूर्णिया में विरासत की सियासत का दौर नहीं के बराबर रहा है। यहां एक ही व्यक्ति लंबे समय तक विधायक जरूर निर्वाचित होते रहे हैं, लेकिन उनकी अगली पीढ़ी के लोगों ने सियासत को नहीं चुना। बिहार के तीन-तीन बार मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान शास्त्री का परिवार हो या विधान सभा अध्यक्ष रहे लक्ष्मी नारायण सुधांशु का परिवार। इनके बाद परिवार के लोगों ने राजनीति में कदम नहीं रखा। पूर्णिया के अलग-अलग विधान सभा में पूर्व से ही विधायकों के लगातार निर्वाचित होने का रिकॉर्ड रहा है, जो वर्तमान में भी कई विधान सभा में कायम है, लेकिन विरासत को संभालने की ललक अगली पीढ़ी में नहीं रही।

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विधायक की हत्या या फिर उनके निधन के बाद उनकी पत्नी ने विरासत को जरूर संभाला है। पूर्णिया में अजीत सरकार की हत्या के बाद 1998 के उप चुनाव में उनकी पत्नी माधवी सरकार विधायक निर्वाचित हुई थी। लेकिन 2000 विधान सभा के चुनाव में राजकिशोर केशरी ने जीत दर्ज की थी। 2011 में राजकिशोर केशरी की हत्या के बाद संपन्न उप चुनाव में उनकी पत्नी किरण केशरी विधायक चुनी गईं। इसके बाद 2015 के विधान सभा चुनाव में विजय खेमका ने इस सीट पर कब्जा जमा लिया।

लगातार जीत की रही है परंपरा

जिले के लगभग सभी सात विधान सभा पूर्णिया, कसबा, धमदाहा, बनमनखी, रूपौली, बायसी एवं अमौर में जीत दोहराने या फिर लगातार जीत की परंपरा रही है। जनता ने जनप्रतिनिधियों को जीत सुनिश्चित करने के कई मौके दिए हैं। पूर्णिया सीट से ही लगातार छह बार 1952, 57, 62, 67, 69 और 72 के विधान सभा चुनाव में कमल देव नारायण सिन्हा ने जीत दर्ज की थी। 1977 के चुनाव में देव नाथ राय ने उनकी जीत पर ब्रेक लगाते हुए निर्वाचित हुए थे। इसके बाद पुन: 1980 से लगातार अजीत सरकार एवं 2000 से राजकिशोर केशरी ने लगातार जीत सुनिश्चित की।

इसी तरह धमदाहा से 1957, 62 और 67 के चुनाव में लक्ष्मी नारायण सुधांशु ने जीत दर्ज की थी। यहां से जीत दोहराने वालों में सूर्य नारायण यादव, अमरनाथ तिवारी, दिलीप यादव हैं। वहीं वर्तमान विधायक एवं पूर्व मंत्री लेसी ङ्क्षसह यहां से चार बार निर्वाचित हुई हैं।

बनमनखी में भी जीत की हैट्रिक का रिकॉर्ड रहा है। यहां से रसिक लाल ऋषिदेव तीन बार, चुन्न्नी लाल राजवंशी दो बार और वर्तमान विधायक व मंत्री कृष्ण कुमार ऋषि चार बार विधायक रहे हैं।

रूपौली विधान सभा में भी कई विधायकों ने जीत दुहराई है। बृह बिहारी ङ्क्षसह, आनंदी प्रसाद ङ्क्षसह, दिनेश कुमार ङ्क्षसह लगातार दो-दो बार विधायक रहे हैं। वहीं वर्तमान विधायक एवं मंत्री बीमा भारती ने यहां से चार बार जीत हासिल की है।

कसबा विधान सभा से राम नारायण मंडल और प्रदीप कुमार दास तीन-तीन बार विधायक रहे हैं। वहीं वर्तमान विधायक आफाक आलम भी यहां से तीन बार निर्वाचित हुए हैं। बायसी से वर्तमान विधायक अब्दुस सुब्हान सर्वाधिक छह बार निर्वाचित हुए हैं। इसके अलावा अब्दुल अहद मो नूर एवं हसीबुर रहमान ने दो-दो बार यहां का प्रतिनिधित्व किया है।

अमौर विधान सभा से वर्तमान विधायक एवं पूर्व मंत्री अब्दुल जलील मस्तान ने सर्वाधिक छह बार यहां का प्रतिनिधित्व किया है। इनके अलावा हसीबुर रहमान तीन बार एवं सबा जफर दो बार विधायक रहे हैं।


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