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Bihar Assembly Elections 2020 : फिर जग उठा है 'नेताओं का देश प्रेम'

Bihar Assembly Elections 2020 चुनाव प्रचार में देशभक्ति गीतों व प्रत्याशी प्रेम का घालमेल शुरू हुआ। राष्ट्रप्रेम और नेता को वोट देने की लाइनों से फिजा में घुलने लगा वीर रस। अनुत्तरित सवाल चुनाव के वक्त ही क्यों बजते हैं देशभक्ति गीत।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 11:55 PM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 11:55 PM (IST)
Bihar Assembly Elections 2020 : फिर जग उठा है 'नेताओं का देश प्रेम'
नेताजी चुनाव जीतने के लिए कर रहे 'हर करम'

भागलपुर [शंकर दयाल मिश्रा]। मेरे देश प्रेमियों आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों...! भागलपुर बाइपास पर जिच्छो के करीब दूर से आता यह गीत पल-पल कानों के करीब पहुंच रहा था। यह कहलगांव विधानसभा क्षेत्र का इलाका है। देश प्रेम का जज्बा जगाते गीत के बीच में एक प्रत्याशी के लिए वोट की अपील भी साथ में सुनाई देती है। तत्काल समझ में आया कि चुनाव प्रचार वाहन है। कुछ ही पल में एक प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में लगा ऑटो नजर आता है और पास आकर आगे बढ़ जाता है। कानों में गूंजती देश प्रेम और प्रत्याशी प्रचार की आवाज धीरे-धीरे कमजोर और  मद्धिम पड़ती जाती है।

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प्रचार वाहन नजर से ओझल हो चुका है। प्रचार गीत की जगह सड़क पर दौड़ते वाहनों की आवाज अब सुनाई देने लगती है, लेकिन दिमाग में एक सवाल कौंधता है- चुनाव के वक्त ही नेताओं-प्रचारकों को देश भक्ति गीत क्यों ध्यान में आता है? क्या सच में यह चुनाव देश प्रेम की भावना पर हो रहा है?

हालांकि, राष्ट्रप्रेम और नेता जी को वोट देने की लाइनों से फिजा में वीर रस का भाव घोलने वाला भोंपू प्रचार किसी एक प्रत्याशी का नहीं बल्कि सभी का है। कहलगांव में प्रथम चरण में वोटिंग है। इसलिए वहां भोंपू लगे वाहन दौड़ रहे हैं। भागलपुर में दूसरे चरण में। यहां भी प्रत्याशियों ने भोंपू प्रचार का आवेदन दे रखा है। भोंपू प्रचार का तरीका परंपरागत ही है। गाने के बोल देश प्रेमियों... के अतिरिक्त और कई हैं। इनमें, ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का... है प्रीत जहां की रीत सदा मैं गीत वहां के गाता हूं... कर चले हम फिदा जान-व-तन साथियों... हर करम अपना करेंगे ऐ वतन तेरे लिए...।

वाकई नेता जी चुनाव में जीतने के लिए 'हर करमÓ कर रहे हैं। वीर रस भरा भोंपू प्रचार इसका 'एक करमÓ मात्र है, ताकि माहौल बना रहे, जबकि चुनाव का असल प्रचार कुछ और ही नजर आ रहा है। जात-जमात, विकास या तात्कालिक आमदनी के द्वंद्व में वोटर उलझ से गए हैं।

कोरोना के कारण इस दफे पिछले चुनाव के जितना हंगामा नहीं बरपा है। पर मुद्दे वही हैं। विकास और बेरोजगारी की भी बात हो रही है, पर दोनों गठबंधनों के नेता अपने वोटरों को कुछ यूं डरा रहें कि हमें वोट दो नहीं तो दूसरा खा जाएगा। हालांकि, वोटर मौन हैं, क्योंकि अधिकतर मन बना चुके हैं कि किधर जाना है या किसे वोट देना है।

राजनीतिक विश्लेषक विजय वर्धन कहते हैं कि अब तक के बने सीन के मुताबिक अधिकतर सीटों पर एनडीए बनाम महागठबंधन का सीधा मुकाबला है। सभी सीटों पर प्रत्याशियों की संख्या भी हर बार की तरह दो से अधिक है। कुछ डमी कंडीडेट हैं तो कुछ गंभीर निर्दलीय तो कुछ वोटकटवा। एक दो सीटों को छोड़ दें तो अधिकतर की हैसियत वोटरों ने आंक रखी है। बावजूद चुनाव तक सारे प्रत्याशियों के हौसले बुलंद हैं। स्वभाविक है कि कोई हार नहीं रहा। ऐसे में प्रत्याशी और समर्थक देशभक्ति गीतों से खुद को संबल दे रहे हैं। सभी जान रहे हैं कि देश भक्ति गीतों के कुछ बोल मात्र ही कानों में पडऩे से ही शरीर के रोम-रोम में हलचल पैदा हो जाती है और लोग इसी बहाने उन्हेंं नोटिस कर लेते हैं।

यह है चुनावी देशभक्ति

बाइपास पर ही मितेश कुमार झा, अनुराग सिंधु, बुजुर्ग सीताराम साह, विनोद कुमार सिंह, अरुण कुशवाहा आदि की बातों का लब्बोलुअब यह कि देश सेवा करने के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं को पूरे पांच साल यह गीत याद नहीं आते लेकिन चुनाव के दिनों में ये लोग अपने लिए ऐसे-ऐसे गीतों का चयन करते हैं ताकि लोगों में जोश भरा जा सके। यह वोटरों को घरों से निकालकर जागरूक करने के लिए तो सही है पर वर्षों से चल रही यह चुनावी देशभक्ति बताती रही है कि नेता चुनावों के बाद इसे फिर से भुला देंगे। इन गीतों को बजाने की वास्तविकता यह कि कार्यकर्ता दिन भर जोश में रहें, शाम में उन्हेंं नेता जी की ओर से अलग से 'चार्जÓ किया ही जाएगा। बाकी 15 अगस्त और 26 जनवरी को छोड़ ऐसे गाने अब सुनाई कहां पड़ते हैं।


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