Bihar Assembly Elections 2020 : अनाथ कांत बसु थे ठाकुरगंज के पहले विधायक, पांच बार विधायक बने थे हुसैन
1952 में अस्तित्व में आई क्षेत्र संख्या- 229 ठाकुरगंज विधानसभा सीट का अपना इतिहास रहा है। 1952 के पहले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े अनाथ कांत बसु विजयी रहे। इसके बाद 1967 में कांग्रेस के टिकट पर हुसैन ने विजयी हासिल कर अपनी राजनीतिक पारी शुरू की।
किशनगंज [बीरबल महतो]। पड़ोसी देश नेपाल व पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल सीमा से सटे ठाकुरगंज विधानसभा क्षेत्र की अपनी एक अलग पहचान है। राज्य के मानचित्र में चाय, अनानास, तेजपत्ता, ड्रैगन फ्रूट आदि सहित विभिन्न तरह की नगदी फसल उत्पादन में अपना नाम दर्ज कर चुके ठाकुरगंज से अब तक 14 विधायक चुने गए हैं। 1952 में अस्तित्व में आए इस विधानसभा से अनाथ कांत बसु पहले विधायक बने थे। जबकि मो. हुसैन आजाद पांच बार निर्वाचित हुए और उनके नाम जीत का हैट्रिक भी दर्ज है।
1952 में अस्तित्व में आई क्षेत्र संख्या- 229 ठाकुरगंज विधानसभा सीट का अपना इतिहास रहा है। 1952 के पहले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े अनाथ कांत बसु विजयी रहे। इसके बाद 1967 में कांग्रेस के टिकट पर मो. हुसैन आजाद ने विजयी हासिल कर अपनी राजनीतिक पारी शुरू की। फिर 1969 और 1972 यानी लगातार तीन टर्म वे विधायक रहे और कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य करते रहे। 1977 में जनता दल के टिकट लड़े मो. सुलेमान ने मो. हुसैन आजाद को पटखनी देकर पहली बार गैर-कांग्रेस विधायक बनने का श्रेय लिया। अगले चुनाव में यानी 1980 में मो. हुसैन आजाद वापसी करने में कामयाब रहे फिर 1985 में भी उन्होंने जीत दर्ज की और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बने।
1990 के चुनाव में जनता दल के मो. सुलेमान ने वापसी करते हुए जीत दर्ज की। लेकिन 1995 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने इंट्री मारी और ठाकुरगंज विधानसभा के लिए एक अनजान चेहरा सिकंदर ङ्क्षसह ने अपना कब्जा जमाया। इसके बाद इस सीट पर राजनीतिक समीकरण बदल गए और राजनीति धानुका परिवार के इर्द गिर्द घूमने लगी। 2000 में निर्दलीय लड़े ताराचंद धानुका व भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े निवर्तमान विधायक सिकंदर ङ्क्षसह को पटखनी देकर मो. हुसैन आजद के पुत्र डॉ. मो.जावेद ने बाजी मारी।
महज 179 मतों के अंतर से हार गए थे तारचंद धानुका
फरवरी 2005 में कांटे की टक्कर में डॉ मो.जावेद ने मात्र 179 मतों से ताराचंद धानुका पराजित कर दोबारा विधानसभा सभा पहुंचे पर अल्पमत के कारण नीतीश कुमार की सरकार नहीं बन पाई। अक्टूबर 2005 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़े ताराचंद धानुका के पुत्र गोपाल कुमार अग्रवाल ने डॉ. मो.जावेद को करीब चार हजार मतों से पराजित कर विधानसभा पहुंचे। इस दौरान गोपाल कुमार अग्रवाल सपा के विधायक दल के नेता चुने गए। कुछ माह बीत जाने के बाद गोपल कुमार अग्रवाल समाजवादी पार्टी को छोड़ जदयू में शामिल हो गए। 2010 के चुनाव में परिसीमन के बाद जदयू के टिकट पर लड़े गोपाल कुमार अग्रवाल अपनी सीट बचा नहीं पाए और लोजपा प्रत्याशी नौशाद आलम ने उन्हें करीब छह हजार मतों से शिकस्त दी। नौशाद आलम भी गोपाल कुमार अग्रवाल के नक्शे कदम पर चलते हुए कुछ माह बाद जदयू में शामिल हो गए। नौशाद आलम 2015 में फिर जदयू के टिकट पर चुनाव लड़े और लोजपा के प्रत्याशी गोपाल कुमार अग्रवाल को दोबारा पराजित कर सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा।