Bihar Election 2020: असली परीक्षा में फेल हुईं वर्चुअल रैलियां, अब चुनाव प्रचार को जमीन पर उतर रहे नेता
Bihar Assembly Election 2020 बिहार चुनाव में वर्चुअल रैलियां उतना प्रभाव नहीं जमा पा रहीं हैं जितनी उम्मीद की गई थी। ऐसे में अब चुनाव प्रचार के लिए राजनीतिक दलों के नेता जमीनी रैैलियां कर रहे हैं। इसका आरंभ बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने किया है।
पटना, रमण शुक्ला। Bihar Assembly Election 2020: अभी ठीक से चुनाव प्रचार (Election Campaign) भी नहीं शुरू हुआ कि आभासी रैलियों (Virtual Rallies) का 'कांसेप्ट' फेल होता नजर आ रहा है। राजनीतिक दल (Political Parties) अब नए ढंग से जमीनी प्रचार यानी एक्चुअल रैली (Actual Rally) और सभाओं के कार्यक्रम तैयार कर रहे हैं। वर्चुअल रैलियों पर न तो नेताओं को भरोसा हो रहा है, न ही जनता का। राजनीतिक दलों के जमीनी चुनाव प्रचार का आरंभ भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा गया से कर चुके हैं। बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनसभाएं भी हो रहीं हैं। आगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राहुल गांधी, चिराग पासवान सहित सभी दलों के बड़े नेताओं की जनसभाएं भी होने वाली हैं।
बीजेपी ने शुरू कर दीं ताबड़तोड़ एक्चुअल रैलियां
शुरुआत में वर्चुअल रैली को लेकर अत्यधिक उत्साही भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने बिहार चुनाव के लिए अब चार हेलीकॉप्टर उतार दिए हैं। शीर्ष टीम को पार्टी की ओर से गाड़ी मुहैया कराई जा रही है। भूपेंद्र यादव, सुशील मोदी, नित्यानंद राय, मंगल पांडेय और प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल सरीखे नेताओं ने ताबड़तोड़ एक्चुअल रैलियां शुरू कर दी हैं। दिग्गज नेता की प्रतिदिन एक -दो नामांकन कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं, वहीं दो से तीन रैली हो रही है।
पारंपरिक मतदाताओं को उलझा रहीं वर्चुअल रैलियां
राजनीतिक दलों के पास फीडबैक है कि आभासी रैलियां जनता को समझ नहीं आ रहीं। पार्टी के परंपरागत मतदाता भ्रमित हो रहे हैं। इसी वजह से बीजेपी ने अपनी रणनीति बदल दी है। अब बड़े नेताओं को शीर्ष नेतृत्व की ओर से टास्क दिया गया है। बीजेपी प्रत्याशियों से पूछकर सामाजिक समीकरण के आधार नेताओं को मैदान उतारा जा रहा है।
गया में जनसभा कर चुके नड्डा, नीतीश की सभा आज
पार्टी नेताओं को संदेश देने के लिए स्वयं बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा गया आए। चुनाव प्रचार और जमीनी लड़ाई को परवान चढ़ाने का संदेश दिया। बीजेपी के बाद अब मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार भी बुधवार से एक्चुअल रैली करेंगे।
पहुंच का संकट, स्मार्ट फोन है कितने लोगों के पास
सियासी दलों को मानना है कि किसान, कामगार और महिलाओं के वोट का भरोसा रहता है। उनमें से अधिसंख्य के पास स्मार्ट फोन नहीं है। जिनके पास स्मार्ट फोन हैं, वे एक या दो घंटे की वर्चुअल रैली में शामिल होंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है। दलों से जुड़े तमाम बुजुर्ग मतदाताओं का तर्क है कि सूचना आदान-प्रदान का सबसे सशक्त माध्यम सोशल मीडिया है लेकिन यही सोशल मीडिया अब लोगों को गुमराह, प्रभावित और दिग्भ्रमित करने का एक 'कपटी' हथियार बन गया है।
सही बात पर भी विश्वास नहीं दिला पा रही सोशल मीडिया
चुनाव में सुधारों को लेकर काम करने वाली संस्था बिहार इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के राजीव कुमार कहते हैं कि सोशल मीडिया की वजह से दुष्प्रचार तो केवल इसका पहला चरण है, जिसके प्रभाव से लोकतंत्र ध्वस्त हो रहा है। जनता की सोच का दायरा निर्धारित किया जा रहा है। सोशल मीडिया को बाजार तक लाने वाली कंपनियों ने शुरू में लोगों को व्यापक अनियंत्रित जानकारी और स्वच्छंद वातावरण से सशक्तीकरण का झांसा दिया था, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, अलबत्ता यह दुष्प्रचार और गलत जानकारियों का ऐसा सशक्त माध्यम बन गया, जिससे करोड़ों लोगों को आसानी से गुमराह किया जा सकता है। हालत यह है कि सही जानकारियों पर भी लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है। सोशल मीडिया पर जरूरत के अनुसार अलग वातावरण तैयार किया जा रहा। इसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं।