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Bihar Assembly Election 2020: एमपी व पंजाब में आजमाए गए फार्मूले को चुनावी अस्त्र बना रहा महागठबंधन

चुनावी वादों से सियासत बदलने के इन ताजा उदाहरणों को देखते हुए ही महागठबंधन इन्हें सबसे ताकतवर अस्त्र बना रहा है। समाज के सभी अहम तबकों को सीधे छूने वाले दूसरे लुभावने वादों में साफ तौर पर इन राज्यों में कांग्रेस के प्रयोग की झलक है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 09:02 PM (IST)Updated: Thu, 22 Oct 2020 10:54 AM (IST)
Bihar Assembly Election 2020: एमपी व पंजाब में आजमाए गए फार्मूले को चुनावी अस्त्र बना रहा महागठबंधन
तेजस्‍वी यादव और राहुल गांधी की फाइल फोटो।

संजय मिश्र, नई दिल्ली। बिहार में सत्ता की दौड़ को चुनावी वादों के रथ पर सवार करने की महागठबंधन की रणनीति को राजग भले 'अव्यवहारिक' बता रहा हो मगर हकीकत यह भी है कि छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश के साथ पंजाब में कांग्रेस ने इसी दांव से सत्ता की बाजी पलटने में कामयाबी हासिल की थी। महागठबंधन के दो बड़े चुनावी वादे 10 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी और किसानों की कर्ज माफी साफ तौर पर पंजाब, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में हिट हुए चुनावी फार्मूले के अनुरूप हैं।

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छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश और पंजाब के अपने दांव के अनुरूप महागठबंधन की रणनीति आगे बढ़ा रही कांग्रेस

चुनावी वादों से सियासत बदलने के इन ताजा उदाहरणों को देखते हुए ही महागठबंधन इन्हें अपना सबसे ताकतवर अस्त्र बना रहा है। बड़े चुनावी वादों के साथ ही समाज के सभी अहम तबकों को सीधे छूने वाले दूसरे लुभावने वादों में साफ तौर पर इन राज्यों में कांग्रेस के प्रयोग की झलक है। इसीलिए माना जा रहा कि महागठबंधन के अहम चुनावी वादों की रूपरेखा कांग्रेस के थिंक-टैंक ने तैयार की है। 

महाठबंधन के चुनावी वादे की रूपरेखा में कांग्रेस के थिंक-टैंक की साफ झलक

राजनीतिक विश्लेषकों में इस बात को लेकर शायद ही कोई मतभेद हो कि केवल किसानों की कर्ज माफी के चलते शिवराज सिंह चौहान जैसे दमदार चेहरे के रहते हुए भी 2018 के चुनाव में कांग्रेस मध्यप्रदेश में भाजपा से सत्ता छीनने में कामयाब हुई। इस कांटे के चुनाव में कुछ सीटों के अंतर से कांग्रेस को मिली जीत के बाद शिवराज ने भी माना था कि किसानों का दो लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने के वादे के चलते चुनावी नतीजा बदल गया। इस चुनाव में पार्टी ने युवाओं को बड़ी संख्या में रोजगार देने का भी वादा किया था। कमलनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद कर्ज माफी का बडा फैसला भी तुरंत लिया। हालांकि यह अलग बात है कि 15 महीने के भीतर पार्टी विधायकों के विद्रोह के कारण कांग्रेस की सरकार गिर गई। 

छत्तीसगढ में तो कांग्रेस का चुनावी नारा ही था 'बिजली बिल हाफ, कर्जा माफ'। जबकि दूसरा अहम चुनावी वादा किसानों से धान की खरीद 2500 रुपये क्विंटल करने की गारंटी। सत्ता विरोधी मिजाज के साथ इन चुनावी वादों का ही असर रहा कि रमन सिंह की 15 साल की भाजपा की सरकार बुरी तरह परास्त हो गई और कांग्रेस को सूबे में दो तिहाई से भी ज्यादा बहुमत मिल गया। राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्र के वादों की अहमियत छत्तीसगढ के चुनाव में भी साबित हुई। 

वैसे, फरवरी 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने मुफ्त पानी और बिजली जैसे लुभावने चुनावी वादों के बूते सियासी कामयाबी की इबारत लिखी। 2014 के बाद से कई राज्यों में सत्ता गंवा चुकी कांग्रेस ने 2017 के पंजाब के चुनाव में लोक-लुभावने वादों से सियासत बदलने का बड़ा सफल प्रयोग किया।

आम आदमी पार्टी के नेता दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पंजाब में उस समय चरम पर पहुंची लोकप्रियता की लहर और अकाली दल की दोहरी चुनौती को कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भांपते हुए बड़े चुनावी वादों का दांव चला। किसानों की दो लाख रुपये की कर्ज माफी, हर घर के एक व्यक्ति को नौकरी, बेरोजगारों को 2500 रुपये मासिक भत्ता से लेकर युवाओं को मुफ्त स्मार्ट फोन जैसे वादों ने इस तगड़े मुकाबले में भी कांग्रेस की कामयाबी में बड़ी भूमिका निभाई। जाहिर तौर पर कांग्रेस महागठबंधन की चुनावी रणनीति को इस आजमाए हुए फार्मूले के सहारे ही आगे बढ़ाने की राह पर चल रही है।


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