Bihar Assembly Election: दलबदलुओं के गले में गठबंधन की फांस, इस बार कम ही है टिकट की आस
Bihar Assembly Election 2020 बिहार चुनाव में इस बार दलबदलुओं पर गठबंधन की राजनीति भारी पड़ रही है। दलाें के गठबंधनों में शामिल होने के कारण सीटों की संख्या घट गई है। ऐसे में पुराने विधायकों के टिकट कटने के हालात हैं। फिर बाहर से आने वालों का क्या होगा?
पटना, दीनानाथ साहनी। Bihar Assembly Election 2020: दल बदलने वाले अधिसंख्य नेताओं की किस्मत इस बार शायद ही बदले। 2010 और 2015 का विधानसभा चुनाव दल बदलने वालों के लिए स्वर्णिम मौके लेकर आए थे। लेकिन इस बार गठबंधन की राजनीति (Politics of Alliances) ने सीटों की संख्या घटा दी है। जिन्होंने चुनाव के कुछ महीने पहले दल बदल लिया, वे अभी लटके हुए हैं। बड़े दलों में किसी को टिकट की गारंटी नहीं मिल रही है। सवाल यह है कि जब पुराने विधायकों के टिकट कटने की स्थिति है, तो बाहर से आने वालों का क्या होगा?
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. एनके चौधरी के मुताबिक 2010 में 17 और 2015 में 13 दल-बदलुओं ने चुनाव जीते थे। गठबंधन में शामिल पार्टियों के नेता पहले अपने ही कुनबे के बीच टिकट बांट लेंगे। इसके बाद किसी दूसरे का नंबर आएगा।
मजबूत जनाधार पर टिकट की गारंटी नहीं
बिहार की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले पूर्व कुलपति प्रो.आरबी सिंह कहते हैं कि सिटिंग होने या पिछले चुनाव में अच्छा वोट बटोरने के बावजूद दलबदल के आधार पर टिकट की गारंटी नहीं मिल पा रही है। मजबूत आधार वाले कई नेताओं को अपनी ही पार्टी में टिकट मिलने की गारंटी नहीं है। यह संकट सीटों की कमी के चलते पैदा हुआ है। इसकी वजह प्रमुख दलों के पास सीटों का बंट जाना है। हां, इस चुनाव में दो-चार बाहरी उम्मीदवारों की गुंजाइश बन भी जाए तो यह मांग के हिसाब से कम ही मानी जाएगी।
छोटी पार्टियों में टिकट की भरपूर गुंजाइश
भारतीय जनता पार्टी (BJP), जनता दल यूनाइटेड (JDU), राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस (Congress) जैसे बड़े दल में भले ही टिकट मिलने की गुंजाइश कम हो, पर छोटी और क्षेत्रीय पार्टियां जैसे- राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP), बहुजन समाज पार्टी (BSP) और जन अधिकार पार्टी (JAP) में दल-बदलुओं को आशा की किरण दिखाई दे रही है। तीसरे मोर्चे (Third Front) के आकार लेने पर दल-बदलुओं के बीच इन पार्टियों का क्रेज और बढ़ जाएगा। वैसे कांग्रेस (Congress) भी ऐसे उम्मीदवारों को उपकृत करने की कोशिश कर सकती है।
पहले की तरह खुले नहीं एलजेपी के भी हाथ
दल-बदलुओं या मेहमानों के लिए मुफीद समझी जाने वाली लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के हाथ भी पहले की तरह खुले नहीं रह गए हैं। पार्टी का नेतृत्व चिराग पासवान (Vhirag Paswan) के हाथों में है। युवा होने के कारण उनके पास राजनीति करने के लिए लंबी पारी बची हुई है। सो, वे बदनामी से भी डर रहे हैं। कुछ चुनावों में एलजेपी इस आरोप के साथ बदनाम रही है कि वह उम्मीदवारों के चयन में जन समर्थन के बदले धन समर्थन पर जोर देती है। इस बार कुछ बदला-बदला माहौल हो सकता है।