Bihar Election: एकता का संदेश देने में फेल हुए गठबंधन, विराधियों से पहले आपस में लड़ रहीं पार्टिंयां
Bihar Assembly Election 2020 बिहार चुनाव को लेकर एनडीए व महागठबंघन दोनों में खींचतान मची हुई है। विपक्षी दलों के निपटने के पहले सीटों के मसले व अन्य मुद्दों पर गठबंघन के घटक दल आपस में ही भिड़ रहे हैं।
पटना, अरुण अशेष। Bihar Assembly Electio 2020: चुनावी मैदान में विपक्षियों से निपटने के पहले बिहार के दोनों प्रमुख गठबंधनों (Alliances) के घटक दलों के बीच आपस में मची खींचतान सार्वजनिक हो रही है। सीट बंटवारे (Seat Sharing) की इस लड़ाई को वे छिपा नहीं पा रहे हैं। बयान दिए जाएं या नहीं, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) एवं महागठबंधन (Grand Alliance) से सबकुछ छनकर बाहर आ जा रहा है।
पहले से अलग इस बार चुनाव से पहले का सीन
इस बार बिहार में चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) से पहले का सीन पिछले चुनावों के मुकाबले अलग है। दलों में होड़ मची है कि सीटों के बंटवारे के मसले पर पहले आपस में फैसला कर लिया जाए। ठेठ में समझिए तो फरिया लिया जाए। तब सत्ता के लिए असली लड़ाई होगी। इसी फेर में एनडीए और महागठबंधन (Mahagathbandhan) के घटक दल एक-दूसरे की हैसियत बताने में जुटे हैं। एनडीए में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) अलग राह पकड़ ले रही है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) बाकी दलों से और अन्य मित्र दल पहले उन्हीं से निबट लेना चाहते हैं।
जेडीयू ने सीटों की कुर्बानी देकर बनाया था महागठबंधन
2015 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने 18 से अधिक जीती हुई सीटों की कुर्बानी देकर महागठबंधन का मजबूत ढांचा तैयार किया था। उस समय जेडीयू को छोड़ महागठबंधन के दोनों दलों-आरजेडी और कांग्रेस (Congress) के पास खोने के लिए कुछ नहीं था। ताकत के तौर पर उसके पास आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) जैसे मध्यस्थ थे, जिनकी कोशिशों से चुनाव की अधिसूचना के जारी होने के पहले सीटों का विवाद सलट गया था। वह इस समय सशरीर हाजिर नहीं हैं, तो महागठबंधन स्वरूप नहीं ले रहा है।
एलजेपी को कहीं से शह मिलने के लग रहे कयास
बहरहाल, एनडीए को देखें। राज्य में पुराना एनडीए भारतीय जनता पार्टी (BJP) व जेडीयू के सहयोग से ही है। 2015 को छोड़ दें तो विधानसभा चुनाव में पहली बार किसी तीसरे दल को इसमें जोड़ने की कोशिश हुई है। एक पार्टी के नाते एलजेपी की हैसियत और उसकी स्वतंत्र दावेदारी का सम्मान किया ही जाना चाहिए। एलजेपी की धमकी और उसे मनाने के जतन में कुछ और चीजें देखी जा रही हैं- एनडीए के घटक दल चुनाव मैदान में जाने से पहले एकबार जेडीयू से जोर आजमाइश कर लेना चाहते हैं। ताकि चुनाव के बाद भूल-चूक लेनी-देनी जैसा कुछ किया जा सके। यह बात गठबंधन के नेता भले न बोलें, आम लोग बोल रहे हैं- एलजेपी को जरूर कहीं से शह मिल रही है। जेडीयू को भी इसका अहसास है। काट के लिए उसने पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi) की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) को खुद से जोड़ लिया है। याद कीजिए। मांझी ने जेडीयू से जुड़ने के बाद पहला मोर्चा एलजेपी के खिलाफ ही खोला था। यह बीजेपी के लिए भी संदेश था कि दलितों के मुद्दे को उठाने के लिए आपके पास चिराग पासवान तो मेरे पास भी जीतनराम मांझी हैं।
महागठबंधन में भी आरजेडी से दो-दो हाथ कर रहे सहयोगी
महागठबंधन का सबसे बड़े दल आरजेडी से उसके बाकी सहयोगी दो-दो हाथ कर रहे हैं। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) और हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा निकल गए। विकासशील इनसान पार्टी (VIP) के मुकेश सहनी (Mukesh Sahani) से महागठबंधन के अलावा एनडीए की उम्मीद बनी हुई है। अब कांग्रेस और वाम दल (Left Parties) बचे हुए हैं। संयोग से आरजेडी के साथ इन दलों का पुराना नाता है। 1990 से अबतक वाम दल आरजेडी या पूर्ववर्ती जनता दल से जुड़े रहे हैं। कांग्रेस बाद में जुड़ी। इन दलों को कभी साझे में तो कभी अकेले लड़ने का अनुभव रहा है। एनडीए के घटक दल अगर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पार्टी जेडीयू से हिसाब करना चाह रहे हैं तो यही भाव आरजेडी के प्रति महागठबंधन के घटक दलों का भी है। यहां भी वही हिसाब काम कर रहा है। अभी अधिक सीट हासिल हो गई तो सरकार बनाने में अपनी हुकूमत चलाएंगे। तमाम विवादों के बावजूद मानकर चलना चाहिए महागठबंधन में सीटों का मसला सलट गया है।