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Assam Assembly Election 2021 : असम की 'चाय' में आया राजनीतिक उबाल

गुवाहटी से निकलने के बाद ऊपरी असम की ओर बढ़ते हुए मीलों तक फैले चाय बागान खुद असम की अर्थव्यवस्था में चाय का महत्व बयां कर देते हैं मगर इससे अलग हटकर बात करें तो चुनावी दौर की लाल चाय में राजनीति का तड़का लग चुका है।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sat, 20 Mar 2021 10:18 PM (IST)Updated: Sat, 20 Mar 2021 10:18 PM (IST)
Assam Assembly Election 2021 : असम की 'चाय' में आया राजनीतिक उबाल
राहुल के वार के बाद प्रधानमंत्री के पलटवार से असम की चाय में राजनीतिक ऊबाल आ गया है।

गुवाहटी [महेश कुमार वैद्य]। असम व चाय की घनिष्ठता किसी से छुपी नहीं है। चाय के बिना असम का परिचय अधूरा है। यहां बेशक हरियाणा की तरह दूध-दही का खाना वाली कहावत पीछे छूट रही है, मगर काली पत्तियों की लाल चाय की मेहमानवाजी की बात ही कुछ और है। गुवाहटी से निकलने के बाद ऊपरी असम की ओर बढ़ते हुए मीलों तक फैले चाय बागान खुद असम की अर्थव्यवस्था में चाय का महत्व बयां कर देते हैं, मगर इससे अलग हटकर बात करें तो चुनावी दौर की लाल चाय में राजनीति का तड़का लग चुका है। पिछले दो दिन में हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व राहुल गांधी की रैलियों के बाद चाय और चायवाले की चर्चा जोर पकड़ गई है। राहुल के वार के बाद प्रधानमंत्री के पलटवार से असम की चाय में राजनीतिक ऊबाल आ गया है।

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चाय बनी प्रमुख चुनावी मुद्दा

असम में तीन चरणों में चुनाव है। पहले चरण में 27 मार्च को, दूसरे चरण में 1 अप्रैल को व तीसरे चरण में 6 अप्रैल को मतदान है। गुवाहटी व आसपास के क्षेत्र में चाय भले ही प्रमुख चुनावी मुद्दा नहीं है, मगर पहले और दूसरे चरण में जहां चुनाव होने हैं, वहां चाय बागान के श्रमिकों का बड़ा वोट बैंक है। इसी वोट बैंक को ध्यान में रखकर 19 मार्च को राहुल गांधी ने चाय श्रमिकों को 365 रुपये प्रतिदिन देने का वादा किया था। साथ ही यह आरोप भी लगाया था कि भाजपा सरकार ने 351 रुपये का वादा करके केवल 167 रुपये मजदूरी ही दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को अपर असम के चबुआ में यह कहकर माहौल को भाजपा के पक्ष में करने का प्रयास किया है कि एक चायवाला आपके दर्द को नहीं समझेगा तो कौन समझेगा। मोदी यह कहना भी नहीं भूले कि चाय बागानों में काम करने वाले हमारे भाईयों पर कांग्रेस ने कभी ध्यान नहीं दिया। "चाय वाले" का यह पलटवार कुछ घंटे में ही चर्चित हो गया है।

बागान के बीच दैनिक जागरण

मोदी-राहुल की रैलियों से चर्चा में आई चाय का राजनीतिक जायका लेने के लिए दैनिक जागरण सीधे बागानों के बीच पहुंचा। वर्ष 1984 से बागान में काम कर रही उदलगिरी की पार्वती बराई कहती है कि वर्ष 1984 में छह दिन काम करके 54 रुपये मिलते थे। बाद में भी मजदूरी कम रही। अब कुछ सालों से दिन बदले हैं। प्रतिदिन 167 रुपये मिल रहे हैं। इसके अलावा मोदी ने गरीबों की बहुत मदद की है। मोदी निराश नहीं करेंगे। पार्वती की बात यह बताने के लिए काफी है कि भाजपा को यहां भी सीएम से अधिक पीएम का सहारा है। इसी बाग में कार्यरत गणेश भी मोदी के नाम व मुख्यमंत्री सर्वानन्द सोनवाल के काम की बात करते हैं, मगर सुचित्रा को राहुल के वादे पर भरोसा है। सुचित्रा का कहना है कि कांग्रेस गठबंधन के वादे भी भरोसे लायक है।

असम और चाय

असम में लगभग 850 चाय बागान है। एक अनुमान के अनुसार यहां संगठित क्षेत्र के ही 10 लाख श्रमिक कार्यरत हैं। असंगठित क्षेत्र की बात इससे अलग है। देश की चाय में असम की 50 फीसद से अधिक की हिस्सेदारी इन्हीं श्रमिकों के बल पर है। असम की 126 में से लगभग तीन दर्जन विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां चाय से जुड़ी जनजातियां व जातीय समुदाय निर्णायक भूमिका में है। वन (इमारती लकड़ी व बांस) के अलावा चाय का भी असम की अर्थव्यवस्था में अहम स्थान है।

लाल चाय और कोरोना

बिना दूध की लाल चाय यहां बेहद लोकप्रिय है। लाल चाय से खातिरदारी घर-घर आम बात है, मगर कोरोना के बाद लाल चाय पहले से अधिक खास हो गई है। असम में यह आम धारणा है कि इसे पीने से कोविड-19 संक्रमण का खतरा टल जाता है। जोरहाट जिले में स्थित चाय अनुसंधान केंद्र इस पर काम कर रहा है। इसे रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाला पेय पदार्थ माना जाने लगा है। आयुष मंत्रालय की संस्तुति भी लाल चाय के पक्ष में मिल चुकी है।


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