दांव पर लगी मां मेनका की प्रतिष्ठा, वरूण गांधी के समक्ष गढ़ बचाने की चुनौती
पीलीभीत सीट भाजपा व कांग्रेस का गढ़ नहीं बल्कि मेनका गांधी का दुर्ग है। इस बार इस सीट से उनके पुत्र वरूण गांधी चुनाव लड़ रहे हैं। इस दुर्ग को बचाना उनके लिए एक बड़ी चुनौती होगी
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। देश के आम चुनाव में कुछ संसदीय सीटों पर पक्ष और विपक्ष दोनेां की निगाहें होती है। इन चुनिंदा सीटों पर हार-जीत के बड़े मायने होते हैं। इसमें उत्तर प्रदेश की पीलीभीत संसदीय सीट भी शामिल है। दरअसल, यह सीट गांधी परिवार का एक प्रमुख गढ़ है। इस संसदीय सीट से इंदिरा गांधी की छोटी बहू और संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी छह बार सांसद रह चुकी हैं। एक बार मेनका के पुुत्र वरूण गांधी भी इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं। 15वीं लोकसभा चुनाव में वरूण ने कांग्रेस उम्मीदवार को भारी मतों से पराजित किया। वरूण की जीत ने यह सिद्ध कर दिया था कि यह सीट कांग्रेस या भाजपा का गढ़ नहीं है, बल्कि मेनका का दुुुुर्ग है। 2019 के आम चुनाव में एक बार फिर पीलीभीत संसदीय सीट से वरूण गांधी भाजपा के उम्मीदवार हैं। इसलिए लोगों की निगाह इस बात पर टिकी है, क्या पीलीभीत की जनता वरूण गांधी को दूसरी बार अपना प्रतिनिधि चुनेगी। आइए जानते हैं मेनका गांधी के इस गढ़ के बारे।
अमेठी ने किया मायूस, पीलीभीत ने दिया मेनका को सहारा
दरअसल, 1984 के आम चुनाव में अमेठी लोकसभा सीट पर मेनका गांधी की करारी हार के बाद गांधी परिवार के इस बहू को एक उर्वर राजनीतिक भूमि की तलाश थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अमेठी की जनता को तय करना था कि इस सीट पर गांधी परिवार का असली वारिस कौन है। अमेठी संसदीय सीट से राजीव गांधी भारी मतों से विजयी हुए। मेनका गांधी पराजित हुई।
कांग्रेस को भारी बहुमत मिला और राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बनें। 1989 के आम चुनाव में मेनका गांधी पीलीभीत संसदीय सीट से जनता दल की उम्मीदवार बनीं। इस सीट से वह भारी मतों से विजयी हुई। मेनका को 57.34 फीसद मत मिले थे, जबकि कांग्रेस को 29.37 फीसद मत हासिल किए। इस तरह मेनका लोकसभा में छह बार पीलीभीत की जनता का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। खास बात यह है कि इस संसदीय सीट से वह दो बार स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में विजयी रहीं। 15वीं लोकसभा चुनाव में मेनका गांधी के पुत्र वरूण गांधी इस सीट से भाजपा के उम्मीदवार थे। पीलीभीत की जनता ने वरूण पर भी अपनी आस्था दिखाई और वह भारी मतों से विजयी हुए।
कांग्रेस की गढ़ नहीं बन सकी पीलीभीत संसदीय सीट
आजादी के बाद पीलीभीत लोकसभा सीट उन चुनिंदा सीटों में शामिल थी, जो कांग्रेस का गढ़ नहीं कही जा सकती। जी हां, यहां 1951 के आम चुनाव में ही कांग्रेस ने जीत का स्वाद चखा था, इसके बाद से यह सीट विपक्ष की झोली में चली गई। दूसरे, तीसरे और चौथे आम चुनाव में यहां कांग्रेस के प्रत्याशी काे पराजय का समाना करना पड़ा। इस सीट पर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का दबदबा था। लगातार तीन बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने जीत दर्ज की। हालांकि, 1971, 1980 और 1984 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी विजयी हुए, लेकिन इसके बाद यहां से कभी कांग्रेस उम्मीदवार विजयी नहीं हुआ।
दावं पर लगी मेनका गांधी की प्रतिष्ठा
2019 के आम चुनाव में वरूण गांधी का मुकाबला सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार हेमराज वर्मा से है। यह सपा के प्रत्याशी हैं। चुनाव में कांग्रेस ने अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है। इसलिए यह मुकाबला भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन के बीच है। वरूण गांधी के पास मां मेनका गांधी का परपंरागत वोट बैंक है। उनकी लोकप्रियता और उनकी साख है। तो वहीं पहली बार सपा और बसपा गठबंधन अपनी जीत के आस से चुनावी मैदान में उतरी है।