हर्ष वी. पंत। हिंद महासागर स्थित मालदीव में नई सरकार गठित होने के बाद से उसकी भारत की तनातनी बढ़ने पर है। रसातल में जा रहे रिश्तों का संज्ञान लेते हुए मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने अपनी जनता की ओर से भारत के माफी मांगी। उन्होंने मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के सामान्य कूटनीतिक शिष्टाचार के प्रतिकूल व्यवहार पर भारत की संयत प्रतिक्रिया को भी सराहा।

नशीद ने कहा, ‘जब मालदीव के राष्ट्रपति ने भारतीय सैन्यकर्मियों से देश छोड़ने को कहा तो भारत ने किसी प्रकार की कोई दबंगई नहीं दिखाई और मामले पर संवाद की राह अपनाई।’ मोइज्जू का चुनाव प्रचार अभियान ही भारत विरोध पर केंद्रित था। सत्ता संभालने के बाद उन्होंने अपने पहले विदेश दौरे के लिए तुर्किये को चुना, जबकि उनके पूर्ववर्ती अपने पहले विदेश दौरे पर भारत आते रहे। दिसंबर में आयोजित कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन में भी मालदीव अनुपस्थित रहा।

मुइज्जू सरकार ने भारत के साथ हाइड्रोग्राफिक सर्वे के अनुबंध को भी आगे बढ़ाने से इन्कार कर दिया। पिछले साल के अंत में और नववर्ष के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे के बाद भी तल्खियां देखी गईं। मालदीव के कुछ मंत्रियों को लगा कि मोदी मालदीव के मुकाबले लक्षद्वीप को खड़ा करने का प्रयास कर रहे और उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री पर कुछ अपमानजनक टिप्पणियां कीं। उसके बाद इंटरनेट मीडिया पर व्यापक आक्रोश देखा गया, जिसकी तपिश मालदीव और उसके पर्यटन उद्योग को झेलनी पड़ी। इस पर भी मुइज्जू की हेकड़ी कम नहीं हुई थी। उन्होंने कहा कि हम भले ही छोटे देश हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हमें धमकाया जाएगा।

एक ओर मुइज्जू के नेतृत्व में मालदीव भारत से किनारा कर रहा है तो दूसरी ओर वह चीन से नजदीकियां बढ़ाने में लगा है। चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना की सराहना करते हुए मुइज्जू ने इसे मालदीव के इतिहास की सबसे उल्लेखनीय अवसंरचना परियोजना बताया। जहां मुइज्जू को मालदीव में मौजूद चुनिंदा भारतीय सैनिकों की वापसी को लेकर कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी थी, वहीं चीन के साथ सामरिक करार को लेकर भी वह बहुत हड़बड़ी में दिखे।

चीन के साथ इस करार में तमाम बातें भले ही गुप्त रखी जा रही हों, लेकिन सामरिक मामलों में चीन की संदिग्ध मंशा किसी से छिपी नहीं रही है। यह वाकई हैरान करने वाली बात है कि सामरिक साझेदारी के मोर्चे पर मुइज्जू को पारदर्शी एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले भारत से तो समस्या थी, लेकिन तानाशाही शासन वाले साम्यवादी चीन के साथ नहीं। इस पूरे प्रकरण पर भारत की प्रतिक्रिया बहुत परिपक्व एवं संयत रही। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि कई बार देशों के बीच कुछ गलतफहमियां पैदा हो सकती हैं। जयशंकर ने कूटनीतिक माध्यमों के जरिये उन गलफहमियों के दूर होने की आशा भी जताई। बीते दिनों मुइज्जू के तेवर कुछ नरम भी दिखे, जब उन्होंने भारत से लिए कर्ज के प्रविधानों को लेकर कुछ राहत-रियायत बरतने की बात कही। उल्लेखनीय है कि मालदीव इस समय भारी कर्ज के बोझ तले दबा है।

चीन के प्रति मालदीव का हालिया झुकाव भारत के नजरिये से तो वैसे उसका अंदरूनी मामला है, लेकिन उसके लिए इसमें चिंता की कड़ी सामरिक रूप से महत्वपूर्ण हिंद महासागर में चीन की निरंतर बढ़ती पैठ से जुड़ी है। पारंपरिक रूप से मालदीव की विदेश नीति भारत और चीन को लेकर संतुलन साधने की रही है, मगर मुइज्जू सरकार में बीजिंग की नजर इस महत्वपूर्ण सामुद्रिक क्षेत्र में अपनी भूमिका बढ़ाने पर केंद्रित है। हिंद-प्रशांत के उभरते रणनीतिक अखाड़े में हिंद महासागर शक्ति को लेकर प्रतिस्पर्धा के अहम केंद्र के रूप में उभरा है।

इसमें समकालीन भू-राजनीति एवं भू-आर्थिकी का महत्वपूर्ण कोण भी जुड़ा हुआ है। हिंद महासागर क्षेत्र के नेतृत्व की आकांक्षा भारतीय योजनाओं का भी हिस्सा है। भारत में पहले से यह मान्यता चली आ रही है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वयं को एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित करने की भारतीय महत्वाकांक्षा की एक कुंजी हिंद महासागर है।

भारत के प्रभावशाली राजनयिक केएम पणिक्कर ने तो यहां तक कहा था कि भारत के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए ‘हिंद महासागर के स्वरूप को वास्तविक रूप से भारतीय बनाए रखना’ ही होगा। हाल के दौर में भारतीय नेताओं ने इसी रणनीति को अपनाया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जहां हिंद महासागर से इतर फारस की खाड़ी और मलक्का स्ट्रेट तक को भारतीय सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना, वहीं उनके बाद प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह ने इस जरूरत पर जोर दिया कि भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा प्रदान करने वाला प्रमुख खिलाड़ी बनना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2015 में हिंद महासागर क्षेत्र में सामुद्रिक सहयोग के भारतीय आह्वान को ‘सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फोर आल इन द रीजन (सागर)’ नाम भी दिया। इस संकल्पना के मूल में समूचे हिंद महासागर क्षेत्र में सामुद्रिक सहयोग तंत्र, आर्थिक एकीकरण और सतत विकास जैसे लक्ष्य थे, जिन्हें साझा हितों एवं दायित्वों के साथ मूर्त रूप दिया जाए और उसमें निजी हितों पर सामूहिक बेहतरी को प्राथमिकता मिले।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हिंद महासागर एक प्रमुख शक्ति-केंद्र के रूप में सामने आया है। इसमें छोटे-छोटे देशों की महत्ता भी बढ़ी है, क्योंकि इसमें बड़ी शक्तियों का भी दांव लगा हुआ है। इसमें मालदीव इकलौता देश नहीं, जो अपनी रणनीतिक स्थिति का लाभ उठा रहा है। दूसरी ओर, हाल के वर्षों में भारत के नीतिगत विकल्प भी बढ़े हैं। यदि मालदीव के साथ संबंधों में कुछ तल्खी आई तो भारत ने मारीशस के साथ अपने रिश्तों को नया आयाम दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने गत माह मारीशस में नई एयरस्ट्रिप और जेट्टी का मारीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ के साथ मिलकर उद्घाटन किया। इसी महीने की शुरुआत में भारत ने लक्षद्वीप में आइएनएस जटायु की तैनाती की। इससे हिंद महासागर क्षेत्र में भारतीय नौसेना की क्षमताओं में इजाफा होगा। भारत इस क्षेत्र में एक संतुलित दृष्टिकोण अपना रहा है, जिसमें एक सुरक्षित, समृद्ध एवं नियम संचालित हिंद महासागर क्षेत्र अस्तित्व में आए जो उसके रणनीतिक एवं आर्थिक हितों के भी अनुकूल हो। चूंकि इस क्षेत्र में निरंतर हलचल बढ़ रही है तो नई दिल्ली को निरंतर चौकसी बरतनी होगी।

(लेखक आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में उपाध्यक्ष हैं)