उत्तर प्रदेश चल पड़ा है, कहने-सुनने में भले ही यह बहुत अच्छा लगता हो, पर प्रदेश की योगी सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती भी है। चुनौती यह कि प्रदेश को केवल उत्तम या सर्वोत्तम बनाना ही महत्वपूर्ण नहीं है। बड़ी बात है इसके लिए वे सारे इंतजाम करना जिनसे आगे भी यह भावना पुष्पित-पल्लवित होती रहे। प्रदेश स्वास्थ्य सेवाओं में बहुत पीछे है। कुपोषण की स्थिति भयावह है। वायु प्रदूषण खतरनाक बना हुआ है। दूसरे, बेरोजगारी और गरीबी भी कम नहीं है। भ्रष्टाचार का दीमक अलग से सारे किए कराए पर पानी फेर रहा है। यह सब-कुछ प्रदेश सरकार को विरासत में मिला है जिससे निपटने का एक-एक कर प्रयास हो रहा है। भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए हर कार्य में पारदर्शिता लाने का प्रयास हो रहा है, स्वास्थ्य सेवाओं का जाल बिछ रहा है। जहां जरूरत पड़ रही है, जिम्मेदार अफसरों को कड़ी कार्रवाई के माध्यम से संदेश भी दिये जा रहे हैं। कुपोषण दूर करने के लिए तेजी के साथ प्रयास जारी हैं।

बेरोजगारी दूर करने के लिए औद्योगीकरण की गति बढ़ाई जा रही है। इस निमित्त यूपी इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन हो रहा है। लकड़ी के रूप में इस्तेमाल होने वाले घरेलू ईंधन का प्रयोग, औद्योगिक इकाइयां, डीजल वाहन, थर्मल पावर प्लांट, भवन निर्माण, वाहनों की बढ़ती संख्या आदि वायु प्रदूषण के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार होते हैं। फिलहाल घरेलू ईंधन के रूप में रसोई गैस का प्रयोग बढ़ रहा है, लेकिन औद्योगीकरण से होने वाले वायु प्रदूषण पर नियंत्रण मुश्किल होगा। ऐसे में सरकार को न केवल लोगों को वायु प्रदूषण के प्रति जागरूक करना होगा, बल्कि प्रदूषण नियंत्रण के मानकों का कड़ाई से पालन भी करवाना पड़ेगा। नई इकाई हो या पुरानी सभी के लिए लाइसेंस जारी करने या लाइसेंस नवीनीकरण की प्रक्रिया प्रदूषण नियंत्रण के मामले में कठोर करनी पड़ेगी, सतत निगरानी और मानकों का पालन सुनिश्चित कराना पड़ेगा, इस कार्य में लगी सरकारी मशीनरी के पेंच कसने होंगे, तभी इस दिशा में उचित लक्ष्य प्राप्त किए जा सकेंगे। देखने वाली बात होगी कि सरकार इस समस्या से कैसे निजात पाती है।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]