'एक जिला-एक उत्पाद' योगी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है, जिस पर अमल की दिशा में उसने कदम बढ़ा दिया है। इस योजना के तहत न केवल प्रत्येक जिले के किसी एक उत्पाद की ब्रांडिंग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करनी है, बल्कि उस उत्पाद उद्योग को आर्थिक संजीवनी प्रदान करते हुए उसे उचित ढंग से विकसित भी किया जाना है, ताकि बेरोजगारी दूर करने के अलावा आर्थिक समृद्ध को भी बढ़ावा दिया जा सके। इस योजना के तहत प्रत्येक वर्ष कम से कम पांच लाख युवाओं को रोजगार दिए जाने का लक्ष्य है। शुक्रवार को लखनऊ में आयोजित राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) की बैठक में मुख्य सचिव राजीव कुमार ने कहा कि योजना के तहत प्राप्त प्रस्तावों को बैंक प्राथमिकता से वित्तपोषित करें।

दरअसल मुद्रा, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, मुख्यमंत्री रोजगार योजना और विश्वकर्मा श्रम सम्मान सरीखी योजनाओं के तहत 'एक जिला-एक उत्पाद' योजना को परवान चढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। निर्यात संवर्धन परिषदों के साथ बैठकें करके आइआइडीसी इसमें पूरी तरह योगदान के लिए कमर कस चुका है। यह सभी को पता है कि सरकारें योजनाएं बनाती हैं और उन्हें परवान चढ़ाने की जिम्मेदारी प्रशासनिक स्तर पर होती है। इन दोनों में से किसी की भी ढिलाई से योजना धड़ाम हो जाती है। लक्ष्य प्राप्त करना तो दूर सरकार को आर्थिक चपत अलग से लगती है। बदनामी भी उसी के खाते में आती है। जैसा कि मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना के साथ हुआ। ऐसे में जरूरी हो गया है कि सरकार न केवल स्पष्ट रूप से अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करे, बल्कि उसकी सतत निगरानी का भी कोई तंत्र विकसित करे जो समय रहते स्थिति पर नियंत्रण कर सके। योजना आर्थिक भ्रष्टाचार की भेंट न चढ़े और अपने उचित लक्ष्य को प्राप्त कर सके इस बात का भी पूरा ख्याल रखना पड़ेगा, तभी ह्यएक जिला-एक उत्पादह्ण योजना का वास्तविक उद्देश्य प्राप्त किया जा सकेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह योजना गेम चेंजर हो सकती है, बशर्ते इसका क्रियान्वयन ठीक तरह से हो।

[ मुख्य संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]