यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पेरिस ओलिंपिक में पदक की सुनिश्चित दावेदार विनेश फोगाट फाइनल मुकाबले के लिए अयोग्य करार दी गईं। उनसे स्वर्ण पदक की आशा की जा रही थी, क्योंकि इसके पहले के सभी मुकाबलों में उन्होंने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था और कई नामी पहलवानों को हराया था, लेकिन अंतिम मुकाबले के कुछ घंटे पहले उनका वजन सौ ग्राम अधिक पाया गया। इसके साथ ही उनका सपना तो टूटा ही, देशवासियों की आशाओं पर भी तुषारापात हो गया। चूंकि एक तरह से हाथ आया पदक फिसल गया, इसलिए अफसोस अधिक है। यह होना भी चाहिए, लेकिन इस प्रसंग से सबक भी लिया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में किसी के साथ ऐसा न हो।

इस ओलिंपिक में विनेश ने 53 किलोग्राम के अपने स्वाभाविक भार वर्ग को छोड़कर 50 किलोग्राम भार वर्ग में कुश्ती लड़ना तय किया था। इसके लिए उन्होंने बहुत तैयारी की थी, लेकिन शायद वह अपने वजन को नियंत्रित रखने का उतना अभ्यास नहीं कर पाईं, जितना आवश्यक था। अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं के मानकों पर खरा उतरने की जिम्मेदारी जितनी किसी खिलाड़ी की होती है, उतनी ही उसके कोच और सपोर्ट स्टाफ की भी। विनेश के मामले में कहां क्या चूक हुई, इसकी जवाबदेही उनके कोच और सपोर्ट स्टाफ की है। उन्होंने अपनी सफाई में काफी कुछ कहा है और यह स्पष्ट किया है कि विनेश का वजन नियंत्रित रखने के लिए वह सब कुछ किया गया, जो संभव था, लेकिन आखिर कहीं तो कुछ भूल-चूक हुई ही। यह किन कारणों से हुई, यह सामने आना चाहिए।

विनेश फोगाट को अयोग्य करार देने और इस तरह भारत के पदक से वंचित होने पर देशवासियों की ओर से अपनी निराशा व्यक्त किए जाने के बीच कुछ नेताओं की ओर से जैसे अनावश्यक बयान दिए जा रहे हैं, वे उनकी अपरिपक्वता को ही दर्शा रहे हैं। यह समझ आता है कि उन्हें न खेल की जानकारी है और न ही खेल के नियमों की, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वे जो मन में आए, वह बोल दें। कोई विनेश के साथ साजिश की कहानी गढ़ रहा है तो कोई उन्हें अयोग्य करार देने में किसी नेता का हाथ देख रहा है। यह सब इसीलिए हो रहा है, क्योंकि उन्होंने भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण के खिलाफ धरना-प्रदर्शन में भाग लिया था। निःसंदेह विनेश का मुकाबले से बाहर हो जाना और उन्हें कोई पदक न मिलना आहत करने वाला है, लेकिन खेलों के अपने नियम होते हैं। वे हमारे या किसी अन्य के हिसाब से नहीं बन सकते। विनेश के मामले में साजिश की कहानियां गढ़ रहे लोग इसकी भी अनदेखी कर रहे हैं कि उनके साथ उनकी पसंद का सपोर्ट स्टाफ था। इस मामले में कम से कम नेताओं की प्रतिक्रियाएं जगहंसाई कराने वाली नहीं होनी चाहिए। उन्हें यह भी समझ होनी चाहिए कि यह दलगत राजनीति का विषय नहीं है।