यह अच्छा नहीं कि पुलवामा हमले के बाद बनी जिस राजनीतिक सहमति को कायम रखने की जरूरत थी उसे बरकरार रखने पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके लिए सभी पक्ष जिम्मेदार हैं, लेकिन मानों इतना ही पर्याप्त न था, जो अब कूटनीतिक मामलों में भी राजनीतिक दल अलग-अलग सुर में बोलते दिखते रहे हैं। समझना कठिन है कि कांग्रेस को यह सवाल उठाने की क्या जरूरत थी कि प्रधानमंत्री सऊदी अरब के युवराज का स्वागत करने हवाई अड्डे पर क्यों गए और उन्होंने उन्हें गले क्यों लगाया? कूटनीतिक शिष्टाचार के तौर-तरीके कोई पत्थर की लकीर नहीं हैं। किसी भी शासनाध्यक्ष को यह तय करने का अधिकार है कि वह किसी अतिथि शासनाध्यक्ष का स्वागत-सत्कार किस तरह करे।

कांग्रेस को यह पता होना चाहिए कि प्रधानमंत्री पहली बार किसी शासनाध्यक्ष की अगवानी करने हवाई अड्डे नहीं गए। उसे यह भी ज्ञात होना चाहिए कि वह विदेशी अतिथियों से देश-विदेश में गले मिलते रहे हैं। ऐसा लगता है कि कांग्रेसी प्रवक्ता महज आलोचना के लिए आलोचना करना चाह रहे थे। यह भारतीय राजनीति में गिरावट का एक नया और छिछला बिंदु ही है कि मुख्य विपक्षी दल विदेशी शासनाध्यक्ष के स्वागत के तौर-तरीके अपने हिसाब से तय करना चाह रहा है।

यह सही है कि सऊदी अरब के युवराज और भारतीय प्रधानमंत्री की ओर से जारी संयुक्त बयान देश की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है, लेकिन यह सवाल उठाना निहायत बचकाना राजनीति है कि पाकिस्तान में 20 अरब डॉलर निवेश करने वाले देश के शासक की अगवानी करते समय प्रधानमंत्री उनसे गले क्यों मिले? क्या अगर प्रधानमंत्री ऐसा नहीं करते तो सऊदी अरब भारत के मनमुताबिक संयुक्त बयान जारी करने पर राजी हो जाता या फिर वह पाकिस्तान में निवेश के अपने प्रस्ताव को वापस ले लेता?

कांग्रेस विपक्ष में है तो इसका यह मतलब नहीं कि वह कूटनीतिक तौर-तरीकों को विस्मृत करती नजर आए। नि:संदेह यह कोई नई बात नहीं कि सऊदी अरब पाकिस्तान के हितों की चिंता करता है, लेकिन यह नई बात अवश्य है कि पिछले कुछ समय से उसने भारत के प्रति मित्रवत रवैया अपनाया है और इसका एक बड़ा प्रमाण यह है कि उसने वांछित तत्वों को प्रत्यर्पित करने में देर नहीं की है। कांग्रेस अथवा अन्य किसी राजनीतिक दल को इसकी भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि सऊदी अरब में करीब 27 लाख भारतीय रहते हैं। इसके अतिरिक्त वह भारत की तेल जरूरतों को पूरा करने में भी अग्रणी है।

सऊदी अरब या फिर पाकिस्तान के प्रति नरम रुख रखने वाले देश को बातचीत से ही इसके लिए राजी किया जा सकता है कि वह भारतीय हितों की अधिक परवाह करे। मोदी सरकार यही करने की कोशिश कर रही है। अगर कांग्रेस को यह लगता है कि वह इसमें कामयाब नहीं हो पा रही है तो फिर उसे यह बताना चाहिए कि इसके लिए क्या किया जाना चाहिए। यह देखना-सुनना दयनीय है कि इसके बजाय उसकी ओर से ऐसी बातें की जा रही हैं जो कूटनीतिक मर्यादा से इतर हैं। कम से कम कांग्रेस को तो यह अच्छे से पता होना ही चाहिए कि कूटनीति और राजनीति में अंतर होता है।