हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित भूमि को लेकर होने वाले विवाद के निपटारे के लिए सोमवार को दोनों राज्यों के प्रशासनिक अधिकारियों की बैठक पलवल में हुई। बैठक तो होनी ही चाहिए और संवाद भी होना चाहिए, लेकिन जरूरी है कि दोनों सरकारें इस विवाद के निदान के लिए गंभीर हों। हालांकि यह बैठक केवल पलवल को लेकर थी, लेकिन यमुनानगर से लेकर पलवल तक जहां -जहां से दोनों प्रदेशों की सीमा पर यमुना गुजरती हैं, वहां हर साल दोनों प्रदेशों के किसानों में रक्तरंजित संघर्ष होता है। कई किसानों की इसमें जान जा चुकी है।

हर साल हरियाणा के किसान यमुना के किनारे की भूमि पर फसल बोते हैं और उत्तर प्रदेश के किसान काट ले जाते हैं। यह विवाद 43 वर्ष से चला आ रहा है। तब केंद्र सरकार ने सीमा के किनारे स्थित भूमि विवाद को सुलझाने के लिए तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री उमाशंकर दीक्षित को आरबीटेटर नियुक्त किया था। उन्होंने 14 फरवरी 1975 को अपना निर्णय दिया, जिसमें सर्वे आफ इंडिया द्वारा 1971-72 में यमुना बहाव की लाइन देखकर 1975 में अपना निर्णय दिया था। भारत सरकार के गृह विभाग ने 15 सितंबर 1975 को यह अवार्ड जारी कर दिया। अब इस अवार्ड के तहत ही हर बार भूमि की पैमाइश होती है। हरियाणा के किसानों के पास सारे दस्तावेज भी हैं, वे पेश भी करते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के अधिकारी किसी न किसी बिंदु पर अड़ंगा लगा देते हैं। इस समय दोनों प्रदेशों में एक ही दल के मुख्यमंत्री हैं और दोनों में मैत्रीपूर्ण संबंध भी हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल को चाहिए कि वह उत्तर प्रदेश के योगी आदित्य नाथ से इस बारे में बात करें और हर वर्ष होने वाले संघर्ष पर पूर्ण विराम लगाने का प्रयास करें।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]