भ्रष्टाचार का वंशवादी रूप

केंद्रीय जांच ब्यूरो की ओर से आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार के जिस वंशवादी रूप की चर्चा की, वह एक कटु सच्चाई है। उन्होंने उचित ही इस तरह के भ्रष्टाचार को एक विकराल चुनौती करार दिया, लेकिन बात तब बनेगी जब उससे पार पाने के जतन किए जाएंगे। प्रधानमंत्री के अनुसार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति अपनाई जा रही है, लेकिन यदि ऐसा है तो फिर वंशवादी भ्रष्टाचार विकराल रूप क्यों धारण किए हुए है? नि:संदेह यह वह सवाल है, जिसका जवाब सरकार और उसकी एजेंसियों को देना होगा और वह भी इसके बावजूद कि भ्रष्टाचार से लड़ना किसी एक एजेंसी का काम नहीं, बल्कि सामूहिक जिम्मेदारी है।

प्रधानमंत्री के इस आकलन से असहमत नहीं हुआ जा सकता कि जब भ्रष्टाचार करने वाली एक पीढ़ी को उचित सजा नहीं मिलती तो दूसरी पीढ़ी और ज्यादा ताकत के साथ भ्रष्टाचार करती है, लेकिन यह देखना तो सरकार और भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों का ही काम है कि भ्रष्ट तत्वों को समय रहते समुचित सजा मिले। जब तक भ्रष्ट तत्वों को उनके किए की सख्त सजा नहीं मिलती, तब तक भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों के मन में भय का संचार नहीं होने वाला।

यदि कई राज्यों में पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाला भ्रष्टाचार राजनीतिक परंपरा का हिस्सा बन गया है और देश को दीमक की तरह खोखला कर रहा है तो फिर उससे निपटने के लिए विशेष उपाय किया जाना समय की मांग है। आखिर यह मांग कब पूरी होगी? यह सही है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद शासन-प्रशासन के शीर्ष स्तर के भ्रष्टाचार पर एक हद तक लगाम लगी है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भ्रष्टाचार से जुड़े तमाम मामले जांच और अदालती सुनवाई से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। इसका कोई औचित्य नहीं कि भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों में भी जांच और सुनवाई का सिलसिला लंबा खिंचता रहे। कभी-कभी तो यह इतना लंबा खिंच जाता है कि अपनी महत्ता ही खो देता है।

कायदे से तो यह होना चाहिए कि भ्रष्टाचार के बड़े और खासकर नेताओं एवं नौकरशाहों से जुड़े मामलों की जांच एवं सुनवाई प्राथमिकता के आधार पर हो। किसी को बताना चाहिए कि ऐसा क्यों नहीं होता? भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए सरकारी एजेंसियों के साथ न्यायपालिका को भी सक्रियता दिखानी होगी। अच्छा होता कि प्रधानमंत्री अपने संबोधन में इस जरूरी बात को खास तौर पर रेखांकित भी करते, क्योंकि देश इससे हैरान भी है और परेशान भी कि 2जी स्पेक्ट्रम सरीखे बड़े घोटालों का निपटारा जल्द से जल्द करने की जरूरत क्यों नहीं समझी जा रही है?