यह आपत्ति एक किस्म की राजनीतिक शरारत ही है कि रमजान के महीने में आम चुनाव क्यों कराए जा रहे हैैं? यह मानने के अच्छे-भले कारण हैैं कि निर्वाचन आयोग की ओर से आम चुनाव की घोषणा होते ही कुछ राजनीतिक दलों ने खुद को मुस्लिम समुदाय का हितचिंतक जताने के लिए ही यह कहा कि रमजान के दौरान चुनाव कराना ठीक नहीं। रमजान का माह मुस्लिम समुदाय के लिए ठीक वैसा ही पावन कालखंड होता है जैसे हिंदू समुदाय के लिए नवरात्र। अब अगर नवरात्र में चुनाव में हो सकते हैैं तो फिर रमजान में क्यों नहीं हो सकते? यह सही है कि रमजान में मुस्लिम एक खास दिनचर्या का निर्वाह करते हैैं, लेकिन इस दौरान वे अपने सारे काम अन्य दिनों की तरह ही करते हैैं।

क्या तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने यह मान रखा है कि रमजान के दौरान मुस्लिम अपना काम-धंधा छोड़कर घर बैठ जाते हैैं? एमआइएम के नेता असदुद्दीन औवेसी ने यह जवाबी सवाल दागकर एक तरह से इन राजनीतिक दलों को शर्मिंदा ही किया कि क्या रमजान के दौरान मुसलमान काम नहीं करते? समझना कठिन है कि चंद राजनीतिक दलों की तरह से कुछ मुस्लिम धर्मगुरु इस नतीजे पर कैसे पहुंच गए कि रमजान के कारण मुस्लिम मतदाताओं को मतदान करने में परेशानी आ सकती है? कम से कम उन्हें तो यह सामान्य सी जानकारी होनी ही चाहिए कि रमजान का मतलब दैनिक जीवनचर्या को रोक देना नहीं होता।

रमजान के दौरान चुनाव कराए जाने पर आपत्ति का तब कोई मूल्य हो सकता था जब ईद या अन्य किसी पर्व के दिन मतदान की तिथि घोषित की जाती। आम तौर पर निर्वाचन आयोग इसका ख्याल रखता है कि किसी बड़े पर्व के दिन मतदान न हो। अतीत में उसने किसी क्षेत्रीय पर्व-महोत्सव के दौरान होने वाले मतदान को टाला भी है। इस बार भी उसने रमजान को ध्यान में रखते हुए इस दौरान किसी शुक्रवार को मतदान की तिथि घोषित नहीं की।

राजनीतिक दलों को यह पता होना चाहिए कि रमजान के दौरान चुनाव अतीत में भी होते रहे हैैं और इसके पहले कभी यह सुनने को नहीं मिला कि रमजान में चुनाव नहीं होने चाहिए। बहुत दिन नहीं हुए जब उत्तर प्रदेश में कैराना लोकसभा का उपचुनाव रमजान के समय ही हुआ था। क्या तब मुस्लिम मतदाताओं को वोट देने में दिक्कत पेश आई थी या फिर ऐसा कुछ सामने आया था कि रमजान में मतदान होने के कारण किसी दल विशेष को चुनावी नफा या नुकसान हुआ? रमजान के दौरान चुनाव कराए जाने को लेकर आपत्ति उठाने वालों ने अपनी सांप्रदायिक सोच का ही परिचय दिया है। इसके जरिये उनका एकमात्र मकसद खुद को मुस्लिम समुदाय की परवाह करने वाला दिखाना और इसी बहाने चुनावी लाभ लेना ही रहा होगा।

यह अच्छा हुआ कि निर्वाचन आयोग ने बेतुकी आपत्ति उठाने वालों के समक्ष यह स्पष्ट कर दिया कि यह नहीं हो सकता कि रमजान के दौरान मतदान हो ही न। बेहतर होगा कि मुस्लिम समुदाय भी इस पर विचार करे कि रमजान के दौरान चुनाव का सवाल उठाने वाले उसके हितैषी हैैं या फिर उसका राजनीतिक इस्तेमाल करने वाले?