दूर दिखाई देने वाला आसमान और धरती का मिलनस्थल भले ही सिर्फ आभासी हो और हकीकत में दोनों कभी मिल न पाते हों। मगर दोनों की दोस्ती बड़ी प्रगाढ़ है। आसमान की रंगत जैसी, धरती के बदन पर ओढऩी वैसी। आसमान रूखा तो धरती का रंग भी फीका, आसमान पर पानी बरसाने वाले बादलों की छटा इंद्रधनुषी तो धरती का रंग भी हरा और मन प्रफुल्लित करने वाला। इसीलिए तो आकाश के मिजाज के लिहाज से वनस्पति के बीजों का अंकुरण, उनकी वृद्धि और अंत में अगले चक्र के लिए बीज के रूप में तैयार होने की प्रक्रिया सदियों से निर्बाध चली आ रही है। इस मौसम चक्र के आगे-पीछे होने का असर मौसमी पौधों पर बहुत स्पष्ट दिखाई देता है। जैसा कि इन दिनों हो रहा है, अभी फसल को बारिश की जरूरत है जिससे जमीन में नमी आए और तापमान भी कम हो। वैज्ञानिक भी कह रहे हैं कि सिंचाई के जितने भी साधन आप अपना लें, आसमानी पानी का कोई सानी नहीं है। वह हवा में मिले तमाम तत्वों को अपने साथ जमीन तक पहुंचाता ही है, तापमान भी घटा देता है। सूर्य की रोशनी और वनस्पतियों के बीच आई धुंध एवं प्रदूषण की परत को भी दूर करता है।

हम जानते हैं कि वनस्पतियों की हरी पत्तियों में मौजूद क्लोरोफिल ही सूरज की रोशनी में इनका भोजन तैयार करता है। यह प्रक्रिया प्रकाश संश्लेषण कहलाती है। आसमान में धुंध होने से तापमान अधिक रहता है। ऐसे समय में इनको नुकसान पहुंचाने वाले कीट भी सक्रिय रहते हैं। जिससे इस ऋतु में होने वाली रबी की फसलों, दलहन और सब्जियों की वृद्धि, उनके फूल निकलने और परागण की क्रिया प्रभावित होती है। उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 20 प्रतिशत खेत खाली रह गए हैं। चित्रकूट मंडल में तो रबी फसलों की बोआई 20 प्रतिशत ही हो सकी है, जबकि मीरजापुर और झांसी 60 प्रतिशत के आसपास और वाराणसी, सहारनपुर, मुरादाबाद, फैजाबाद, कानपुर, इलाहाबाद एवं कानपुर मंडलों में भी कम बोआई हुई है। दलहन व तिलहन बोने के प्रति अरुचि हुई है। ऐसे में पहले से ही खाद्यान्न का कम रकबा होना फिर उसमें मौसम की प्रतिकूलता, आम आदमी से लेकर सरकार तक के माथे पर चिंता की लकीरों को बढ़ा देने वाली है। ऐसे में अनाज पैदा करने वाले किसान और उसे उपभोग करने वाले शहरियों की नजरें आसमान की ओर लगी हैं।

[स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश]