राजस्व सचिव हसमुख अढिया ने जीएसटी के ढांचे में संशोधन-परिवर्तन की जरूरत जताकर एक तरह से इसकी पुष्टि कर दी कि मौजूदा ढांचे में कहीं कोई खामी है और उसे दुरुस्त करने की जरूरत है। राजस्व सचिव का बयान यह भी इंगित कर रहा है कि जीएसटी के मौजूदा ढांचे ने छोटे और मझोले व्यापारियों की समस्याएं बढ़ा दी हैं। यह अच्छी बात है कि आखिरकार राजस्व सचिव ने यह महसूस किया कि जीएसटी छोटे एवं मझोले व्यापारियों के लिए परेशानी का सबब बन गया है और इस परेशानी को दूर करने की जरूरत है, लेकिन उनके आकलन से किसी न किसी स्तर पर यह भी स्पष्ट हो रहा है कि जीएसटी को लागू करने के पहले नौकरशाही को जैसी तैयारी करनी थी वह नहीं की गई। यह मानने के भी अच्छे-भले कारण हैं कि सरकार का सारा जोर जीएसटी पर आम सहमति बनाने पर रहा और इसके चलते वह यह नहीं देख सकी कि नौकरशाही ही अपने हिस्से का काम सही तरह से कर रही है या नहीं। सरकार को नौकरशाही के उन तौर-तरीकों से परिचित होना चाहिए था जिनके तहत वह किसी नई व्यवस्था को लागू करते समय इस पर कम ही ध्यान देती है कि इससे संबंधित लोगों को अनावश्यक परेशानी का सामना न करना पड़े। ऐसा लगता है कि जिन नौकरशाहों पर जीएसटी के ढांचे को निर्मित करने और उसे अमल में लाने की जिम्मेदारी थी उन्होंने उद्योग-व्यापार जगत से और विशेष रूप से छोटे एवं मझोले व्यापारियों से सही तरह विचार-विमर्श ही नहीं किया। इसी का परिणाम सबके सामने है और सरकार व्यापारी वर्ग के साथ-साथ विपक्ष की आलोचना के निशाने पर भी है।
सरकार के लिए जरूरी केवल यह नहीं है कि वह विपक्ष की आलोचना का जवाब दे, बल्कि यह भी है कि जीएसटी ढांचे की मौजूदा खामियों को यथाशीघ्र कैसे दूर किया जाए। ऐसा करते समय उसे जीएसटी के दायरे में आने वाले उद्योग-व्यापार जगत के लोगों से विचार-विमर्श भी करना होगा और यह भी सुनिश्चित करना होगा कि जीएसटी संबंधी नियम-कानूनों का अनुपालन सुगम तरीके से कैसे हो। यह ठीक है कि प्रत्येक नई व्यवस्था प्रारंभ में कुछ न कुछ जटिल नजर आती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि व्यापक प्रभाव वाले जीएसटी के नियम-कानून जटिलताओं से भरे हुए हों। राजस्व सचिव के बयान से यह स्पष्ट है कि जल्द ही सरकार की पहल पर जीएसटी काउंसिल उपयुक्त कदम उठाएगी। यह कार्य प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए, लेकिन हड़बड़ी में कुछ ऐसा भी नहीं किया जाना चाहिए जिससे जीएसटी का उद्देश्य प्रभावित होता हुआ दिखे। जीएसटी काउंसिल के संदर्भ में अच्छी बात यह है कि वह अपने फैसलों पर पुनर्विचार करने को लेकर तत्परता प्रदर्शित करती रही है। यह भी उल्लेखनीय है कि जीएसटी काउंसिल ने अभी तक जितने भी फैसले लिए हैं वे सर्वसम्मति से लिए हैं। अभी तक ऐसी कोई नौबत नहीं आई कि किसी मसले पर वोटिंग कराने की जरूरत पड़ी हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि जीएसटी काउंसिल जल्द ही जीएसटी ढांचे की उन खामियों को दूर करने में सफल होगी जिनकी ओर राजस्व सचिव ने संकेत किया है।

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