पेयजल समस्या से जूझ रहे उत्तराखंड के लिए जलनीति बनाए जाने को सराहनीय प्रयास माना जा सकता है, बशर्ते इस दिशा में गंभीरता से कदम बढ़ाए जाएं।

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देश के अन्य हिस्सों की भांति उत्तराखंड भी पेयजल संकट से अछूता नहीं है। फिर चाहे वह पर्वतीय इलाके हों अथवा मैदानी, दोनों ही जगह पानी की किल्लत है। पहाड़ी क्षेत्रों में जलस्रोत सूखने से दिक्कत बढ़ी है तो मैदानी इलाकों में भूजल के अंधाधुंध दोहन से। साफ है कि हम पानी का दोहन तो कर रहे, लेकिन इसे बचाने के बारे में नहीं सोच रहे हैं। यही सबसे बड़ी चिंता का कारण भी है। सरकार भी मानती है कि राज्य में पेयजल का संकट है और निबटने के मद्देनजर ही प्रदेश की जल नीति लाई जा रही है। नीति में नदियों के पुनर्जीवन के साथ ही वर्षाजल संरक्षण पर फोकस होगा, ताकि बूंदों को सहेजकर जलस्रोतों को जीवित किया जा सके।

वर्षा जल संरक्षण के लिए पांरपरिक तौर-तरीकों खाल-चाल (छोटे-बड़े तालाबनुमा गड्ढे) को भी नीति में शामिल करने की कवायद की जा रही है। साथ ही जल स्रोतों के इर्द-गिर्द जल संरक्षण में सहायक पौधों का रोपण किया जाएगा। इस आलोक में थोड़ा पीछे मुड़कर देखें तो खाल-चाल जैसे पारंपरिक तरीके लोग खुद अपनाते थे। एक दौर में अकेले गढ़वाल मंडल में ही तीन हजार से अधिक खाल-चाल थीं। कुछ स्थानों का नामकरण तक इन खाल के नाम पर हुआ। वक्त ने करवट बदली और धीरे-धीरे खाल-चाल गुम होते चले गए। इसका असर सूखते जलस्रोतों और सूखती नदियों के रूप में सामने आया है।

नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि उत्तराखंड में करीब तीन सौ छोटी-बड़ी नदियां या तो सूख चुकी हैं या फिर सूखने के कगार पर हैं। इनमें अधिकांश वे नदियां हैं, जिनके जीवन का आधार हिमालय नहीं, बल्कि प्राकृतिक जलस्रोत हैं। पेयजल महकमे के आंकड़ों को ही देखें तो यहां की 17032 बस्तियों को आज भी आंशिक रूप से पेयजल उपलब्ध हो पा रहा है। खासकर पर्वतीय इलाकों में संकट अधिक है। ऐसे में जरूरी है कि प्राकृतिक जलस्रोतों को पुनर्जीवन दिया जाए। इस लिहाज से देखें तो राज्य के लिए जल नीति समय की मांग है। बात समझने की है कि जलस्रोत पुनर्जीवित होंगे तो पहाड़ और मैदान सभी जगह पेयजल संकट से निजात मिलेगी ही, खेती-किसानी को भी पानी उपलब्ध हो सकेगा। इसके लिए वर्षा जल का संरक्षण सबसे उत्तम उपाय है। सरकार ने भी इस पर फोकस किया है। राज्य सरकार को चाहिए कि वह ठोस एवं प्रभावी जल नीति लेकर आए और पूरी गंभीरता से क्रियान्वित भी करे।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]