पूरे विश्व की तरह पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में भी पानी की किल्लत होना आम है। विशेषकर गर्मियों के दिनों में स्थिति इतनी खराब रहती है कि लोगों को मीलों चलकर पानी लाना पड़ता है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि पहाड़ में कुओं का अस्तित्व खत्म होने की कगार पर है। बावड़ियों की सुध लेने का समय किसी के पास नहीं है। तालाबों की जगह दुकानें व उद्योग स्थापित हो गए हैं। भू-जल स्तर को बढ़ावा देने के जो भी उपाय बुजुर्गो ने किए थे, उन पर अमल नहीं हो रहा। लोग इनके संरक्षण के लिए सचेत रहें तो शायद पानी के संकट का सामना करने की नौबत न आए। हर कार्य के लिए शासन-प्रशासन की और देखने की सोच को अगर विकसित कर लिया जाए और अपनी जिम्मेदारी को समझा जाए तो समाज से कई समस्याओं से निजात मिलने में मदद मिलेगी। प्रदेश में सभी मंत्रियों व विधायकों के तालाबों के निर्माण के लिए श्रमदान करने का फैसला सराहनीय है बल्कि लोगों को भी जल संरक्षण के लिए प्रेरित करेगा। प्रदेश सरकार की योजना हर पंचायत में एक तालाब बनाने की है ताकि जरूरत के समय इसके पानी का प्रयोग किया जा सके। सरकार की योजना जल साक्षरता अभियान शुरू करने की है, जिसमें लोगों को पानी के संरक्षण के लिए प्रेरित किया जाएगा।

ये ऐसी पहल है, जिनसे गंभीर समस्या के प्रति सरकार की संजीदगी झलकती है। हाल ही में सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग की द्वारा करवाए सर्वेक्षण में सामने आया है कि प्रदेश के भूजलस्तर में पांच से 35 फीसद तक की गिरावट दर्ज की गई है। यह चौंकाने वाला ही नहीं बल्कि चिंतित करने वाला खुलासा है। समझना होगा कि तालाबों या प्राकृतिक जलस्नोतों के संरक्षण से भूजलस्तर को बरकरार रखने में मदद मिलेगी। बारिश के पानी को सहेजकर भी इस दिशा में सार्थक पहल की जा सकती है। जल संरक्षण में पेड़ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं क्योंकि इनके कारण जमीन में नमी बरकरार रहती है। असंभव कुछ भी नहीं है बस जरूरत है मजबूत इच्छाशक्ति और उसे धरातल पर उतारने के इरादों की। जब जागो तभी सवेरा की कहावत पर अमल करते हुए लोगों को जल संरक्षण की दिशा में तन-मन से जुटना होगा ताकि भावी पीढ़ियों को पानी के लिए भटकना न पड़े।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]